आसोप फोर्ट : जोधपुर जिले के आसोप कस्बे के बीचों-बीच बना है मांडण गढ़ Asop Fort| आसोप ठिकाने की स्थापना वीरवर राव कूंपाजी के पुत्र राव मांडणजी की | मारवाड़ रियासत में आसोप ठिकाने की गिनती प्रथम श्रेणी ठिकानों में थी | अनूठी गौरवशाली परम्पराओं को समेटे आसोप का यह गढ़ ऐतिहासिक गौरव और स्थापत्य कला का एक उत्कृष्ट नमूना है | स्थापत्य कला व विशालता की दृष्टि से मारवाड़ के गढ़ों में इसे श्रेष्टतम व भव्यता की श्रेणी में रखा जा सकता है। जोधपुर जिले के ग्रामीण अंचल में इस गढ़ की बराबरी करने वाला कोई दुसरा गढ़ नहीं है।
यह गढ़ शताब्दियों पुराना है। हालाँकि इसकी नींव किसने रखी इसके तो प्रमाण नहीं है लेकिन वि.सं. 1600 में आसोप के शासक रहे राव मांडण के नाम पर यह गढ़ मांडण गढ़ के नाम से जाना जाता है। स्थानीय स्त्रोतों से पता चलता है कि बेशक यहाँ राव मांडण से पूर्व अन्य शासक थे पर इसका निर्माण राव मांडण ने ही कराया था और उनके उत्तराधिकारियों ने समय समय पर इसका विस्तार किया| गढ़ का द्वितीय द्वार यानी बिचला दरवाजे को मांडण पोल कहा जाता है, जिसका निर्माण राव मांडण जी ने करवाया था | बाद में समय-समय पर इसमें मांडण के वंशजों ने निर्माण कार्य कराकर इस गढ़ यह भव्य रूप दिया। गढ़ में कई विशाल महल, मंदिर, अश्वशालाएं, कचहरी, कलात्मक दरवाजे, दरीखाने, झरोखे, रानियों के महल व ऊँचे-ऊँचे बुर्ज बने हुए है। गढ़ के मुख्य द्वार पर फ़तेह पोल बनी हुई है। इसका निर्माण वि.सं. 1987 में ठाकुर फ़तेहसिंहजी ने कराया। मुख्य द्वार पर बने इस पोल विशाल दरवाजे को जिसे बड़ी पोल कहा जाता है, बड़े ही कलात्मक ढंग से बनाया गया है। पोल के ऊपर व दांई-बांई ओर कई कमरे निर्मित है।
आसोप फोर्ट की पोल के अंदर प्रवेश करते ही खुला मैदान है। मैदान के एक तरफ कई कमरे बने हुए है। यहां से गढ़ के मुख्य परिसर में प्रवेश करने के लिए एक विशाल दरवाजा बना है जिसे मांडण पोल कहा जाता है । मांडण पोल के अंदर गढ़ के सभी सुन्दर महल स्थित है। मांडण पोल से अन्दर प्रवेश करते ही सामने एक सुन्दर दरीखाना नजर आता है | इसी खुबसूरत दरीखाने में बैठकर यहाँ के शासक प्रशासनिक कार्य करते थे और गढ़ में आने वाले आम जन से लेकर खास व्यक्ति तक मिलते थे | एक तरह से यह दरीखाना ही यहाँ के शासकों का दरबार था | दरीखाने के सामने बने चबूतरे के नीचे वर्षा जल संग्रह करने हेतु एक विशाल हौज बना है, जो गढ़ में रहने वालों की वर्षभर की जल की आपूर्ति करने में सक्षम था | यह हौज आज भी वर्षा जल से भरा रहता है पर पीने के काम नहीं लिया जाता | दरीखाने के पास से ही एक रास्ता मांडण की साल की ओर जाता है | इस साल के पास महलों के बीच में कूंपावत राठौड़ों की आराध्य चामुंडा माता का मंदिर बना है जिसमें देवी की आदम कद प्रतिमा लगी है | देवी मंदिर के प्रांगण के नीचे भी एक तलघर बना है जो कभी खाद्य सामग्री रखने के काम आता था |
