मेड़ता छोड़ने के बाद वह अपने परिवार व साथी सरदारों के साथ वीरों की तीर्थ स्थली चितौड़ के लिए रवाना हो गया | उस ज़माने में चितौड़ देशभर के वीर योद्धाओं का पसंदीदा तीर्थ स्थान था मातृभूमि पर मर मिटने की तम्मना रखने वाला हर वीर चितौड़ जाकर बलिदान देने को तत्पर रहता था |
जयमल का काफिला मेवाड़ के पहाड़ी जंगलों से होता हुआ चितौड़ की तरफ बढ़ रहा था कि अचानक एक भील डाकू सरदार ने उनका रास्ता रोक लिया अपनी ताकत दिखाने के लिए भील सरदार ने एक सीटी लगाई और जयमल व उसके साथियों के देखते ही देखते एक पेड़ तीरों से बिंध गया | जयमल व साथी सरदार समझ चुके थे कि हम डाकू गिरोह से घिर चुके है और इन छुपे हुए भील धनुर्धारियों का सामना कर बचना बहुत मुश्किल है वे उस क्षेत्र के भीलों के युद्ध कौशल के बारे में भलीभांति परिचित भी थे | कुछ देर की खामोशी के बाद राव जयमल के एक साथी सरदार ने जयमल की और मुखातिब होकर पूछा – “अठै क उठै ” |
जयमल का जबाब था “उठै ” |
हे वीर ! आपके लश्कर में चल रहे वीरों के मुंह का तेज देख वे साधारण वीर नहीं दीखते | हथियारों व जिरह वस्त्रो से लैश इतने राजपूत योद्धा आपके साथ होने के बावजूद आपके द्वारा इतनी आसानी से बिना लड़े समर्पण करना मेरी समझ से परे है कृपया इसका कारण बता मेरी शंका का निवारण करे व साथ ही मुझे “अठै क उठै” वाक्य में छिपे सन्देश के रहस्य से भी अवगत कराएँ |
तब जयमल ने भील सरदार से कहा — मेरे साथी ने मुझसे पूछा कि “अठै क उठै” मतलब कि (अठै) यहाँ इस थोड़े से धन को बचाने के लिए संघर्ष कर जान देनी है या यहाँ से बचकर चितौड़ पहुँच (उठै ) वहां अपनी मातृभूमि के लिए युद्ध करते हुए प्राणों की आहुति देनी है | तब मैंने कहा ” उठै ” मतलब कि इस थोड़े से धन के लिए लड़ना बेकार है हमें वही अपनी मातृभूमि के रक्षार्थ युद्ध कर अपने अपने प्राणों को देश के लिए न्योछावर करना है |
इतना सुनते ही डाकू भील सरदार सब कुछ समझ चूका था उसे अपने किये पर बहुत पश्चाताप हुआ वह जयमल के चरणों में लौट गया और अपने किये की माफ़ी मांगते हुए कहना लगा — हे वीर पुरुष ! आज आपने मेरी आँखे खोल दी , आपने मुझे अपनी मातृभूमि के प्रति कर्तव्य से अवगत करा दिया | मैंने अनजाने में धन के लालच में अपने वीर साथियों के साथ अपने देशवासियों को लुट कर बहुत बड़ा पाप किया है आप मुझे क्षमा करने के साथ-साथ अपने दल में शामिल करले ताकि मै भी अपनी मातृभूमि की रक्षार्थ अपने प्राण न्योछावर कर सकूँ और अपने कर्तव्य पालन के साथ साथ अपने अब तक किये पापो का प्रायश्चित कर सकूँ |
और वह भील डाकू सरदार अपने गिरोह के धनुर्धारी भीलों के साथ जयमल के लश्कर में शामिल हो अपनी मातृभूमि की रक्षार्थ चितौड़ रवाना हो गया और जब अकबर ने १५६७ ई. में चितौड़ पर आक्रमण किया तब जयमल के नेत्रित्व में अपनी मातृभूमि मेवाड़ की रक्षार्थ लड़ते हुए शहीद हुआ|
11 Responses to "अठै क उठै यहाँ कि वहां"