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Friday, June 9, 2023

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अश्वमेघ यज्ञ का स्वांग

जयपुर के महाराजा जयसिंह जी ने बड़ी लगन और हसरतों के साथ वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाते हुए जयपुर नगर बसाया | देश विदेश से नगर बसाने के लिए विशेषज्ञ व कारीगर बुलवाए | पुर्तगाल तक से शहर के मानचित्र बनवाये,पंडित विद्याधर जैसे उच्च कोटि के शिल्पी के मार्गदर्शन में हजारों कारीगरों ने जयपुर नगर की भव्य इमारतें,महल,बाजार दुकाने,चौड़ी चौड़ी सड़कें , चौराहों पर चोपड़ ,पानी की प्याऊ आदि बड़े ही सलीके से एक एक इंच नाप चोक कर बनाई | ज्योतिष विज्ञान में पारंगत महाराजा ने पुर्तगाली ज्योतिष विशेषज्ञों के सहयोग से जंतर मंतर बनवाकर बड़ा नाम कमाया |
इस तरह कई अच्छे अच्छे कार्य करने के बाद महाराजा को उनके नजदीकी लोगों ने अश्वमेघ यज्ञ करने की सलाह दी जिसकी इच्छा महाराजा जयसिंह जी के मन में भी थी | सो अश्वमेघ यज्ञ की तैयारियां शुरू हुई | पूरा प्रबंध होने के बाद विधि विधान से अश्वमेघ यज्ञ शुरू हुआ | अब अश्वमेघ यज्ञ की विधि अनुसार अश्वमेघ का घोड़ा छोड़ने की बारी आई | विचार हुआ कि अश्वमेघ का घोड़ा छोड़ा तो वो बाहर जायेगा और वह बाहर जायेगा तो कोई न कोई उसको पकड़ेगा और युद्ध होगा क्योंकि एक तरफ जोधपुर के राजा अजीतसिंह जी जयपुर से नाराज थे तो दूसरी और मेवाड़ वाले भी किसी बात को लेकर जयपुर से खफा था | इसलिए तय किया गया कि अश्वमेघ का घोड़ा सिर्फ जयपुर शहर में ही घुमाया जायेगा, सो जयपुर शहर के परकोटे के सभी द्वार बंद कर अश्वमेघ का घोड़ा छोड़ा गया | उसके पीछे रक्षा के लिए ठीक रामजी की सेना की तरह जयपुर की सेना की एक शस्त्रों से सुसज्जित टुकड़ी चली |खुद महाराजा जयसिंह जी हथियारों से लेश हो घोड़े पर सवार हो, धनुष पर तीर चढ़ाये अश्वमेघ के घोड़े के पीछे पीछे चले |
जयसिंह जी के पास ही भांडारेज के दीपसिंहजी रहते थे जो महाराजा जयसिंह जी खास मर्जीदानों में से एक थे | जब दीपसिंहजी ने अश्वमेघ का घोड़ा और उसके पीछे हथियारों से लेश चलती जयपुर की सेना देखि तो सोचा ये क्या नाटक है ? शहर के सभी दरवाजे बंद है और महाराजा शस्त्रों से सुसज्जित योद्धाओं के साथ किससे लड़ने जा रहे है ? यदि ऐसे ही योद्धा है तो घोड़े को शहर से बाहर क्यों नहीं निकालते ? इस तरह अश्वमेघ यज्ञ व वीरता का नाटक करना तो राजपूती और वीरता दोनों का अपमान है | इस तरह का स्वांग तो अपनी खुद की हंसी उड़ाने का भोंडा प्रयास है |
इस तरह अश्वमेघ यज्ञ का स्वांग देखकर दीपसिंहजी के मन में कई तरह के विचार आये | और जैसे ही अश्वमेघ का घोड़ा उनकी हवेली के आगे से गुजरा उन्होंने झट से उसे पकड़कर अपनी हवेली में लाकर बाँध दिया | हवेली के दरवाले बंद कर खुद अपनी हवेली की छत पर जाकर खड़े हो गए | महाराजा जयसिंह जी ये सब देख चकित रह गए फिर संभल कर दीपसिंह जी को आवाज दी-
” शाबास ! देखली आपकी बहादुरी और हिम्मत | आज तो आपने अश्वमेघ का घोड़ा पकड़कर नाम कमा लिया | अब घोड़ा छोड़ दो |
“नाम हो गया या अश्वमेघ का घोड़ा छोड़ने पर नाम डूब जायेगा ? आपने अश्वमेघ का घोड़ा छोड़ा है या खेल कर रहे है ? यदि इसी तरह अश्वमेघ यज्ञ हों और सम्राट की उपाधियाँ मिले तो एसा खेल तो कोई भी रच लेगा ? बिना युद्ध हुए और लहू की नदियाँ बहे अश्वमेघ यज्ञ कभी पूरा नहीं होता | बिना युद्ध के तो ये सिर्फ स्वांग है स्वांग | आप जिस तरह से बंद परकोटे में सेना सजाकर अश्वमेघ के घोड़े के पीछे निकले है ये राजपूती के लिए ललकार है और इस ललकार को एक राजपूत होने के नाते मैंने स्वीकार किया है| महाराज शस्त्र उठाईये और युद्ध कर घोड़ा ले जाईये |”
और अपने बीस पच्चीस साथियों व सेवको के साथ दीपसिंह तो तलवार ले जयपुर के सैनिको पट टूट पड़ा उसने वीरता पूर्वक युद्ध कर ऐसी धमाल मचाई कि -महाराजा जयसिंह को भी यज्ञ का घोड़ा छुडवाने का मजा आ गया | और इस युद्ध में दीपसिंहजी वीरगति को प्राप्त हो गए पर महाराज जयसिंह के अश्वमेघ यज्ञ को स्वांग से असली बना गए |

