महन्त बाबा दिग्विजयनाथ, गोरखनाथ मंदिर, गोरखपुर

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Mahant Yogi Digvijay Nath, Gorkhnath Mandir, Gorkhpur

योगी आदित्यनाथ के उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री चुने जाने के बाद गोरखपुर का गोरक्षनाथ पीठ और वहां के महंतों को जानने की हर किसी में जिज्ञासा बढ़ी है। बहुत कम लोगों को पता है कि इस चर्चित, प्रसिद्ध पीठ पर मेवाड़ के महाराणा प्रताप के भाई के वंश में जन्में एक योगी भी महन्त पद पर रह चुके है और उन्हीं के द्वारा शुरू की गई कई जनहित योजनाओं को योगी आदित्यनाथ ने आगे बढाया है|
असाधारण प्रचण्ड व्यक्तित्व, ओज, तेजस्विता का सजीव श्रीविग्रह, गौर वर्ण, मोहक आकर्षक व्यक्तित्व, दक्षता और सत्यावृत्त निष्ठा के प्रतीक, लम्बा और विशाल शरीर, सुडौल तथा सुगठित अंग-प्रत्यंग वाले, योगाचार्य, धर्माचार्य, शिक्षाचार्य-आचार्यत्रय की महिमा से संपन्न सिद्ध योगपीठ के महन्त व अप्रितम लोकनायक बाबा दिग्विजयनाथ का जन्म काकरवाँ उदयपुर के राणावत परिवार में सम्वत 1951 वि. वैशाख पूर्णिमा को हुआ था। उनका बचपन का नाम राणा नान्हूसिंह था। मेवाड़ के महाराणा प्रतापसिंह के 24 भाइयों में तीसरे भाई विरमदेव के वंशज को काकरवाँ की जागीर मिली थी। उसी ठिकाने में मेवाड़ के महाराणा उदयसिंह से बाईसवीं पीढ़ी में ठाकुर उदयसिंह राणावत के कुल में चार पुत्रों में तीसरे पुत्र के रूप में महन्त दिग्विजयनाथजी का आविर्भाव हुआ था। उदयपुर के सन्निकट फूलनाथ नामक नाथपंथ के एक योगी रहते थे। वे गोरखपुर के गोरखनाथ मंदिर के तत्कालीन महन्त बलभद्रनाथ जी के शिष्य थे। ठा. उदयसिंह ने उनसे निवेदन किया- ‘‘मेरी कई संताने है। एक संतान मैंने गोरखनाथ के गोरखनाथ मंदिर में चढाने की मनौती की थी। अतः मैं अपनी एक संतान आपको भेंट करता हूँ। फूलनाथ नान्हूसिंह को लेकर गोरखपुर आये और वहां यह खबर फैला दी गई कि नान्हूसिंह गणगौर के मेले में खो गये थे। फूलनाथ ने नान्हूसिंह को गोरखनाथ मंदिर के महन्त के हाथों सौंप दिया। योगिराज बाबा गम्भीरनाथ की देख-रेख में इनका पालन-पोषण हुआ तथा शिक्षा-दीक्षा की संतोषजनक व्यवस्था की गई। दिग्विजयनाथ के प्रारंभिक जीवन काल में गोरखनाथ मंदिर के महन्त सुन्दरनाथ थे। सुन्दरनाथ के गूरुभाई योगी ब्रह्मनाथ दिग्विजयनाथ पर अपार स्नेह रखते थे।

