आजादी के सामंतों पर के खिलाफ तरह तरह के दुष्प्रचार किये, जिनमें गरीब के शोषण का आरोप प्रमुख रहा, लेकिन इतिहास में ऐसे कई घटनाक्रम मिलते है जिन्हें पढ़कर सामंतों की गरीबों के प्रति सहानुभूति, सहिष्णुता और संवेदनशीलता का पता चलता है| राजस्थान में अक्सर अकाल पड़ते रहते थे| अकाल के समय रियासत के राजा, जागीरदार, सामंत सभी अपने अपने सामर्थ्य के अनुसार प्रजा की भूख से मौत ना हो इसका विशेष ख्याल रखते थे| इसके लिए वे भी आज की तरह वे अकाल राहत कार्य करवाते थे और बदले में अनाज आदि के रूप में पारिश्रमिक का भुगतान करते थे|
अकाल राहत कार्य के अलावा कई सामंत जगह निशुल्क भोजनालय खोलते थे ताकि गरीब प्रजा व राहगीर अपनी भूख मिटा सके| राजस्थान के प्रसिद्ध छपनिया अकाल के समय इस तरह की व्यवस्था करने वाली कई रियासतें कर्जे के बोझ में दब गई थी| उस काल सामंती शासक अपनी प्रजा को भूख से बचाने के लिए कितने संवेदनशील थे और इस कार्य में रोड़ा अटकाने वालों को साथ कितनी सख्ती बरतते थे उसकी झलक आज मुझे शेखावाटी प्रदेश का इतिहास पढ़ते हुए मिली|
शेखावाटी प्रदेश का राजनैतिक इतिहास पुस्तक के अनुसार- खण्डेला के राजा रायसल के पुत्र Bhojraj Shekhawat ने वि.सं. 1653 में पड़े दुर्भिक्ष में अपनी प्रजा को भूखमरी से बचाने के लिए अकाल राहत कार्य शुरू किया, जिसमें उन्होंने प्रजा के लिए पीने के पानी हेतु एक तालाब खुदवाना शुरू किया| इस तालाब का नाम भोजसागर रखा गया| तालाब की खुदाई पर मजदूरी के लिए आने वालों को अनाज दिया जाता था| भोजराज के बड़े भाई लालसिंह (जिन्हें अकबर लाडखां कहकर पुकारता था|) के पुत्र कल्याण दास को मजदूरों को अनाज देना अच्छा नहीं लगा| शायद उनके मन में विचार आया होगा कि अकाल के कारण अनाज की वैसे भी कमी है और काकाजी अनाज का भण्डार तालाब खुदाई में लुटा देंगे और अपने काका भोजराज की अनुपस्थिति में मजदूरों को अनाज देने से मना कर दिया|
भोजराज के पास जब इस बात की शिकायत पहुंची तो उन्हें बहुत क्रोध आया कि एक तरफ प्रजा भूख से मर रही है और भतीजे को अपनी पड़ी और भोजराज ने इसी क्रोध के भंवर में अपने भतीजे के प्राण ले लिए| इस तरह भोजराज ने भूखी प्रजा की राहत में रोड़ा बने अपने भतीजे को मृत्युदण्ड दे दिया| आज भी अकाल राहत कार्य चलते है जिनमें सरकारी अधिकारी, कर्मचारी, जनप्रतिनिधि जमकर भ्रष्टाचार करते है और अकाल से प्रभावित जनता की राहत में रोड़ा बनते है| क्या आज के शासकों में इतनी हिम्मत, नैतिकता, ईमानदारी है कि वे भोजराज द्वारा अपने ही भतीजे को दिए दण्ड जैसा दण्ड दे सकते है ?