अमर धरा अहसान |
लीधौ चमचौ दाल रो,
सिर दीधो रण-दान ||१२४||
इस वीर भूमि की कृतज्ञता प्रकाशन की यह अमर रीत रही है कि दल के एक चम्मच के बदले में यहाँ के वीरों ने युद्ध में अपना मस्तक कटा दिया ||
बिना घोर घमसाण |
सिर टूटयां बिन किम फिरै,
असली गढ़ पर आण ||१२५||
यहाँ के वीरों ने बिना घमासान युद्ध किए नकली गढ़ भी शत्रु को नहीं दिया , फिर बिना मस्तक कटाए असली गढ़ शत्रु को भला कैसे सौंप सकते है |
सूरां नीति सार |
कटियाँ पाछै सिर हंसै,
बिडदातां इक वार ||१२६||
शूरवीरों के लिए नीति का सार यही है कि वह बिरुदावली सुनकर युद्ध में भिड़ जाता है और उसका कटा हुआ सिर भी अपनी कीर्ति का बखान सुनकर प्रसन्नता से पुलकित होने लगता है |
अब लग फाटक सेस |
सिर फेंक्यो भड़ काट निज ,
पहलां दुर्ग प्रवेस ||१२७ ||
वीरों के दोनों दलों ने दुर्ग पर आक्रमण किया जब एक दल के सरदार को पता चला कि दूसरा दल अब फाटक तोड़कर दुर्ग में प्रवेश करने ही वाला है तो उसने अपना खुद का सिर काट कर दुर्ग में फेंक दिया ताकि वह उस प्रतिस्पर्धी दल से पहले दुर्ग में प्रवेश कर जाये |
गज माथै बण मोड़ |
सुरग दुरग परवेस सथ,
निज तन फाटक तोड़ ||१२८ ||
अपनी आन की खातिर उस वीर ने दुर्ग का फाटक तोड़ने के लिए फाटक पर लगे शूलों से अपना सीना अड़ाकर हाथी से टक्कर दिलवा अपना शरीर शूलों से बिंधवा लेता है और वीर गति को प्राप्त होता है इस प्रकार वह वीर गति को प्राप्त होने के सथ ही अपने शरीर से फाटक तोड़ने में सफल हो दुर्ग व स्वर्ग में एक साथ प्रवेश करता है |
पड्यो न गोलो आय |
पावां सूं पहली घणो,
सिर पडियो गढ़ जाय ||१२९ ||
जब वीरो के एक दल ने दुर्ग का फाटक तोड़कर दुर्ग में प्रवेश किया परन्तु जब उनकी दृष्टि किले में पड़ी तो देखा कि किले में उनके पैर व दृष्टि पड़ने पहले ही चुण्डावत सरदार का सिर वहां पड़ा है जबकि उस वीर के सिर से पहले प्रतिस्पर्धी दल का दागा तो कोई गोला भी दुर्ग में नहीं पहुंचा था |
दोहा न.१२७,१२८,१२९ के लिए संदर्भ कथा पढने के यहाँ चटका लगाएं |
स्व.आयुवानसिंह शेखावत
बहुत ही शानदार रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम
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