39.3 C
Rajasthan
Tuesday, June 6, 2023

Buy now

spot_img

इतिहास व महापुरुष हथियाने की कोशिश

भारत में सदियों से जाति व्यवस्था रही है। सभी जातियां अन्य दूसरी जातियों का सम्मान करते हुए, एक साझी संस्कृति में प्रेमपूर्वक रहती आई है। देश के महापुरुष भले किसी जाति के हों, वे सबके लिए आदरणीय व प्रेरणास्त्रोत होते थे। लेकिन आजादी के बाद देश के नेताओं ने एक तरफ जहाँ जातिवाद खत्म करने की मोटी मोटी बातें की, वहीं वोट बैंक की फसल काटने हेतु जातिवाद को प्रत्यक्ष बढ़ावा दिया। जिससे कई जातियों में प्रबल जातीय भाव बढ़ा और वे दूसरी जातियों पर राजनैतिक वर्चस्व बनाने के लिए लामबंद हो गई। नतीजा जातीय सौहार्द को तगड़ा नुकसान पहुंचा। महापुरुषों को भी जातीय आधार पर बाँट दिया गया। आजकल यह रिवाज सा ही प्रचलित हो गया कि महापुरुषों की जयन्तियां व उनकी स्मृति में आयोजन उनकी जाति के लोग ही करते है, बाकी को कोई मतलब नहीं रह गया।
ऐसे में बहुत सी ऐसी जातियां, जिनकी जाति में कोई महापुरुष पैदा नहीं हुए वे अपना मनघडंत इतिहास रचकर अपनी जाति के नए नायक व महापुरुष घड़ने में लगे हैं। यही नहीं अपने जातीय अहंकार के लिए महापुरुष घड़ने की इस श्रृंखला में बहुत सी जातियां देश के इतिहास में प्रसिद्ध महापुरुषों, योद्धाओं को अपना प्रचारित कर उन पर कब्जा जमाने की कोशिशों में जुटी है। कहीं मिहिरभोज को गुर्जर सम्राट प्रचारित किया जा रहा है, तो कहीं सुहैलदेव बैस को सुहैलदेव पासी या सुहैलदेव राजभर प्रचारित करने पर विभिन्न जातियों में झगड़ा चल रहा है। यही नहीं राठौड़ वीर दुर्गादास व इतिहास प्रसिद्ध हम्मीर हठी तक पर राजपूतों से इतर जातियों द्वारा दावा ठोका जा रहा है कि वे राजपूत नहीं, हमारी जाति के थे।

सोशियल मीडिया के बढ़ते चलन के बाद यह समस्या आम राजपूत युवा के सामने है, राजपूत युवा इस समस्या से परिचित व त्रस्त है और अपने पूर्वजों को दूसरी जातियों द्वारा हथियाने जाने के खिलाफ सोशियल मीडिया में तीखी प्रतिक्रिया भी व्यक्त कर रहा है।

पर क्या आपने सोचा कि इस समस्या का जिम्मेदार कौन है? समस्या के समाधान के लिए यदि आप अपने अंतर्मन में झांकेंगे तो पायेंगे कि इस समस्या का कारण भी हम ही हैं। हमने ही अपने महान पूर्वजों को भुला दिया, अपने आदर्श छोटे कर लिए और मध्यकाल के एक आध क्षत्रिय महापुरुष की जयंती मनाकर, अपने आपको धन्य समझते हुए, अपने महान पूर्वजों को याद करना छोड़, उन्हें लावारिश छोड़ दिया। आप जानते ही होंगे कि लावारिश हालात या सूनी पड़ी किसी भी वस्तु पर कोई भी अधिकार जमा लेता है। ठीक इसी तरह हमने अपने जिन महान पूर्वजों को भुला दिया, उनकी याद में कोई आयोजन नहीं करते, उनका इतिहास नहीं लिखते, यदि किसी ने लिखा है तो उसकी लिखी पुस्तक तक नहीं खरीदते, तो ऐसी हालात में अन्य जातियां उन्हें अपना बता कब्जा करेंगी ही। आखिर उन्हें भी तो अपनी जाति को महान इतिहास से जोड़ना है। रही सही कसर राजनेता पूरी कर देते है, वोट बैंक के लालच में वे उस जाति का समर्थन करते हुए उनके द्वारा हथियाये महापुरुष को उनका पूर्वज घोषित करते हुए बयान जारी कर देते है या उनकी याद में कोई स्मारक आदि बनवा देते है।

इस समस्या के समाधान के लिए हमें अपने अपने क्षेत्रों के स्थानीय महापुरुषों की जयन्तियां मनानी होगी, उनकी याद में अनेक कार्यक्रम आयोजित करने होंगे, ताकि अन्य जातियों को इतिहास के साथ छेड़छाड़ कर उन्हें अपना घोषित कर पाने का मौका ना मिले। आज हरियाणा में महाराणा प्रताप की जयंती से ज्यादा आवश्यकता हरराय चौहान पर समारोह आयोजित करने की है। आज हरराय चौहान के वंशज ही नहीं जानते कि हरयाणा के संस्थापक राजा हरराय चौहान थे, तो दूसरों से क्या उम्मीद रखी जाय। यदि हरयाणा में हर वर्ष हरराय चौहान पर बड़ा आयोजन हो तभी लोगों को पता चलेगा कि यह प्रदेश हरराय चौहान का हरयाणा है, हरराय चौहान हरयाणा के संस्थापक है। ठीक इसी तरह अन्य प्रदेशों में भी वहां के महान शासकों की याद में कार्यक्रम आयोजित होने चाहिए, उनकी स्मृति में सामुदायिक भवनों का नामकरण होना चाहिए। पत्र-पत्रिकाओं व इंटरनेट पर उनके बारे में अनेक लेख प्रकाशित करने चाहिए, ताकि देश के हर नागरिक को पता हो कि फलां महापुरुष फलां राजपूत था।

यदि ऐसा होता है तो महापुरुषों को अन्य जातियों द्वारा हथियाने जाने वाली यह समस्या अपने आप खत्म हो जायेगी।

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Stay Connected

0FansLike
3,802FollowersFollow
20,800SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles