tag:blogger.com,1999:blog-4024407938836037509.post5819892064632625614..comments2024-02-18T13:54:38.517+05:30Comments on Gyan Darpan : Hindi Blog: विलुप्त प्राय: ग्रामीण खेल : झुरनी डंडाUnknownnoreply@blogger.comBlogger16125tag:blogger.com,1999:blog-4024407938836037509.post-65610482696473009772010-07-30T20:18:46.210+05:302010-07-30T20:18:46.210+05:30बहुत लाजवाब जानकारी आपने नेट पर डाल दी. हमने भी बच...बहुत लाजवाब जानकारी आपने नेट पर डाल दी. हमने भी बचपन में सारी गर्मी की छुट्टियों की दोपहरी इन्हीं खेलों मे निकाली. कई बार पेड से गिरे ..फ़िर चढे. घर वालों की डांट खाने के साथ साथ उनके जूते भी खूब खाये.:)<br /><br />सही लिखा अपने अब ना वो खेल रहे ना वो जगह रही...रह गई तो सिर्फ़ यादें.<br /><br />रामराम.ताऊ रामपुरियाhttps://www.blogger.com/profile/12308265397988399067noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4024407938836037509.post-43438058457630409552010-07-27T13:23:33.636+05:302010-07-27T13:23:33.636+05:30एक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ ...एक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं!<br /><a href="http://blog4varta.blogspot.com/2010/07/4_27.html" rel="nofollow">आपकी चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं!</a>शिवम् मिश्राhttps://www.blogger.com/profile/07241309587790633372noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4024407938836037509.post-69988306860912366132010-07-27T06:56:37.036+05:302010-07-27T06:56:37.036+05:30ये खेल विभिन्न नामों से सभी जगह खेला जाता है।
हम ...ये खेल विभिन्न नामों से सभी जगह खेला जाता है।<br /><br />हम भी खेलते थे। बरगद के या करंज के पेड़ पर।<br /><br />इसे यहाँ "डंडा पचरंगा" कहा जाता है।<br /><br />इस खेल के लिए, बरगद, पीपल, करंज, इमली, इत्यादि के पेड़ उपयुक्त होते हैं, जिनकी डालियाँ धरती से कम से कम 4-5 फ़िट तो उपर रहनी चाहिए।<br /><br />अच्छी पोस्ट<br /><br />राम रामब्लॉ.ललित शर्माhttps://www.blogger.com/profile/09784276654633707541noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4024407938836037509.post-69820763769643426882010-07-26T21:37:15.066+05:302010-07-26T21:37:15.066+05:30बहुत सुंदर लेख लिखा.. आप ने ठीक कहा आज सब कुछ खो स...बहुत सुंदर लेख लिखा.. आप ने ठीक कहा आज सब कुछ खो सा गया है, धन्यवादराज भाटिय़ाhttps://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4024407938836037509.post-36280137310850064992010-07-26T20:54:19.479+05:302010-07-26T20:54:19.479+05:30हमने इसे ’लखनी ’ के नाम से खेला है ।हमने इसे ’लखनी ’ के नाम से खेला है ।अजय कुमारhttps://www.blogger.com/profile/15547441026727356931noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4024407938836037509.post-84413489487022228012010-07-26T19:00:28.724+05:302010-07-26T19:00:28.724+05:30हमारे यंहा इसे क्या कहते है यह तो भाई सुरेन्द्र भा...हमारे यंहा इसे क्या कहते है यह तो भाई सुरेन्द्र भाम्बू बता ही चुके है |क्यों की वे भी मेरे नजदीकी गाँव के रहने वाले है | आपकी पोस्ट जब भी अतीत की तरफ ले जाती है तो एक सूनापन का अहसास दिलाती है एक दर्द सा देती है |क्यों की हमारा अतीत भी आपकी तरह बहुत मजेदार रहा है |जिस पेड पर खेलते थे वो आज प्रदूषण की वजह से सूखा ठूँठ हो गया है |naresh singhhttps://www.blogger.com/profile/16460492291809743569noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4024407938836037509.post-90159462873173000662010-07-26T17:40:01.708+05:302010-07-26T17:40:01.708+05:30हम जो मिलता जुलता खेल खेलते थे उसे काई-डंडा कहते थ...हम जो मिलता जुलता खेल खेलते थे उसे काई-डंडा कहते थे. इसमें, जो पेड़ पर नहीं होता था उसे डंडा लग जाए तो, डंडा मारने की ड्यूटी उसकी हो जाती थी. इसलिए हम पेड़ से नीचे इस तरह उतरते थे कि डंडा अपनी तरफ आते ही उचक कर पेड़ पर चढ़ जा सके.<br /><br />सही बात है, कि आज के बच्चे बहुत साफ़िस्टीकेटेड हो गए हैं अब वे इस तरह के मेहनत वाले खेल नहीं खेलते गांव में भी क्रिकेट पहुंच गया है... वे कंप्यूटर व मोबाइल गेम खेल खेलते हैं या फिर इंटरनेट व वीडियोगेम्स... समय निश्चय ही बदल गया है.Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टूनhttps://www.blogger.com/profile/12838561353574058176noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4024407938836037509.post-54768617856209619702010-07-26T13:26:14.615+05:302010-07-26T13:26:14.615+05:30हर बार की तरह दमदार मुद्दा
अच्छी जानकारी
ब्लाँगवा...हर बार की तरह दमदार मुद्दा<br />अच्छी जानकारी<br /><br /><a href="http://etips-blog.blogspot.com/2010/07/blog-post_26.html" rel="nofollow">ब्लाँगवाणी नही मोबाईलवाणी-मोबाईल फोन पर इंटरनेट चलाने वालो के लिये एक ब्लाँग एग्रीगेटर</a>Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4024407938836037509.post-41538464350386628972010-07-26T09:59:24.122+05:302010-07-26T09:59:24.122+05:30रतन जी बहुत ही बढ़िया लिखा है आपने मैं भी इसके बार...रतन जी बहुत ही बढ़िया लिखा है आपने मैं भी इसके बारे में अपनी एक पोस्ट लिख चुका हूं हमारे यहाँ इसे कुराक डंका कहते बहुत मजा आता है इसे खेलने में परन्तु हमारा दुर्भाग्य कि यह खेल अब सिर्फ यादगार ही बन कर रह गये है।<br /><br />http://sbhamboo.blogspot.com/2010/06/blog-post_27.htmlSurendra Singh Bhamboohttps://www.blogger.com/profile/11382942026842555156noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4024407938836037509.post-17791095291578693552010-07-26T09:38:08.886+05:302010-07-26T09:38:08.886+05:30झुरनी डंडा, लखनी, कलाम डाली...