महन्त सुन्दरनाथ के ब्रह्मलीन होने के बाद 1989 में ब्रह्मनाथ महन्त पद पर अधिष्ठित हुये। उन्होंने विधिवत यौगिक शिक्षा प्रदान कर दिग्विजयनाथ को अपना शिष्य बनाया। उनके ब्रह्मलीन होने के बाद बाबा दिग्विजयनाथ महन्त पद पर अधिष्ठित हुये और 1992 वि. से 2026 वि. की आश्विन कृष्ण तृतीया तक जीवनपर्यन्त महन्त पद का दायित्व संभालते रहे। उन्होंने प्राचीन गोरखनाथ मंदिर, गोरखपुर का पुनर्निर्माण कर उसका भव्य कायाकल्प कर दिया। साथ ही साथ वे भारतीय शिक्षा जगत के महनीय आचार्य थे। महाराणा प्रताप के स्वाभिमान से प्रेरित होकर उन्होंने महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद ट्रस्ट के अंतर्गत महाराणा प्रताप विद्यालय, गोरक्षनाथ संस्कृत विद्यापीठ, महाराणा प्रताप शिशु शिक्षा विहार, महाराणा प्रताप पोलिटेक्निक, दिग्विजयनाथ स्नातकोतर महाविद्यालय आदि की स्थापना कर अपनी विशाल हृदयता, दक्षता तथा शैक्षिक पुनर्जागरण में सुरुचि का अनुभवपूर्ण परिचय दिया। गोरखपुर विश्वविद्यालय की स्थापना में भी उनकी अग्रणी भूमिका सर्वविदित है। उन्होंने अखिल भारतीय अवधूत भेष बारहपंथ नाथ योगी महासभा का सन 1939 ई. में गठन कर उसका आजीवन अध्यक्ष पद भी सुशोभित किया था तथा योगियों के जीवन में अद्भुत संक्रांति विकसित की। वे सच्चे अर्थ में हिन्दू थे, हिन्दुओं के प्रति उनके हृदय में अगाध निष्ठा और श्रद्धा थी।

सन 1946 ई. में आपने योगीश्वर गोरखनाथ की तपोभूमि, गोरखपुर में अखिल भारतीय हिन्दू महासभा के अधिवेशन का ऐतिहासिक आयोजन किया था तथा ग्वालियर में संवत 2017 वि. में संपन्न हुये अखिल भारतीय हिन्दू महासभा के अधिवेशन की अध्यक्षता की थी। वे आदर्श कर्मयोगी, राष्ट्रवादिता के प्राण, आचार्य शंकर, समर्थ स्वामी रामदास, स्वामी दयानन्द सरस्वती, विवेकानंद तथा स्वामी रामतीर्थ की परम्परा के ही प्राणवान अंग थे।

महन्त दिग्विजयनाथजी ने स्पृहणीय यशस्वी जीवन जीकर संवत 2026 वि. की आश्विन कृष्ण तृतीया, 28 सितम्बर सन् 1969 ई. को सांयकाल 75 वर्ष की अवस्था में शिवैक्य प्राप्त किया। उनका नाम, उनका कालजयी कृतित्व भारतीय इतिहास के पृष्ठों में स्वर्णाक्षरों में अंकित है।

श्रीगोरखनाथ मन्दिर के पश्चिमी पृष्ठ भाग में राष्ट्रीय पुनर्निर्माण एवं शैक्षिक पुनर्जागरण के पुरोधा, हिन्दु राष्ट्र के उद्गाता, महान धर्मयोद्धा युगपुरुष, ब्रह्मलीन महन्त दिग्विजयनाथ महाराज के कृतित्व के अनुरूप श्रद्धांजलि-स्वरूप उनके सुयोग्य उत्तराधिकारी वर्तमान गोरक्षपीठाधीश्वर महन्त अवेद्यनाथ द्वारा निर्मित सैकडों वर्गफीट क्षेत्र के विस्तार से युक्त विशाल और भव्य ‘महन्त दिग्विजयनाथ स्मृति भवन’ अपने आप में नाथ योग के ऐश्वर्य और भारतीय संस्कृति की अखण्डता, राष्ट्रीयता तथा हिन्दुत्व का चिरस्थायी भव्य स्मारक है। भवन में भूतल पर सुसज्जित सभागार है। जिसमें पाँच हजार से अधिक लोग एक साथ बैठ सकते हैं। भवन की दीर्घाओं में चारों ओर भित्ति पर योग साधना तथा नाथ पंथ से सम्बन्धित महापुरुषों के चरित्र चित्र-कथाओं के माध्यम से प्रदर्शित किये गये हैं। अन्य देवी-देवताओं तथा राष्ट्रीय महापुरुषों के भी चित्र एवं उनकी मूर्तियाँ तथा सुभाषित यत्र-तत्र उत्कीर्ण है। भवन के ऊपरी तल में पुस्तकालय तथा गोरक्षनाथ प्राच्य विद्या शोध संस्थान का कार्यालय है।


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