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12 COMMENTS

  1. बहुत ही सुंदर बचपन मे बूंदी के एक वीर की कहानी पढ़ी थी जिसने स्वाण्ग रचित युद्ध मे भी डटकर सामना किया था याद तो पूरा नही पर आशा है आप उसे भी पढ़वा ही देंगे वीरभूमी से वीरता के संदेश हेतु धन्यवाद

  2. राजस्थान की सुन्दरता मान सम्मान के किस्से सूना रहे हैं रतन सिंह
    राजस्थान की धरती पर जन्मे ,एक क्षत्रिय परिवार के रतनसिंह शेखावत ,चाहे इन दिनों, दिल्ली में रहकर अपना रोज़गार चला रहे हों ,लेकिन राजस्थानी धरती से ,राजस्थान की मिटटी से, आज भी उनका अनोखा रिश्ता है ,प्यार का समर्पण का रिश्ता है ,और इसीलियें, उन्होंने अपनी लेखनी से राजस्थान की राजपूती आन बान शान के सभी साहसिक किस्से और सोंदर्य का रूप वर्णन अपने ब्लॉग ज्ञान दर्पण में भर दिया है ………………
    रतन सिंह शेखावत ने सीकर के जिले के भगतपुरा गाँव में एक जागीरदार राजपूत परिवार के यहाँ जन्म लिया और खामा घनी से लेकर राजपूती आन बान शान के सभी तोर तरीके सीखे,सारा देश जानता है के राजाओं का राज्य राजस्थान देश भर में अपनी ताकत,अपना साहस , अपने बलिदान, वफादारी ,राष्ट्रीयता के लियें अलग पहचाना बनाये हुए हैं यहाँ की सुन्दर हवेलियाँ, सुरक्षित दुर्ग, और राजसी ठाठ बाठ वाले महल, देखने के लियें आज भी देश विदेश से पर्यटक आ रहे हैं ,और आपणों राजस्थान के किस्से ,यहाँ से लेकर मदमस्त होकर जा रहे हैं ………………..
    रतन सिंह शेखावत एक ऐसे ब्लोगर हैं ,जिन्होंने राजस्थान के इतिहास,यहाँ के पर्यटन, यहाँ के सोदर्य को जीवंत कर दिया है ,और ऐतिहासिक धरोहर के साथ साथ ,ऐतिहासिक गाथाओं को जो वर्णन दिया है, उसने तो राजस्थान सरकार ,पर्यटन विभाग और शोधकर्ताओं की सारी मुसीबते खत्म कर दी हैं, कोई छात्र अगर राजस्थान की हवेलियों, यहाँ की लोक कथा ,राजस्थान के राजपूतों की बहादुरी के किस्से,पर शोध ग्रन्थ लिखना चाहता है, तो बस ज्ञान दर्पण देख ले उसकी सारी ख्वाहिशें पूरी हो जायेंगी और इसके लियें भाई रतन सिंह शेखावत जी ने जो महनत जो लगन से इस ज्ञान दर्पण में वर्ष २००८ से ब्लोग्गिं की है ,उससे तो राजस्थान और राजस्थान का राजपूत,क्षत्रिय समाज भाई रतन सिंह शेखावत का ऋणी हो गया है, इनके इस ब्लॉग को देख कर लगता है के भाई रतन सिंह जी ने अपने राजपूत होने ,और राजपूत के घर में जन्म लेने,का ऋण इस ब्लोगिंग से उतार दिया है ..एक ड्रेस डिजायनिंग कम्पनी दिल्ली में काम करने वाले भाई रतन सिंह जी अपनी समस्त जिम्मेदारियों के बाद ब्लोगिग्न का वक्त निकालते हैं ,और इन्होने नोव्म्बर २००८ से जो ब्लोगिग्न की बस फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा इनके आलेख कई अख़बारों में भी प्रकाशित हुए है ,पूर्ण रूप से क्षत्रिय संस्क्रती के समर्थक भाई रतनसिंह शेखावत क्षत्रिय राजपूत समाज के कल्याणकारी सेवा कार्यों से भी जुड़े हुए हैं और सामाजिक कार्यों में लगातार जुड़े रहने से यह राजपूत समाज के हीरो तो है ही ,लेकिन राजपूत ब्लोगिग्न के भी सुपर स्टार हीरो बन गए हैं, अब तक इनका अनुसरण २४८ लोग कर रहे हैं और हजारों हजार र्लोग इनके ब्लॉग को बढ़े चाव ,बढ़े विशवास के साथ पढ़ रहे हैं ,अपने विचार और प्यार की टिप्पणियाँ इस ब्लॉग पर दे रहे हैं ……….अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

