एक चोर जिसकी स्मृति को राजा ने बनाया चिरस्थाई

Gyan Darpan
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Hida Mori jaipur story in Hindi

राजस्थान की लोक कथाओं में चोरों की चतुराई, बहादुरी और साफगोई पर कई कहानियां प्रचलित है| जिनमें खींवा-बीजा और खापरिया चोर की कहानियां प्रसिद्ध है| खापरिया चोर की चतुराई तो किसी तिलिस्म से कम नहीं लगती| इन कहानियों पर राजस्थान के साहित्कारों ने भी खूब चलाई है लेकिन सभी कहानियां साहित्यकारों व कहानीकारों की कल्पनाएँ नहीं है| इनमें बहुत सी कहानियां सच्ची भी है जिनमें चोरों ने अपनी चोर कला, चातुर्य, साहस व हिम्मत का परिचय दिया है|


ऐसी ही एक कहानी जयपुर के Maharaja Madhosingh ji व उस ज़माने के प्रसिद्ध चोर हीदा मीणा (Hida Meena) से जुड़ी है| हीदा मीणा के साहस, चातुर्य और चोर कला से प्रभावित होकर महाराजा माधोसिंह जी ने उसकी स्मृति को चिरस्थाई बनाने के लिए जयपुर के एक मार्ग का नाम ही हीदा मोरी Heeda Mori रख दिया था| रामगंज चौपड़ से सूरजपोल बाजार के मध्य एक छोटी मोरी (गली) जिसे अब चौड़ा मार्ग बना दिया गया है आज भी हीदा मोरी के नाम से जाना जाता है|

क्षत्रिय चिंतक व जयपुर के इतिहास की गहरी जानकारी रखने वाले पूर्व आरपीएस अधिकारी श्री देवीसिंह, महार साहब से सुनी इस कहानी के आधार पर एक दिन महाराजा माधोसिंह जी ने उस जमाने के प्रसिद्ध व चर्चित चोर हीदा मीणा को राजमहल में बुलवाया और पूछा कि- तूने कभी राजमहल में तो चोरी नहीं की?

हीदा मीणा ने महाराजा से कहा- नहीं हुकुम ! आज तक तो जयपुर राज की किसी वस्तु पर मेरी चोर नजर नहीं पड़ी|

इस तरह महाराजा व हीदा मीणा के बीच वार्तालाप होने के बाद महाराजा ने हीदा को जाने की आज्ञा दी|
महाराजा से मुलाक़ात के कुछ ही दिन बाद जयपुर राज्य का हाथी चोरी हो गया| महाराजा के आदेश पर राज्यभर में जयपुर के सैनिकों ने हाथी की तलाश की| सभी चोरों से हर हथकंडा अपनाकर हाथी बरामद करने की कवायद की गई, पर हाथी ना मिला| आखिर महाराजा माधोसिंह जी ने हीदा मीणा को फिर राज दरबार में बुलाया और पूछा कि- हीदा ! हाथी तूनें तो चुराया क्या? हीदा मीणा ने हाथ जोड़ कर कहा- हाँ ! महाराज, हाथी तो मैंने ही चुराया है आप बरामद करवा लीजिये|

तब महाराजा माधोसिंह जी ने उससे पूछा कि- पहले यह बता तूनें हाथी चुराया क्यों?

हीदा मीणा बोला- महाराज ! मुझे तो आपने ही अपने राज का कुछ चुराने की प्रेरणा दी थी| वरना मैंने तो आजतक राज का कुछ नहीं चुराया| इसमें मेरी क्या गलती?

महाराजा बोले- ठीक है! तेरी प्रतिभा हमने देख ली, अब तो बता दे कि हाथी तूनें इतने दिन रखा कैसे व कहाँ?

हीदा मीणा के कहने पर महाराजा ने हाथी लाने हेतु उसके साथ सैनिक भेजे| सैनिकों ने देखा हाथी भूमि में खोदे गए एक गहरे गड्डे में खड़ा चारा चर रहा है| गड्डा ऊपर से घास-फूस डालकर बंद है| यदि गड्डे के पास से भी कोई गुजरे तो उसे भी यह आभास ना हो कि यहाँ गड्डा है और उसमें हाथी बंधा है|

हाथी मिलने पर महाराजा माधोसिंह जी ने हीदा मीणा के साहस और उसकी चौर्यकला से प्रभावित होकर उससे ईनाम मांगने को कहा|

हीदा मीणा बोला- महाराज ! धन लेकर तो मैं क्या करूँगा, वह तो चोरी कर कभी भी एकत्र कर सकता हूँ| अत: कुछ देना है तो ऐसा दीजिये कि मेरा नाम हो जाये और मैं अमर हो जाऊं|
तब महाराजा माधोसिंह जी ने रामगंज चौपड़ से सूरजपोल बाजार के मध्य एक छोटी मोरी (गली) का नाम हीदा मोरी रख दिया जो आज भी हीदा मीणा की चौर्यकला और उसके साहस, चातुर्य और साफगोई की कहानी याद दिलाती है|

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