हठीलो राजस्थान-16

Gyan Darpan
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सुत गोदी ले धण खड़ी,
जौहर झालां जोर |
झालां हिड़दे धव जलै,
लाली नैणा कोर ||
जौहर के समय वीर नारी अपने पुत्र को लिए जौहर की प्रचंड ज्वाला में कूदने हेतु खड़ी है | उधर उसके वीर पति के हृदय में भी वीरत्व की ज्वाला धधक रही है तथा उसकी आँखों की कोरों में रोष की लालिमा लहक रही है |

दस सर कटतां ढह पड्यो,
धड़ नह लड़ियो धूत |
सिर इक कटियाँ रण रच्यो,
रंग घणा रजपूत ||
दसशीश रावण सिर कटते ही ढह पड़ा | उसका धड़ युद्ध में नहीं लड़ सका | धन्य है वह राजपूत वीर जो एक सिर के कट जाने के बाद भी युद्ध करते रहते है |

बांको सुत लंकेस रो,
सुरपत बाँधण हार |
सिर कटियाँ फिर नह हिल्यो,
रण उठ कियो न वार ||
लंकापति रावण का वीर पुत्र मेघनाथ जिसने देवताओं के राजा इंद्र को भी बंदी लिया था | सिर कटने के बाद वह न तो हिल सका और न ही उठकर वार कर सका |

सिर देवै पर कारणे,
सिर झेलै पर तांण |
बीतां बातां गीतड़ा,
बढ़ बढ़ करै बखाण ||
यहाँ के शूरवीरों को धन्य है जो परकाज हित अपना मस्तक कटा देते है तथा दुसरे के संकट को अपने सिर पर झेल लेते है | कवियों के गीतों व लोककथाओं में ऐसे शूरवीरों की कीर्ति का बढ़-बढ़ कर बखान किया जाता है |

रजवट खूंटो नीमणों,
टूटे नांह हिलंत |
विध बांधी बल-बरत सूं ,
वसुधा देख डिगन्त ||
रजवट (क्षत्रियत्व) वह मजबूत खूंटा है जो न तो हिल सकता है ,न टूट सकता है | इसीलिए विधाता ने इस विचलित होती हुई पृथ्वी को शक्ति की रज्जू (रस्सी) से रजवट के खूंटे से बाँधा है (क्षत्रिय के शासक होने का यही सिद्धांत है)|

सुरावण सकती सकड़,
मेटे विधना मांड |
देय हथेली थाम दे ,
डगमगतौ ब्रह्माण्ड ||
शौर्य में इतनी सामर्थ्य है कि वह विधाता के लेख को भी मिटा सकता है | वह डगमगाते ब्रह्मांड को भी अपनी हथेली लगाकर रोक सकता है |

स्व.आयुवानसिंह शेखावत

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