  3. @ Rahul Singh ji

    बात प्रेरक और अनुकरणीय की नहीं |
    ये कहानी उस विचित्र राजपूत चरित्र को दर्शाती है जिसमे छोटी छोटी बात के लिए भी राजपूत योद्धा प्राणोत्सर्ग करने को तैयार रहते थे | इस कहानी में वीर दीपसिंह को लगा कि राजा द्वारा किया जाने वाला यज्ञ तो मात्र स्वांग भर रह जायेगा,अश्वमेघ यज्ञ बिना रक्त पात के कैसे संभव हो सकता है सो उसने अपना रक्त बहाकर उस यज्ञ को स्वांग से असली बना दिया |
    इस तरह के चरित्र को विचित्र चरित्र ही कहेंगे कि -एक योद्धा अपने स्वामी के यज्ञ को असली बनाने के लिए प्राणोत्सर्ग कर देता है तो कोई दूसरा राजपूत चरित्र अपने देश के नाम पर बने नकली किले की रक्षार्थ अपने प्राण का उत्सर्ग करता है ,यह विचित्र चरित्र ही है कि एक वीरांगना अपने युद्ध से भागे पति को किले में नहीं घुसने देती तो दूसरी वीरांगना युद्ध में जाने विमुख अपने पति को अपना सिर काटकर थमा देती है | यह विचित्र चरित्र सिर्फ राजपूतों में ही रहा है कि एक गरीब राजपूत युवक सिर्फ एक समय भोजन में खाए नमक का मोल चुकाने के लिए अपने प्राण की बाजी लगा देता है तो दूसरा युद्ध के मोर्चे पर सबसे आगे रहने के उसके वंश के अधिकार की रक्षा के लिए प्राण न्योछावर कर देता था |
    एसा विचित्र चरित्र आपको भारत के अलावा दुनियां में कहीं देखने को नहीं मिलेगा | इसीलिए आज भी विदेशों से कई शोधार्थी इसी राजपूत चरित्र व संस्कृति पर शोध करने राजस्थान आते है |

  4. अगर यह ऐतिहासिक सच है तो आप समय और तारीख अवश्य दीजिये निस्संदेह यह राज्पोतों की आन बान शान से सम्बंधित घटना है !
    राजपूत चरित्र की बात कहें तो शौर्य गाथाओं से भरा पड़ा है राजस्थान का इतिहास, और देश के अन्य हिस्सों को निस्संदेह प्रेरणा मिलती है !

    • आपने यंही भाण्डारेज के दीप सिंह कुम्भाणी का नाम दिया है पर जंहा तक मेनेे पडा है कि इस युद्ध में भाण्डारेज के भगतसिंह कुम्भाणी वारगति को प्राप्त हुए थे और चांदपोल के निकट भौमिया के रूप में आज भी उनकी पूजा की जाती है

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