ठाकुर फतेहसिंहजी ने वि.सं. 1985 में आसोप फोर्ट के अंदर ‘फतेह निवास’ नाम से अत्यन्त सुन्दर महल बनाया। विसं. 1987 में ठाकुर फतेहसिंहजी ने गढ़ में कचहरी का निर्माण कराया। वि.सं. 1989 में अपने प्रथम पुत्र देवीसिंह के नाम से गढ़ के पश्चिमी हिस्से में अश्वशाला के ऊपर “देवी निवास” नामक महल बनाया। वि.सं. 1990 में उन्होंने ‘देवी निवास के ऊपर एक चातुर्मास में रहने के लिए ‘छबी निवास’ के नाम से एक कक्ष बनवाया। वि.सं. 1994 में उन्होंने गढ़ के बगीचे के अंदर एक अनोखे प्रकार का मकान बनाया। इस प्रकार ठाकुर फ़तेहसिंहजी ने अपने शासन के दौरान गढ़ में अनेक महल व दरवाजे बनाए जो आज भी गढ़ में शान से खड़े है। ठाकुर फ़तेहसिंहजी की तरह ठाकुर चैनसिंहजी ने भी गढ़ में अनेक निर्माण कार्य कराए जो आज भी गढ़ की शोभा में चार चांद लगा रहे है। इन्होंने दुर्ग के अंदर एक अश्वशाला बनाई । ठाकुर चैनसिंहजी ने ‘चैनसुख निवास’ नाम से एक विशाल दर्शनीय भवन बनाया। इसकी रचना व सुंदरता मन-मोहक है। यह भवन जनाना भाग में बनाया गया है। गढ़ के अंदर चैनसुख निवास’ के पास श्री श्यामजी भगवान का मंदिर निर्मित है। गढ़ के बीच के दरवाजे के अंदर बांई तरफ ‘मित्र निवास’ के नाम से एक सुंदर बंगला निर्मित है। यह बंगला गर्मियों में ठण्डा व सर्दियों में गर्म रहता है। ठाकुर चैनसिंहजी का निवास प्रायः इसी में रहता था। यह आधुनिक शैली से निर्मित है।
आसोप फोर्ट के बीच के दरवाजे के ऊपर 125 फीट की ऊंचाई पर “चित्रसारी’ बनी हुई है। यहां से 8-10 मील की दूरी का दृश्य दिखाई देता है। राज-परिवार वर्षा ऋतु में इस महल से प्राकृतिक सौंदर्य का अवलोकन करते थे। इसके अतिरिक्त ठाकुर चैनसिंहजी ने गढ़ में मोटरालय व बागर का बड़ा दरवाजा बनवाया। उन्होंने नाहरसिंह के महल व दरीखाने के ऊपर के झरोखों व राजमहल का जिर्णोदार कराया। इसके अलावा गढ़ में छत्रशाली व पीतम निवास भी निर्मित है। इस प्रकार ठाकुर चैनसिंहजी ने गढ़ में कई उल्लेखनीय निर्माण कराए जो आज भी गढ़ के अंदर मौजूद है। गढ़ के बीचों बीच दो उंचे-उंचे बुर्ज बने हुए है जो दूर-दूर से दिखाई पड़ते है। बेजोड़ स्थातपत्य कला की यह नायाब कलाकृति हर किसी का मन मोह लेती है। दुर्ग में कई सुरंगे भी है जो दुर्ग को आस-पास के मंदिरों से जोड़ती थी। राज-परिवार की महिलाएं इन्हीं सुरंगों के माध्यम से मंदिरों में पूजा अर्चना के लिए जाती थी।
दुर्ग के अंदर बने महल व उनमें लगे राजाओं के चित्र इस रियासत की गौरवशाली परम्परा, प्राचीनता व वीरता के प्रमाण है। रियासती काल में सदियों तक राजाओं के आवास के रूप में काम आने वाले इस गढ़ में वर्तमान समय में पूर्व राज-घराने के वंशज निवास कर रहे है।
फ़तेह पोल के पास ही शिवजी का एक प्राचीन मंदिर है | फ़तेह पोल के बाहर राठौड़ों के आराध्य चारभुजा नाथ का मंदिर बना है | मंदिर की जालीदार खिड़कियाँ, झरोखे और चित्रकला देखने लायक है | गढ़ के पास ही गोवर्धन मंदिर बना है | गांव में जैन मंदिरों के साथ कई अन्य मंदिर बने है जो यहाँ के निवासियों की आस्था के प्रतीक है | यहाँ के मंदिरों की पूरी जानकारी हम अलग वीडियो में देंगे | गांव के बाहर तालाब के किनारे योद्धाओं की स्मारक रूपी कलात्मक छतरियां बनी है | गांव में रियासतकालीन कई तालाब बने है जिनमें आज भी वर्षाजल संग्रह होता है ग्रामीण उसे पेयजल के रूप में इस्तेमाल करते हैं |