26.7 C
Rajasthan
Tuesday, May 30, 2023

Buy now

spot_img

इन तत्वों ने खोदी जाट राजपूत जातियों के मध्य खाई

इन तत्वों ने खोदी जाट राजपूत जातियों के मध्य खाई : राजस्थान के इतिहास में जाट राजपूत एक दूसरे के पूरक रहे हैं| राजपूत जहाँ शासन व सुरक्षा व्यवस्था सँभालते थे, वहीं जाट कृषि कार्य करते थे| चूँकि हमारा देश कृषि प्रधान देश है अंत: राजस्थान की भी अर्थव्यवस्था कृषि पर ही निर्भर थी और जाट जाति के लोग इसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते थे| आपको बता दें रियासती काल में जागीरदारों व राजाओं द्वारा वसूला जाने वाला कृषि कर भी जाट जाति के लोग ही तय करते थे| चूँकि जाट कृषि विशेषज्ञ थे अंत: जागीरदार हर गांव में कृषि कर एकत्र करने के लिए जाट की ही नियुक्ति करते थे, जिसे चौधरी व पटेल की उपाधि दी जाती थी| किस किसान से कितना कर लेना है यह चौधरी या पटेल ही निर्धारित करते थे|

पर सदियों से साथ रही राजस्थान की ये दोनों महत्त्वपूर्ण जातियां आज राजनैतिक तौर एक दूसरे के खिलाफ है| जबकि आज भी गांवों में दोनों जातियों के हित व समस्याएँ एक जैसी है| दोनों जातियों के मध्य इसी राजनैतिक वैमन्यस्ता के कारणों पर हमने शोध पुस्तकों में दृष्टिपात किया तो “शेखावाटी प्रदेश के राजनैतिक इतिहास” नामक पुस्तक में हमें उन तत्वों के नामों की जानकारी के साथ उनकी कारगुजारियों की जानकारी मिली जो इन दोनों महत्त्वपूर्ण जातियों के मध्य कटुता की खाई खोदने के लिए जिम्मेदार माने जाते हैं| इन तत्वों ने अपने निहित स्वार्थ के लिए सदियों से साथ व एक दूसरे की पूरक रही राजपूत व जाट जातियों के मध्य राजनैतिक कटुता पैदा कर दी, जो प्रदेश की राजनीति के लिए शुभ नहीं है|

उक्त पुस्तक में इस कटुता के जनक के तौर पर चिड़ावा के दो वणिक व्यक्ति प्यारेलाल गुप्ता और गुलाबचंद नेमाणी के साथ मंडावा के देवीबक्स सर्राफ का नाम प्रमुखता से लिखा गया है| देवीबक्स सर्राफ की जकात नामक कर को लेकर मंडावा के जागीरदारों से नाराजगी थी| इन्हीं लोगों ने जाटों को जागीरदारों के खिलाफ भड़काकर किसान जागीरदार संघर्ष की नींव डाली | चिड़ावा के उक्त वणिकों ने जब खेतड़ी राजा के खिलाफ दुष्प्रचार किया तब उन्हें पकड़ा गया पर पर्दे की ओट में रहने वाले कुछ पूंजीपतियों ने राजा से अनुरोध कर उन्हें छुड़ा दिया| जिनमें देवीबक्स सर्राफ मंडावा, दुर्गादत्त कैया झुंझुनू, जमनालाल बजाज, घनश्यामदास बिड़ला आदि लोग थे| दरअसल राजाओं के साथ दिखने का नाटक करने वाले पूंजीपतियों का चिंतन था कि जब तक देहात के किसानों को विशेषकर जाटों को राजपूत जागीरदारों के खिलाफ नहीं खड़ा किया जावेगा तब तक जागीरदारों का विरोध करना खतरा मोल लेना होगा| अंत: इस कार्य हेतु उन्होंने राजपूतों के सामने जाटों को खड़ा कर अपना राजनैतिक स्वार्थ साधा|

1920 के लगभग इन तत्वों द्वारा इन दोनों मजबूत जातियों के मध्य डाली गई कटुता की खाई को समय समय चुनाव जीतने के इच्छुक महत्वाकांक्षी जाट राजपूत नेताओं ने बढ़ाने का भरसक कार्य किया और आज प्रदेश की दो महत्त्वपूर्ण जातियां राजनैतिक तौर पर एक दूसरे को विरोधी समझती है| अगले लेख में इन तत्वों ने दोनों जातियों के मध्य किस तरह के हथकंडे अपनाकर कटुता बढाने वाली कारगुजारियों पर प्रकाश डाला जायेगा|

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Stay Connected

0FansLike
3,791FollowersFollow
20,800SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles