आशियाने
देखा होगा सागर किनारे मिट्टी के घरोंदो को टूटते हुए …….उन पर बच्चो को रोते हुए ……….पर .…….पर …….देखा है मेने घरो को उजड़ते हुए …….जवानों को देखा है मैने झोपड़े हटाते हुए ………बच्चो को चिलाते हुए ….माँ को सहलाते हुए ……….पास की इमारत के लोग देख रहे है इस नज़ारे को अपनी खिडकियों से ……..प्यासे के पानी मांगने पर भगा रहे है झिडकियो से ……….देखा है मैने घरो को उजड़ते हुए …………….देखा है शान से लोगो को वहाँ खड़े हुए …………..देख रहे है जो तिनको को बिखरते हुए ,……….किसी के आशियाने को उजड़ते हुए धुल को उड़ते हुए ……देखा है मैने घरो को उजड़ते हुए …………..झोपड़े ही क्यों देखा है मैने दुनिया की ऊँची इमारतों में रहने वालो को भी बिलखते हुए ……देखा है मैने वर्ल्ड ट्रेड सेंटर से हवाई विमान टकराते हुए ………देखा है मैने घरो को उजड़ते हुए ……………….

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