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Tuesday, May 30, 2023

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इतिहास प्रसिद्ध ताकतवर दासी : रामप्यारी

राजस्थान में दास और दासी प्रथा सदियों तक चलती रही| इस कुप्रथा के परिणाम भी बड़े गंभीर और जहरीले निकले| इन दास दासियों ने भी राजस्थान के रजवाडों की राजनीती में कई महत्त्वपूर्ण कार्य किये|जोधपुर के शासक मालदेव की रानी को अपनी ही दासी भारमली के कारण अपने पति से जीवन भर रूठे रहना पड़ा तो जयपुर की एक दासी रूपा ने अपने षड्यंत्रों के चलते कई लज्जाजनक और निम्नकोटि के कार्य किये|तो मेवाड़ की दासी रामप्यारी ने अपनी चतुराई,समझदारी और दिलेरी से मेवाड़ में उस वक्त फैले गृह कलह को सुलझाने में जो भूमिका निभाई उसके चलते मेवाड़ के इतिहास में उसका नाम अमर हो गया|

राजस्थान के राजघरानों में जब राजा नाबालिग होते थे तो शासन की डोर उसकी माँ संभालती थी,मेवाड़ में जो रानी पुत्र के नाबालिग होने तक राजकार्य संभालती थी उसे बाईजीराज कहा जाता था| जब बाईजीराज राज कार्य संभालती थी तब राज्य के प्रधान व मुसाहिब अपना अपना कार्य उनकी सलाह से करते थे|इसी तरह मेवाड़ में जब महाराणा भीमसिंह नाबालिग थे तब राज कार्य उनकी माँ रानी झालीजी देखती थी| पर्दा प्रथा के कारण बाईजीराज झालीजी बाहर नहीं आ सकती थी| उनसे जिस मुसाहिब,प्रधान या सामंत को कोई चर्चा करणी होती थी वह उनके महल के दरवाजे पर आ जाता था और अपना कार्य रानी की दासी को बताता,दासी उसका संदेश लेकर बाईजीराज के पास जाती और उनका प्रत्युतर लाकर मुसाहिब या सामंत को सुनाती | ये कार्य बाईजीराज की मुख्य दासी करती थी जिसे बडारण कहा जाता था|

बाईजीराज झालीजी की एक दासी थी रामप्यारी जो बहुत होशियार थी वह मुसाहिबों के संदेश बाईजीराज तक पहुंचाते पहुंचाते इतनी होशियार हो गयी कि वह राजकार्य में दखल देने लग गयी| बाईजीराज ने उसे अपनी बडारण(मुख्य दासी) बना लिया|बाईजीराज कोई भी कार्य उसकी सलाह के बिना नहीं करती थी|पर्दा प्रथा के कारण बाईजीराज झालीजी के बाहर नहीं निकलने के चलते वह बाईजीराज झालीजी की आँख,कान बन गयी थी|पर इसने अपनी शक्ति का कभी दुरूपयोग नहीं किया बल्कि मेवाड़ के हित में सदुपयोग ही किया|उसने मर्दों से भी ज्यादा होशियारी और बहादुरी से काम किया|उसके हुक्म में एक शक्तिशाली रसाला (घुड़सवारों का दल)था| जिसे रामप्यारी का रसाला के नाम से जाना जाता था यही नहीं रामप्यारी की मृत्यु के बाद भी कोई सौ वर्ष तक उसका नाम रामप्यारी का रसाला ही रहा| देश के आजाद होने और मेवाड़ की सेनाओं का भारतीय सेना में विलय होने तक मेवाड़ की उस सैनिक टुकड़ी का नाम रामप्यारी का रसाला ही रहा|

प्रतिभा और कार्यक्षमता नैसर्गिक देन होती है उस पर किसी जाति विशेष की ठेकेदारी नहीं होती और यही कहावत मेवाड़ की बडारण रामप्यारी ने चरितार्थ कर दिखाई|

डा.रानी लक्ष्मीकुमारी चुंडावत ने अपनी राजस्थानी भाषा की पुस्तक “गिर ऊँचा ऊँचा गढ़ां” में “रामप्यारी रो रसालो” नामक कहानी लिखी है जिसमे रामप्यारी की राजनैतिक समझदारी,होशियारी और बहादुरी का रानी साहिबा ने बहुत बढ़िया चित्रण किया है |

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24 COMMENTS

  1. बहुत ही ज्ञानवर्धक जानकारी मिली कि भारतीय फ़ौज में "रामप्यारी का रसाला" का मूल उदगम क्या था. बहुत आभार. आगे भी प्रतिक्षा रहेगी.

  2. बहुत अच्छी जानकारी| यह तो सच है कि राजस्थान का इतिहास ऐसी गौरव गाथाओं से भरा पड़ा है किन्तु रामप्यारी का रसाला के बारे में जानकर बहुत अच्छा लगा|
    आपके लेख की प्रतीक्षा रहेगी|

  3. प्रतिभा और कार्यक्षमता नैसर्गिक देन होती है उस पर किसी जाति विशेष की ठेकेदारी नहीं होती और यही कहावत मेवाड़ की बडारण रामप्यारी ने चरितार्थ कर दिखाई
    सही है .. रामप्यारी की राजनैतिक समझदारी,होशियारी और बहादुरी का रानी साहिबा द्वारा किए गए चित्रण के हिंदी अनुवाद का इंतजार रहेगा !!

  4. रामप्यारी के बारे में जानना रुचिकर रहा। भारमली की कहानी एक बार एक पत्रिका में पढ़ी थी।

    आप पूर्णविराम की जगह पर पाइप साइन का प्रयोग करते हैं। शायद आप गूगल आइऍमई का प्रयोग कर रहे हैं। यह पोस्ट देखें।

    गूगल आइऍमई में पूर्णविराम (तथा अन्य देवनागरी चिह्न) कैसे जोड़ें

  5. आपके ब्लॉग पर इस कहानी को पढ़ को झलकारी बाई की भी याद आई जो लक्ष्मीबाई की हमशक्ल थी. अंग्रेज़ों की फौज द्वारा घेर लिए जाने पर उसने रानी को महल से भागने में न केवल सहायता की बल्कि रानी का बाना धारण करके महल में अंग्रेज़ों की फौज से लड़ती हुई शहीद हो गई.
    ऐसी कथाएँ इतिहास के हाशिए पर भी नहीं आ पातीं. उन्हें यहाँ लाने का आपका प्रयास प्रशंसनीय है.

  6. अब आपका ब्लोग यहाँ भी आ गया और सारे जहाँ मे छा गया। जानना है तो देखिये……http://redrose-vandana.blogspot.com पर और जानिये आपकी पहुँच कहाँ कहाँ तक हो गयी है।

  7. ये मेवाड़ की क्षत्रिय पृष्टभूमि जो सूर्य को जल चढाती का प्रभाव हैं, ये एकलिंगनाथ जी की कृपा धरती है, यहाँ की कर्तव्यों का ही पालनार्थ ही प्रितिभागी पैदा होते हैं,

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