इतिहास में नाम दर्ज कराने के लिए लेखक कई किताबें लिखता है, कवि व साहित्यकार एक से बढ़कर एक रचनाएँ लिखते हैं, दान दाता बढ़ चढ़कर दान देते हैं तो लोग मंदिर, धर्मशाला, कुएं, बावड़ियाँ, सड़कें आदि बनवाते है ताकि भविष्य में लोग उन्हें याद रखे| लेकिन योद्धा इतिहास में नाम लिखवाने के लिए युद्ध में वीरता प्रदर्शित करते हैं व अपने प्राणों का उत्सर्ग करते हैं| जैसलमेर के शासक रावल दूदा ने भी इतिहास में नाम दर्ज कराने के लिए एक ऐसा खेल खेला, जिसमें उसे राज्य खोने के साथ अपने प्राणों का उत्सर्ग करना पड़ा, महिलाओं को जौहर करना पड़ा, पर इतना करने के बाद रावल दूदा इतिहास में अपना नाम दर्ज कराने में सफल रहा|
राजस्थान के प्रथम इतिहासकार मुंहता नैणसी अपनी ख्यात में लिखता है- “एक दिन रावल दूदा दर्पण में मुख देखता था कि अपनी दाढ़ी में उसने एक श्वेत बाल देखा, उस वक्त उसे अपनी प्रतिज्ञा याद आई जो उसने मूलराज व रतनसी के साथ की थी| मन में सोचा कि जरा तो निकट आन पहुंची, यों ही मर जाऊँगा, इससे तो उत्तम यह है कि कोई ऐसा काम करूँ जिससे नाम रहे| अपना यह विचार उसने अपने भाई तिलोकसी को कहा और वह भी सहमत हुआ| तब दूदा तो गढ़ में रहा और तिलोकसी चारों और पादशाही इलाकों में लूट-मार करने लगा| कांगडेवाले को लूटकर बहुत सी घोड़ियाँ ले आया, लाहौर के पास से बाहेली गूजर की भैंसों का टोला लाया और सोने की मथानी भी| पादशाह के वास्ते पानीपंथ घोड़ों की सोहवत आती थी उसे मार ली| यह तो बड़े बड़े बिगाड़ थे, दूसरे भी कई उपद्रव किये| बादशाह (उस काल दिल्ली पर सुलतान फिरोज तुगलक था) ने क्रोधित हो फ़ौज विदा की| गढ़ का घेरा लगा, ये तो शाका करना चाहते ही थे, गढ़ सजा और युद्ध करने लगे| वर्षों तक विग्रह चला|”
आखिर जौहर शाका करना तय हुआ| रावल की राणी सोढ़ी ने रावल से उनके शरीर का कोई चिन्ह देने का निवेदन किया, रावल दूदा ने अपने पांव का अंगूठा काटकर दिया, उसी के साथ राणी जौहर की ज्वाला में कूद गई| दसमी के दिन जौहर हुआ और एकादशी को रावल दूदा के नेतृत्व में भाटियों में शाका किया और सब जूझ मरे| इस तरह जौहर और शाका का आयोजन कर, युद्ध में अप्रत्याशित वीरता का प्रदर्शन करते हुए अपने प्राणों का उत्सर्ग कर रावल दूदा जैसलमेर के इतिहास में अपना नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखवाने में कामयाब रहा|
आपको बता दें जैसलमेर के शासक मूलराज व उनके भाई रतनसी ने भी अल्लाउद्दीन खिलजी की सेना का मुकाबला करते हुए जौहर व शाका किया था, उनकी उस प्रतिज्ञा में दूदा भी शामिल था, लेकिन वक्त दूदा युद्ध में बच गया था और थारपारकर जाकर रहने लगा, बाद में जैसलमेर किले पर अधिकार कर जैसलमेर की गद्दी पर बैठा|
नोट : चित्र प्रतीकात्मक है|