अभी कुछ दिन पहले गाँव गई थी तो शाम के वक्त घूमते घूमते खेतों की तरफ निकल गई .वापस लौटते समय रास्ते में बहुत धुल उड़ रही थी क्योंकि मेरे साथ लौट रहे थे सारे चरवाहा अपने अपने पशुधन को लेकर और और वो धूल उड रही थी उनके पशुधन के पैरों से, पता है मैनें देखा की वो सभी पशु अपने ग्वाले से आगे भाग रहे थे उन्हें बहुत जल्दी थी घर जाने की .और वे पशु अपने-अपने बाड़ों मे सीधा घुस गए और अपने अपने बछड़ों को गले लगा लगा कर चूम रहे थे चाट रहे थे बहुत अच्छा लग रहा था देख कर….उसी समय आसमान में भी यही नजारा था वहां भी पक्षियों का झुण्ड का झुण्ड उड़ा जा रहा था अपने घोसलों की तरफ हां में बस उनके साथ उड़ नहीं पाई, पर मे पुरे विश्वास के साथ कह सकती हूं की वो भी अपने बच्चों को इसी तरह दुलार रहे होंगे .
बस सोचते सोचते गाँव मे प्रवेश कर लिया तभी देखा एक काकी जो जाति से कुम्हार है ओर और भी कई जाति की औरतें थी जिसमे मैं राजपूतों का नाम भी लेना चाहुंगी .आपस मे बातें कर रही थी कि ६ बजे वाली गाड़ी तो कब की निकल गई पर अभी तक मेरे वो नहीं आये घर पर वो से मतलब पति परमेश्वर से था .मेरा घर पास मे ही था तो मै भी वहीं बाते करने लग गई बातों ही बातों मे २ घंटे कब बीत गए पता ही नहीं चला पर तब तक उनके वो नहीं लौटे. मैने पूछा काकी कहां रुक गए तो बोली आज लगता है कि स्टेशन [दारू की दुकान ]पर रुक गए है अब आयेगें तो आज घर मै तो महाभारत होनी है .ये सुन कर बहुत दुःख हुआ .थोडा आगे आई तो मैनें हमारी पड़ोसन को आवाज लगाई, भोजाई सो गई क्या ?तो वो भाग कर बहार आई और बोली नहीं नहीं म्हारा बेटा अभी कहां सोना ,आज तो आपका भाई चढ़ा के आया है आज नींद कहां ? आज तो सारी रात रातिजगो लागेलो वो भी गालियों का,सुन कर बहुत दुःख हुआ पर ये सच है सिर्फ गाँवो का ही नहीं शहरों का भी. तो क्या अब ये मान लिया जाये कि एक परिवार का मुखिया होना इन्सान से ज्यादा अच्छे से पशु और पक्षी निभाते है ,मानना क्या है सामने है आपके .मै इस बारे मे ज्यादा कुछ नहीं कहुंगी पर………अब ख्याल है आ गया सो आ गया जी…….जब जानवर भी शाम को अपने घरो की तरफ भागता है तब हम इन्सान मदिरालय या फिर कोई ओर ठिकाना क्यों ? हम क्यों नहीं अपने बीवी बच्चो के पास भागते हुए आते है खैर ये सब का सच नहीं है पर हां ये ख्याल झूठां भी तो नहीं है ना…….
केसर क्यारी (उषा राठौड़)
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