पिछले दिनों फेसबुक संगोष्टी में चर्चा के दौरान एक फेसबुक मित्र ने बताया कि- “फेसबुक पर एक हिंदी के प्रोफ़ेसर ने अपना दर्द बयां किया कि- “पहले छात्र हिंदी के प्रोफ़ेसर के पाँव छूते थे पर आजकल छात्र गणित व विज्ञान विषयों के प्रोफेसरों के पैर छूते है पर हिंदी प्रोफ़ेसर का आदर नहीं करते|”
प्रोफ़ेसर के इस फेसबुक स्टेटस पर उस मित्र ने कमेंट कर प्रोफ़ेसर साहब को आदर पाने का भूखा बताया तो उन्होंने उसे ब्लाक कर दिया|
यह बात सुन मुझे पिछले दिनों घटा एक बारहवीं कक्षा के छात्र का मामला याद आ गया, पिछले दिनों अपने ही एक निकट सम्बंधी बच्चे की शिकायत मिली कि- “यह विद्यालय में अपने अध्यापकों की इज्जत नहीं करता और अभी कुछ दिन पहले विज्ञान के अध्यापक के मुंह पर यह परीक्षा कॉपी फैंककर मार आया|”
घर पर बच्चे की इस हरकत का पता चलने पर उसे घर में सजा भी दी गई पर बच्चे ने ऐसा क्यों किया ? उस पर अभिभावकों ने कोई ध्यान नहीं दिया उल्टा अध्यापक की बच्चे द्वारा बताई गलतियाँ अनसुनी कर दी गई कि- “गुरु है कुछ भी करे उनका आदर करते हुए बर्दास्त करो|
थोड़ी ही देर में मेरा बच्चे से मिलना हुआ, सबसे पहले मैंने बच्चे को बिना तैयारी किये NDA की परीक्षा पास कर लेने की शाबासी दी तो बच्चा तुरंत बोल पड़ा- “इस शाबासी का हकदार मैं नहीं ! मेरे गणित के टीचर है, यह क्रेडिट आप उनको दीजिए|”
एक ऐसे बच्चे के मुंह से अपने शिक्षक के प्रति आदर सूचक शब्द सुन जिस पर आरोप है कि वह अपने शिक्षकों का आदर करना नहीं जानता, मैं चौंका और फिर मैंने बच्चे से उसके शिक्षकों के बारे में बातचीत की|
गणित के शिक्षक के बारे में बच्चा बताने लगा कि- “वे इतना बढ़िया पढ़ाते है कि हर बच्चा उनका आदर करता है, अच्छी पढ़ाई के साथ उनका व्यवहार भी सबके लिए एक जैसा होता है भले कोई छात्र उनके पास ट्यूशन पढता है या नहीं| फिर जो छात्र ट्यूशन फीस नहीं दे सकते उनकों वे शिक्षक मुफ्त ट्यूशन पढ़ा देते है, यही नहीं जो छात्र जितनी ट्यूशन फीस खुश होकर या अपनी आर्थिक हैसियत के अनुसार दे देता है वे बिना कुछ बोले रख लेते है और कोई भेदभाव नहीं|”
विज्ञान के उन शिक्षक महोदय के बारे में बताने पर छात्र ने बताया- “उनकी कोई इज्जत नहीं करता वे उनके पास ट्यूशन ना पढ़ने वालों से भेदभाव करते है परीक्षा में नंबर भी कम देते है साथ ही कक्षा में उल्टे सीधे डायलोग व गलियां बकते रहते है| छात्रों को व्यक्तिगत ही नहीं बल्कि उनकी पुरी जाति तक पर कमेन्ट कर छात्रों के स्वाभिमान को ठेस पहुंचाते रहते है, इसलिए कोई भी स्वाभिमानी छात्र उनके साथ वैसा ही सलूक करता है जैसा मैंने किया| यदि यह गलत भी है तो मैं उस शिक्षक के साथ बार बार ऐसी गलती करूँगा और उस स्कूल की पढाई पुरी होने के बाद कभी उसे सबक भी सिखाऊंगा|”
