राजस्थान में दास और दासी प्रथा सदियों तक चलती रही| इस कुप्रथा के परिणाम भी बड़े गंभीर और जहरीले निकले| इन दास दासियों ने भी राजस्थान के रजवाडों की राजनीती में कई महत्त्वपूर्ण कार्य किये|जोधपुर के शासक मालदेव की रानी को अपनी ही दासी भारमली के कारण अपने पति से जीवन भर रूठे रहना पड़ा तो जयपुर की एक दासी रूपा ने अपने षड्यंत्रों के चलते कई लज्जाजनक और निम्नकोटि के कार्य किये|तो मेवाड़ की दासी रामप्यारी ने अपनी चतुराई,समझदारी और दिलेरी से मेवाड़ में उस वक्त फैले गृह कलह को सुलझाने में जो भूमिका निभाई उसके चलते मेवाड़ के इतिहास में उसका नाम अमर हो गया|
राजस्थान के राजघरानों में जब राजा नाबालिग होते थे तो शासन की डोर उसकी माँ संभालती थी,मेवाड़ में जो रानी पुत्र के नाबालिग होने तक राजकार्य संभालती थी उसे बाईजीराज कहा जाता था| जब बाईजीराज राज कार्य संभालती थी तब राज्य के प्रधान व मुसाहिब अपना अपना कार्य उनकी सलाह से करते थे|इसी तरह मेवाड़ में जब महाराणा भीमसिंह नाबालिग थे तब राज कार्य उनकी माँ रानी झालीजी देखती थी| पर्दा प्रथा के कारण बाईजीराज झालीजी बाहर नहीं आ सकती थी| उनसे जिस मुसाहिब,प्रधान या सामंत को कोई चर्चा करणी होती थी वह उनके महल के दरवाजे पर आ जाता था और अपना कार्य रानी की दासी को बताता,दासी उसका संदेश लेकर बाईजीराज के पास जाती और उनका प्रत्युतर लाकर मुसाहिब या सामंत को सुनाती | ये कार्य बाईजीराज की मुख्य दासी करती थी जिसे बडारण कहा जाता था|
बाईजीराज झालीजी की एक दासी थी रामप्यारी जो बहुत होशियार थी वह मुसाहिबों के संदेश बाईजीराज तक पहुंचाते पहुंचाते इतनी होशियार हो गयी कि वह राजकार्य में दखल देने लग गयी| बाईजीराज ने उसे अपनी बडारण(मुख्य दासी) बना लिया|बाईजीराज कोई भी कार्य उसकी सलाह के बिना नहीं करती थी|पर्दा प्रथा के कारण बाईजीराज झालीजी के बाहर नहीं निकलने के चलते वह बाईजीराज झालीजी की आँख,कान बन गयी थी|पर इसने अपनी शक्ति का कभी दुरूपयोग नहीं किया बल्कि मेवाड़ के हित में सदुपयोग ही किया|उसने मर्दों से भी ज्यादा होशियारी और बहादुरी से काम किया|उसके हुक्म में एक शक्तिशाली रसाला (घुड़सवारों का दल)था| जिसे रामप्यारी का रसाला के नाम से जाना जाता था यही नहीं रामप्यारी की मृत्यु के बाद भी कोई सौ वर्ष तक उसका नाम रामप्यारी का रसाला ही रहा| देश के आजाद होने और मेवाड़ की सेनाओं का भारतीय सेना में विलय होने तक मेवाड़ की उस सैनिक टुकड़ी का नाम रामप्यारी का रसाला ही रहा|
प्रतिभा और कार्यक्षमता नैसर्गिक देन होती है उस पर किसी जाति विशेष की ठेकेदारी नहीं होती और यही कहावत मेवाड़ की बडारण रामप्यारी ने चरितार्थ कर दिखाई|
डा.रानी लक्ष्मीकुमारी चुंडावत ने अपनी राजस्थानी भाषा की पुस्तक “गिर ऊँचा ऊँचा गढ़ां” में “रामप्यारी रो रसालो” नामक कहानी लिखी है जिसमे रामप्यारी की राजनैतिक समझदारी,होशियारी और बहादुरी का रानी साहिबा ने बहुत बढ़िया चित्रण किया है |
24 Responses to "इतिहास प्रसिद्ध ताकतवर दासी : रामप्यारी"