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अमीर खुसरो ने दिए थे गोरा बादल द्वारा की गई कमाण्डो कार्यवाही के ये संकेत

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गोरा बादल

पद्मावती फिल्म विवाद में भंसाली के पक्ष में उतरे कथित सेकुलर इतिहासकार दावा करते है कि 1540 ई. से पहले इस कहानी के कोई ऐतिहासिक तथ्य नहीं मिलते| लेकिन जो तथ्य है, उन पर ये कथित इतिहासकार आँखे मूंदे है, क्योंकि ये तथ्य मानते ही उनका भारतीय संस्कृति व स्वाभिमान पर चोट करने का वामपंथी एजेण्डा फूस्स होने का खतरा जो ठहरा| विद्वान लेखक डा. गोपीनाथ शर्मा ने अपनी इतिहास शोध पुस्तक “राजस्थान का इतिहास” पृष्ठ 174 में युद्ध के समय उपस्थित प्रसिद्ध इतिहासकार व कवि अमीर खुसरो के लेखन का उल्लेख करते हुए लिखा है-  घमासान युद्ध के बाद, अमीर खुसरो लिखता है कि “26 अगस्त, 1303 ई. को किला फतह हुआ और और राय पहले भाग गया, परन्तु पीछे से स्वयं शरण में आया और तलवार की बिजली से बच गया|” डा. शर्मा लिखते है- “फतह के बाद राय का भागना फिर शरण में आना तथा तलवार की बिजली से बचना आदि उल्लेख घटनाक्रम में कुछ बातें छिपाकर लिखने जैसा दिख पड़ता है|” यहाँ हम आपको यह बता दें कि खुसरो खिलजी के मातहत था और वह निष्पक्ष लिख ही नहीं सकता था| उसे वही सब कुछ लिखना था जो अलाउद्दीन को अच्छा लगे| फिर भी उसने अपने इन शब्दों में स्थानीय मान्यता में प्रचलित राय (रावत रत्नसिंह) के पकड़े जाने व गोरा बादल द्वारा कमाण्डो कार्यवाही के जरिये छुड़ाने की पुष्टि होती है| इस कार्यवाही की पुष्टि खुसरो के “तलवार की बिजली से बच गया” शब्दों में छिपी है|

बेशक खुसरो ने घटना को सीधे सीधे नहीं लिखा, क्योंकि धोखे से रत्नसिंह को पकड़े जाने की बात खिलजी की छवि को धूमिल करती, सो उसने धोखे से पकड़े जाने की जगह शरण में आने की बात लिखी| ऐसा मुस्लिम इतिहासकार करते रहे है, सुलतान की छवि पर प्रतिकूल असर डालने वाले उसके कृत्य को मुस्लिम इतिहासकारों ने या तो छुपाया या घुमा फिरा कर लिखा है| गोरा बादल की कमांडो कार्यवाही के बेशक अमीर खुसरो ने संकेत मात्र दिए हों, पर डा. गोपीनाथ शर्मा ने इसकी पुष्टि करने वाला एक और सबूत अपनी इसी पुस्तक के उसी पृष्ठ पर दिया है उनके अनुसार- “वि.सं.1393 के एक जैन ग्रन्थ “नाभिनंदनजिनोद्धार प्रबंध” अपने श्लोक 34 में सुलतान की विजय सूचना देता है कि चितौड़ का शासक बन्दी बनाया गया था और स्थान-स्थान पर घुमाया गया था| यदि इसमें सत्य का अंश है तो अलाउद्दीन खिलजी का चित्तौड़ के किले पर जाना और रत्नसिंह को छल से बन्दी बनाने की सम्पूर्ण कथा का तारतम्य बैठ जाता है|

रत्नसिंह को धोखे से बन्दी बनाने व गोरा बादल द्वारा छुड़ाने की स्थानीय मान्यता के समर्थन में एक तरफ जैन ग्रन्थ “नाभिनंदनजिनोद्धार प्रबंध” संकेत करता है वहीं अमीर खुसरो द्वारा उल्लिखित सुलतान की बिजली से बचने का उल्लेख भी गोरा बादल के प्रयत्न में रत्नसिंह को खिलजी खेमे से छुड़ाने की ओर संकेत करता है|

पर ये संकेत देने वाले तथ्य वामपंथी इतिहासकारों को ना तो नजर आयेंगे ना वे मानेंगे क्योंकि उनका एक ही मकसद कि ऐसी कोई बात मत मानो जिस पर भारतीय गर्व सके और उनका स्वाभिमान बरकरार रह सके|

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