Home History लुहार रामजी के साहस और राजभक्ति ने हारे युद्ध को जीता दिया

लुहार रामजी के साहस और राजभक्ति ने हारे युद्ध को जीता दिया

1
बीकानेर का रामजी लुहार

साहसी व राजभक्ति से ओतप्रोत रामजी लुहार के हृदय में अपने राज्य की सेना को हारते देख इतनी असहय पीड़ा हुई कि वह अकेला ही आक्रान्ता की सेना से भीड़ गया| हालाँकि शहीद होने से पहले वह दुश्मन सेना के सिर्फ पांच सैनिकों को ही मार पाया, पर उसके साहस और वीरता ने हार से निराश सेना में जोश का वो संचार कर दिया, कि उसके राज्य की हार कर भाग रही सेना ने युद्ध का परिणाम ही बदल दिया और आक्रान्ता सेना भाग खड़ी हुई|

जी हाँ ! हम बात कर रहे है, जोधपुर व बीकानेर राज्य के मध्य हुए युद्ध की, जिसमें जोधपुर की सेना के आगे बीकानेर की सेना हार चुकी थी| बीकानेर के तत्कालीन महाराजा सुजानसिंह बादशाह की और से दक्षिण में तैनात थे| उनकी उपस्थिति में जोधपुर के महाराजा अजीतसिंह ने राज्य विस्तार का अच्छा अवसर देखकर अपनी सेना सहित बीकानेर पर कब्जे के लिए कूच किया| रास्ते में अजीतसिंह की सेना ने लाडनू में डेरा डाला व बीकानेर राज्य से विरोध रखने वाले सामंतों को बुलाकर अपने पक्ष में किया| परन्तु गोपालपुरा के कर्मसेन तथा बीदासर के बिहारीदास ने इस दुष्कार्य में सहयोग देने से साफ़ मना कर दिया| अजीतसिंह ने इन दोनों को नजरबन्द कर दिया, पर इससे पहले वे आक्रमण की सूचना बीकानेर भिजवाने में सफल रहे|

अजीतसिंह ने लाडनू में रुकते हुए भंडारी रघुनाथ को एक बड़ी सेना के साथ बीकानेर पर चढ़ाई के लिए भेजा| इस सेना ने बीकानेर पर आक्रमण किया और बीकानेर की छोटी सी सेना जोधपुर की सेना का सामना नहीं कर पाई और शहर में महाराजा अजीतसिंह की दुहाई फिर गई| जो बीकानेर में रहने वाले एक राजभक्त साहसी रामजी लुहार को सहन नहीं हुई और वह अकेला ही जोधपुर की सेना से भीड़ गया और पांच सैनिकों को मारकर खुद भी शहीद हो गया|

इस घटना से बीकानेर के सरदारों को भी जोश आ गया आयर भूकरका के ठाकुर पृथ्वीराज एवं मलसीसर के बिदावत हिन्दूसिंह सेना एकत्रकर जोधपुर की फ़ौज के आगे दृढ़ता से जा डटे, जिससे जोधपुर की सेना में खलबली मच गई और विजय की सारा आशा काफूर हो गई| जोधपुर के सरदारों ने संधि कर लौटने में भलाई समझी| जब यह समाचार अजीतसिंह के पास पहुंचा तो उन्होंने भी सेना का लौटना उचित समझा| फलत: जोधपुर की सेना जैसी आई थी वैसी ही लौट गई| लौटते समय कर्मसेन व बिहारीदास को भी मुक्त कर दिया गया|

इस तरह बीकानेर के एक राजभक्त लुहार रामजी ने अदम्य साहस और वीरता के साथ प्राणों का बलिदान कर अपनी मातृभूमि की स्वतंत्रता की रक्षा की| इस घटना पर हमारे यूट्यूब चैनल ज्ञान दर्पण पर यहाँ क्लिक कर वीडियो भी देख सकते हैं |

सन्दर्भ : बीकानेर का इतिहास; गौरीशंकर हीराचंद ओझा

1 COMMENT

  1. काश! आपस में लडने के बजाय एक होकर दुश्मन से लडे होते तो भारत की अलग ही तस्वीर होती।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Exit mobile version