सन 1794 ई. का दिन था, महादजी सिंधिया की मराठा सेना ने हाफु खंडू सिंधिया (अप्पा खंडेराव) के नेतृत्व में चूरू नगर को घेर लिया | चूरू की रक्षा के लिए बीकानेर के महाराजा सूरतसिंह जी ने अपने कई सामंतों को सैन्य सहायता के लिए आदेश दिए पर बीकानेर राज्य के ये ठिकानेदार मराठा सेना से लड़ने आते उससे पूर्व ही मराठा सेना को चूरू के एक देशभक्त नागरिक की जाबांजी की वजह से घेरा उठाकर जाना पड़ा | इस देशभक्त नागरिक का नाम “चुरू मंडल का शोधपूर्ण इतिहास” नामक पुस्तक में इतिहासकार गोविन्द अग्रवाल ने रामदास लिखा है जो सुनार जाति के थे |
मराठा सेना ने शहर पनाह (परकोटे) के बहार राम सागर कुँए के पास पड़ाव डाल रखा था | रामदास जी सुनार जानते थे कि यदि राम सागर कुँए का पानी पीने लायक नहीं रहे तो रेगिस्तान में पानी की कमी के कारण मराठा सेना स्वत: भाग खड़ी होगी | और रामदास जी ने राम सागर कुँए के पानी में जहर मिलाने की योजना अपने मन में बना डाली | अपनी योजना को क्रियान्वित करने के लिए रामदास जी ने एक बावले (पागल) फ़क़ीर का भेष बनाया | उन्होंने अपनी दोनों जंघाओं पर जहर की थैलियां बाँध ली | शरीर पर गुड़ मल लिया और कपड़े के चिथड़े लपेट लिए | रामदास जी ने मिटटी की एक काली हांड़ी ली और पागलों जैसी हरकतें करते हुये मराठा सेना के शिविर में चले गये | वहां पहुँच कर रामदास जी ने मराठा सैनिकों से कहा – मैं पानी पीऊंगा | मराठा सिपाही उन्हें पानी पिलाने लगे तो वो बोले कि मैं खुद कुँए से पानी निकालकर पीऊंगा | ये कहकर वे कुँए पर चले गए | कुँए पर एक मराठा सैनिक नंगी तलवार लिए पहरा दे रहा था |
रामदास जी ने लपककर सैनिक से तलवार छीन ली और एक ही वार में सैनिक का सिर कलम कर दिया | इसके पश्चात् शीघ्रता से रामदास जी ने जहर की थैलियाँ और शरीर पर लपेटे कपड़ों के चिथड़ों को कुँए में डाला और भाग कर शहर के परकोटे में घुस गये | उधर जहर मिला पानी पीने से कई सैनिक व घोड़े मरने लगे | पानी का अन्य कोई स्रोत नहीं था अत: मराठा सेना को मज़बूरी में घेरा उठाकर जाना पड़ा | इस तरह एक देशभक्त नागरिक ने अपनी सुझबुझ और दिलेरी की ताकत के बल पर अकेले ने मराठा सेना को घेरा उठाने पर मजबूर कर दिया |
रामदास जी की इस बुद्धिमत्ता व दिलेरी से प्रसन्न होकर चूरू के तत्कालीन शासक ठाकुर शिवसिंह जी ने रामदास जी की इच्छानुसार सात दिन तक अपने राज्य में “रांगे के रामशाही सिक्के” चलाये |