मुझे बात समझ आ गई, कि बच्चे ने उस शिक्षक के साथ दुर्व्यवहार नहीं क्रिया के विपरीत प्रतिक्रिया के तौर पर व्यवहार किया था जिसे दुर्व्यवहार का दर्जा दे बच्चे को ही दण्डित किया जा रहा था|
आदर उसी को मिलता है जो आदर पाने की पात्रता रखता हो| बेशक कोई शिक्षक हो, पिता हो, घर का कोई बुजुर्ग हो, देश का कोई बड़ा नेता हो, कार्यालय को कोई बड़ा अधिकारी हो, यदि उसमें आदर पाने की पात्रता नहीं तो उसे कोई इस वजह से आदर नहीं देगा कि यह अपने अपने बड़ा मात्र है|
जिन प्रोफ़ेसर साहब की फेसबुक मित्र बात कर रहे थे उनका ब्लॉग मैंने बहुत पढ़ा है वे हर वक्त अपने ब्लॉग पर अपनी वामपंथी राजनैतिक सोच का प्रलाप करते रहते है, ऐसी ऐसी बेहूदी बातें लिखते है कि उनके छात्र ही क्यों मेरे जैसा उनका ब्लॉग पाठक भी उनसे घृणा लगा| एक तरफ वे धर्म को नशा बताते नहीं थकते, हिंदू धर्म और हिंदू देवताओं, हिंदू साधु महात्माओं को गरियातें रहते है उन्हीं प्रोफ़ेसर साहब के एक लेख से पता चला कि उनके परिजनों के पास एक पुश्तैनी मंदिर है जिस पर उनका भी मालिकाना हक है और धार्मिक नगरी में होने के चलते मंदिर में बहुत श्रद्धालु भी आते है जो चढ़ावा भी चढाते है| जाहिर है यह चढ़ावा प्रोफ़ेसर साहब के परिजनों की जेबों में ही जाता है|
प्रोफ़ेसर साहब हो या कोई भी,इज्जत देने से इज्जत मिलती है,,,,
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आदर अभी भी है, बस योग्य बनना पढ़ता है..
इज्जत चाहने के लिए उसकी पात्रता रखना भी अति आवश्यक है,दुसरे की भावनाओं को ठेस पंहुचा कर मान की अपेक्षा करना बेमानी है )
अच्छी घटना बताई आपने। आज कल स्कूल-कॉलेजों में यही हो रहा जो बच्चा स्कूल के टीचर से ट्यूशन पढ़ता है उसे वही टीचर ज्यादा नंबर देते है और जो बच्चा उनसे ट्यूशन नहीं पढ़ता है तो वो उसपे दबाव डालते है की तुम मुझ से ट्यूशन पढ़ लो वरना में तुम्हें कम नंबर देकर फेल कर दूँगा।
नये लेख :- समाचार : दो सौ साल पुरानी किताब और मनहूस आईना।
एक नया ब्लॉग एग्रीगेटर (संकलक) : ब्लॉगवार्ता।
पात्रता हो तो सम्मान मिले ….. नहीं तो समझें कि दिखावा हो रहा है और दिखावे का सम्मान न ही मिले….
शिक्षक का आदर विद्यार्थियों से उनके व्यवहार और पढ़ाने के ढंग पर भी निर्भर करता है ! भी इसलिए कि कई बार दुराग्रही छात्र बिना कारण भी शिक्षक का अपमान करते हैं !
शिक्षक और बच्चे समाज का ही तो अंग हैं. पतन चहुंमुखी है.
सही संकेत मिलता है इस घटना से ..और इस बात की पुष्टि भी होती है कि अगर कोई दूसरों से इज्ज़त चाहता है तो उसे औरों की इज्ज़त करना भी आना चाहिए.