हठीलो राजस्थान-18

Gyan Darpan
0
सूरापण सु-नसों सकड़,
ढील न लागै ढिंग्ग |
पीवै नीं वो डगमगै ,
पीधां बणे अडिग्ग ||११५||

शौर्य का नशा भी बड़ा प्रबल है | जिसके चढ़ने पर व्यक्ति अडिग व चुस्त हो जाता है | जो इस शौर्य के नशे को नहीं पीता वह ही डगमगाता रहता है और जो पी लेता है वह अविचलित हो जाता है |

हियै निराशा न रहै,
मुंजीपण मिट जाय |
सूरापण जिण घट बसै,
झूठ कपट झट जाय ||११६||

जिस हृदय में शौर्य निवास करता है,उस ह्रदय में निराशा व्याप्त नहीं हो सकती है व कृपणता भी विलीन हो जाती है |जिस हृदय में शौर्य निवास करता है ,उससे झूठ व कपट भी स्वत: ही दूर हो जाते है |

जग चालै जिण मारगां,
भड चालै उण नांह |
कठिण भडां सथ चालणों,
विकत भडां री राह ||११७||

संसार जिस मार्ग पर चलता है ,वीर उस मार्ग पर नहीं चलते | वीरों का मार्ग बड़ा विकट होता है अत: उनके साथ चलना बहित कठिन है |

जग अधपत नहै आदरै,
बिसरै जुग बितांह |
सूरां चित भावै सदा ,
गावै नित गीतांह ||११८||

संसार में बड़े बड़े अधिपतियों का कालांतर में कोई आदर नहीं करता | युग बीतने के साथ लोग उन्हें भूल जाते है | परन्तु शूरवीर तो सदा ही लोक-मानस में श्रद्धा से स्मरण किए जाते है तथा उनका यश नित्य गीतों में गूंजता है |

ईस चरण नमतो सदा,
कै कटतो पर काज |
केव्यां आगल किम नमै,
अनमी माथो आज ||११९||

वीर कहता है - मेरा सिर या तो ईश्वर के चरणों में झुक कर धरती को स्पर्श करता है या फिर दूसरों के हित में कट कर भूमि के चरणों में झुकता है | ऐसा मेरा स्वाभिमानी मस्तक शत्रुओं के समक्ष कैसे झुक सकता है |

आदर सूं जिणों सदा ,
आदर धरती आन |
जिण घर आदर नह रहै ,
वा घर नरक समान ||१२०||

सदैव आदर से जीना ही अच्छा रहता है क्योंकि आदर इस धरती की आन है | जिस धरती पर आदर नहीं होता ,वह धरती नरक समान होती है |

स्व.आयुवानसिंह शेखावत


एक टिप्पणी भेजें

0टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें (0)