नर उभै कर जोड़ |
खांडै परणी नार इक,
सती हुई जिण ठोड ||१९६||
वीर की तलवार के साथ विवाह करने वाली वीरांगना जिस स्थान पर सती हुई ,वहां आज भी हर पूर्णिमा को मेला भरता है तथा लोग श्रद्धा से खड़े हो उसका अभी-नंदन करते है |
सांझ पड्यां सरमाय |
दिवला केरो लोय ज्यूँ ,
दिवलो चासण जाय ||१९७||
घर के सामने ही एक देवालय है,जहाँ वह दीपक की लौ जैसी (सुकुमार) कामिनी, सांझ पड़े शर्माती हुई दीपक जलाने जाती है |
बलती रोज बतोह |
जीवन्त समाधि उपरै,
तापै एक जतिह ||१९८||
उस पहाड़ की कन्दरा में रोजाना एक दीपक जला करता था | वहीँ उस संत ने जीवित समाधी ली थी | वहीँ पर आज एक अन्य संत तपस्या कर रहा है |
भगवा भेसां साध |
पग पग दीसै इण धरा ,
संता तणी समाध ||१९९||
इस राजस्थान की धरती पर ऐसे संतों की समाधियाँ कदम कदम पर दिखाई देती है जिन्होंने भगवा वेश धारण किया था व जिनकी जिव्हा पर हमेशा राम नाम की ही रट रहती थी |
काला अंग सुहाय |
धुंवा की-सी लीगटी,
बाला छम छम जाय ||२००||
काले पर्वतों के बीच काले वस्त्र पहने इस श्यामा के अंग सुहावने है | धूम्र रेखा -सी यह छम-छम घुंघरू बजाती जा रही है |
अटका सर अणियांह |
काला चाला भील-जन ,
काली भीलणियांह ||२०१||
काले रंग के इस भील भीलनियों ने भालों की तीखी नोकों का अपने मस्तक से सामना कर के इस गिरि-प्रदेश की शत्रुओं से रक्षा की है |
काली नार कहाय |
तन कालख झट ताकतां,
मन कालख मिट जाय ||२०२||
इस पर्वतीय प्रदेश के नर (भील) व नारी (भीलनियां) दोनों ही काले शरीर के है लेकिन उनमे इतनी पवित्रता है कि उनके काले शरीर को देखते ही देखने वाले के मन का समस्त कलुष समाप्त हो जाता है |
स्व.आयुवानसिंह शेखावत