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Tuesday, May 30, 2023

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अलवर महाराजा जयसिंह का चरित्रहनन करने वालो को जबाब

पिछले दिनों जीन्यूज की वेबसाइट पर अलवर महाराजा जयसिंह की छवि व चरित्रहनन करने वाला लेख प्रकाशित हुआ था | हम जीन्यूज के उक्त पत्रकार को इतना ही कहना चाहेंगे कि इस तरह राजा का चरित्रहनन करने से पहले उनका स्वतंत्रता संग्राम में योगदान तो पढ़ लेते कि क्यों वे अंग्रेजों से नफरत करते थे और क्यों उन्हें देश निकाला दिया | आज इस लेख के माध्यम से हम राजा जयसिंह के बारे में कांग्रेस के कई विधायक रहे और स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े श्री मनोहर कोठारी द्वारा लिखित पुस्तक “भारत के स्वतंत्रता संग्राम में राजस्थान” में लिखे कुछ तथ्य सामने ला रहे हैं, ताकि राजा जयसिंह अलवर के चरित्र को देश की जनता ठीक से समझ सके और जान सके कि क्यों राजा जयसिंह को अंग्रेजों ने अलवर से निष्कासित किया था |

उक्त पुस्तक के अनुसार अलवर महाराजा जयसिंह ने महामना मदनमोहन मालवीय को बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के लिए मुक्तहस्त से दान किया था, जो अन्य राजाओं से अधिक था | यही नहीं उन्होंने अलवर में कई लोकउपयोगी सार्वजनिक हित के कार्यों के साथ शासन – सुधार सम्बन्धी कार्य शुरू किये थे | राजा अलवर में आजादी की अलख जगाने वाले पंडित हरिनारायण शर्मा के माध्यम से स्वतंत्रता आन्दोलनकारियों के सम्पर्क थे | वे अक्सर पं. हरिनारायण शर्मा के साथ लोकोत्तर और राष्ट्रीय महत्त्व के विषयों पर चर्चा करते थे | कालांतर में महाराजा अलवर के विचार लोकहित के क्षेत्र में काफी विकसित व उर्ध्वगामी हो गए | उन्होंने स्वेच्छा से अपनी रियासत का वैधानिक शासक बनना तक स्वीकार कर लिया | राजा जयसिंह ने निर्भीक होकर जनता का उत्तरदायी शासन स्थापित करना भी स्वेच्छा से तथा सिद्धांतत: स्वीकार कर लिया था |

इस स्थिति को अंग्रेज साम्राज्यवादी शक्ति भला कैसे स्वीकार कर लेती ? उसको महाराजा की इस छोटी सी निर्दोष भावना में भी बगावत के विराट वटवृक्ष के बीज की भांति अंतर्निहित विशालता के दर्शन हो रहे थे | इसलिए अंग्रेजों ने महाराजा जयसिंह पर मनगढ़ंत और झूठे आरोप लगाकर अलवर की सत्ता अपने हाथ में ले ली और राजा को अलवर राज्य की सीमा से ही निर्वासित कर दिया |

श्री मनोहर कोठारी अपनी पुस्तक में लिखते हैं कि 1937 में निर्वासित अलवर महाराजा जयसिंह का किन्ही संदेहास्पद परिस्थितयों में लन्दन में देहावसान हो गया | यह समाचार समूची अलवर रियासत के कौने कौने में दावानल की भाँती फ़ैल गया |

आपको बता दें कांग्रेसी लेखकों ने हमेशा अपनी कलम देशी रियासतों के राजाओं के खिलाफ ही चलाई है, लेकिन श्री मनोहर कोठारी, जिन्होंने अपनी उक्त पुस्तक में राजाओं के खिलाफ खूब लिखा है, ने भी अलवर महाराजा जयसिंह की स्वतंत्रता आन्दोलन में सकारात्मक भूमिका पर लिखा है | पर जी न्यूज में घूसे वामपंथी पत्रकारों को अपना एजेंडा चलाना ही है|

सन्दर्भ पुस्तक : “भारत के स्वतंत्रता संग्राम में राजस्थान” पृष्ठ संख्या- 332, लेखक – श्री मनोहर कोठारी

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