हठीलो राजस्थान-26

Gyan Darpan
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जौहर ढिग सुत आवियो,
माँ बोली कर प्रीत |
लड़णों मरणों मारणों,
रजवट रुड़ी रीत ? ||१५४||

जौहर में जलती हुई माँ के सम्मुख जब वीर पुत्र आया तो वह बड़े प्रेम से बोली - हे पुत्र ! युद्ध में लड़ना और मरना-मारना; यही राजपूतों की अनोखी परम्परा है ; इसे निवाहना |

बैरी लख घर बारणे,
करवा तीखी मार |
सुत मांगै निज मात सूं,
न्हांनी सी तरवार ||१५५||

शत्रु को अपने घर के दरवाजे पर आया हुआ जानकार उस पर तीक्षण प्रहार करने हेतु अल्प व्यस्क वीर पुत्र भी अपनी मां से नन्ही सी तलवार मांग रहा है |

रेत रमेकड़ नह रमूं ,
दादा दो दूनाल |
मामोसा मगवाय दो ,
तीखी सी तरवार ||१५६||

वीर बालक कहता है - मैं रेत में नहीं खेलूँगा | हे दादा जी ! मुझे तो आप दो नाल वाली बन्दुक मंगवा दो और मामाजी आप ! मुझे एक तीखी सी तलवार मंगवा दो |

अरि मारण आराण में,
धायो सह परिवार |
गीगो धायो गोर सूं ,
भीगो दूधां धार ||१५७||

शत्रु को मारने के लिए समस्त परिवार युद्ध-क्षेत्र की और चल पड़ा | उसको जाता देख कर क्षत्राणी के गोद का बच्चा भी युद्ध में जाने के लिए गोद से उछल पड़ा, बालक में ऐसे शौर्य को देखकर उसकी मां के स्तनों से दूध की धारा बह चली जिससे गोद का बालक भीग गया |

हठ करतो हाँचल पकड़,
लुक छिप खातो गार |
मायड़ फूलै देख मन,
उण हाथां तरवार ||१५८||

जो बालक कभी बालोचित चपलतावश मां का आँचल पकड़ कर हठ करता था तथा छुप-छुप कर मिटटी खाता था ,आज उसी बच्चे के हाथ में तलवार देखकर मां फूले नहीं समा रही |

दरवाजै मायड़ कटी ,
बापू टूका-टूक |
तिपडै सुत तंडुकियो,
बैरी टाक बन्दूक ||१५९||

द्वार पर युद्ध करती हुई माता ने वीर गति पाई और पिता के शरीर के भी टुकड़े टुकड़े हो गए | इस पर उसका वीर पुत्र तत्काल ललकारता हुआ निकला और शत्रु को अपनी बन्दूक का निशाना बना दिया |

स्व.आयुवानसिंह शेखावत

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