बहुत बढ़िया जानकारी...झुरनी डंडा, लखनी, कलाम डाली... <br />बहुत बढ़िया जानकारी, हमें तो इस खेल के बारे में पता ही न था. अन्य खोये हुए खेलों का विवरण संकलित किया जा सके तो यहाँ ज़रूर कीजिये.Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4024407938836037509.post-87212087283542440522010-07-26T08:45:14.643+05:302010-07-26T08:45:14.643+05:30हमारे यहाँ इसे कलाम डाली बोलते है, पर हा अब बच्चो ...हमारे यहाँ इसे कलाम डाली बोलते है, पर हा अब बच्चो मे हो बात नहीं है की वो रोज अपने घुटने छिलाये,लेकिन आज के दौर मे जो जिम जाके अपनी शारीरिक क्षमता बढ़ाते है ,वो सब तब नहीं करना पड़ता था.क्युकी तब सारे खेल ही इसे खेले जाते थे .चुस्त दुरुस्त रखते थे .पर अब तो बस टी.वी,कंप्यूटर और विडिओ गेम ने सब को पीछे छोड़ दिया ,और साथ ही पीछे छुट गया स्वास्थ्य अब आप दुबले पतले बच्चे आँखों पे चश्मा चड़ाए देख सकते है.आजकल एक चोकलेट का विज्ञापन निकला है मिल्की बार का बड़ा ही प्यारा है .जिसमे कुछ बच्चे घर पर बेठ के टी.वी. कंप्यूटर और विडिओ गेम खेलते है ,और कुछ बच्चे बाहर साइकिलिंग करते है और तेराकी करते है,और अपनी चोटे उन बच्चो को दिखाते है जो घर पे बेठे है,और एक ही बात बोलते है की ,"दम है तो बाहर निकल "pagdandi https://www.blogger.com/profile/02159052806060434216noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4024407938836037509.post-7785952267915399332010-07-26T08:44:02.536+05:302010-07-26T08:44:02.536+05:30बहुत बढ़िया...ऐसे न जाने कितने खेल यह नव टीवी एवं क...बहुत बढ़िया...ऐसे न जाने कितने खेल यह नव टीवी एवं कम्प्यूटर युग लील गया.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4024407938836037509.post-87870703701533246362010-07-26T08:27:05.456+05:302010-07-26T08:27:05.456+05:30बड़ा ही मज़ेदार खेल है यह। बचपन में बहुत खेला है।बड़ा ही मज़ेदार खेल है यह। बचपन में बहुत खेला है।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4024407938836037509.post-42719522126029036862010-07-26T07:57:36.305+05:302010-07-26T07:57:36.305+05:30मैंने भी खुब खेला था. बहुत मजा आता था पेड़ पर भागन...मैंने भी खुब खेला था. बहुत मजा आता था पेड़ पर भागने दौडने में.. अब न तो पेड़ है न इतना साहस.. क्योकिं इसमें घुटने छिलाना रोज की बात होती थी..:)रंजन (Ranjan)https://www.blogger.com/profile/04299961494103397424noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4024407938836037509.post-8124477644428918502010-07-26T07:56:27.859+05:302010-07-26T07:56:27.859+05:30शायद यह खेल देश के अन्य ग्रामीण इलाकों में किसी और...शायद यह खेल देश के अन्य ग्रामीण इलाकों में किसी और नाम से भी जाना जाता हो। इस प्रकार के खेलों के विलुप्त होने का नतीज़ा हम देख ही रहे हैं-शारीरिक और प्रतिरोधक क्षमता में ह्रास,बच्चों और किशोरों के चेहरे से सहजता का विलोप और असमय गुरु गंभीरता का विकास,सामंजस्यपूर्ण और सहजीवन की प्रवृत्ति का न होना आदि-आदि।कुमार राधारमणhttps://www.blogger.com/profile/10524372309475376494noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4024407938836037509.post-69893938724926499052010-07-26T07:27:45.925+05:302010-07-26T07:27:45.925+05:30इसे हमारे यहाँ 'लखनी' कहा जाता था। 'था...इसे हमारे यहाँ 'लखनी' कहा जाता था। 'था' लिख रहा हूँ क्यों को यह वाकई लुप्त हो चुका है। <br />लेकिन इसे खेलने वालों को लखेरा ही माना जाता था। कभी हाथ टूटते तो कभी पाँव में मोच ! अभिभावकों की सासत।गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.com