राज्य का उत्तराधिकारी चुनने हेतु अनूठा आयोजन

Gyan Darpan
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Rao Raja Pratap Singh, Maharao Bakhtavar Singh of Alwar


सन 1785 ई. के एक दिन अलवर के इतिहास प्रसिद्ध बाला दुर्ग के प्रांगण में एक अनूठे आयोजन के लिए शामियाना लगा था| इस आयोजन में अलवर के राजा राव प्रतापसिंह जी के नजदीकी रक्त सम्बन्धियों यानी राव कल्याणसिंह नरुका के वंशजों की बारह कोटडियों के बालकों को आमंत्रित किया गया था| बालकों की रूचि अनुसार शामियाने में बहुत सारे तरह तरह के खिलौने, खाने पीने के लिए तरह तरह के पकवान, मिठाइयाँ और पेय पदार्थों की व्यवस्था के साथ छोटे मोटे हथियार यथा कटारी, तलवार, ढाल आदि अस्त्र-शस्त्र भी रखे गये थे, आखिर वहां क्षत्रीय बालकों का जमावड़ा जो होना था|

शामियाने के भीतर ही एक बिछावट भी की गई थी| जिस पर एक मसन्द भी लगी थी| यह बिछावट ठीक उसी तरह की गई थी, जैसे किसी ऐसे आयोजन या महफ़िल में राजा के लिए की जाती है| यह आयोजन भी ठीक ऐसे ही प्रतीत होता हो रहा था, जैसे राजा अपने खास सभासदों के साथ कर रहे हों| बस इस आयोजन में एक ही अलग बात थी कि इस आयोजन में शरीक होने वाले सभी बालक थे| बिछावट पर मसन्द देखकर वहां उपस्थित लोग कयास लगा रहे थे कि शायद राजा बालकों के संग वहां बैठेंगे|
थोड़ी ही देर में राजा के नजदीकी रक्त सम्बन्ध वाली 12 कोटडियों के सभी बालकों को वहां बुलाया गया और वहां रखी खाने की मिठाई सहित अन्य सामग्री खाने व वहां रखे सभी तरह के खिलौने लेकर खेलने की इजाजत दी गई| शामियाने में उपलब्ध पकवानों के साथ रखे खिलौने सभी बालकों को आकर्षित कर रहे थे| जिन्हें लेने की इजाजत मिलने के साथ ही सभी बालक अपनी अपनी पसंद का खिलौना लेने हेतु खिलौनों पर टूट पड़े| कुछ बालक खिलौनों के लिए झगड़ने भी लगे| कुछ बालक खिलौनों में रूचि नहीं दिखाते हुए अपनी पसन्द की भोज्य सामग्री खाने में जुट गए|

लेकिन इन बालकों में एक बालक ऐसा भी था जो भोजन कर रहे बालकों पर नजर रखते हुए खिलौनों के लिए झगड़ रहे बालकों की हरकत देखकर रहा था| इसके चेहरे के हावभाव देखकर लग रहा था कि उसे खिलौनों के लिए झगड़ रहे बालकों का कृत्य पसंद नहीं आ रहा था| उसने वहां रखी एक ढाल व तलवार उठाई और खिलौनों के लिए झगड़ रहे बालकों को शांत रहने के आदेश दिया तथा कहा कि सभी बालक एक एक खिलौना बारी-बारी लें व शांति बनाये रखे| इस तरह वह बालक आपस में झगड़ रहे बालकों को शांत कर बिछावट पर लगे मसन्द पर जाकर ठीक उसी तरह बैठ गया, जैसे इस तरह के आयोजन में राजा बैठते है|
अलवर के राजा व अलवर पर नरुका राज्य के संस्थापक राव राजा प्रतापसिंह जी बालकों की हर हरकत व आचरण पर बारीकी से नजर रखे हुए थे| उनकी पारखी नजर बालकों के आचरण का विश्लेषण करने पर लगी थी| मसन्द पर तलवार व ढाल लेकर राजाओं की तरह बैठे बालक के आचरण व उसकी विलक्षण प्रतिभा ने उन्हें खास प्रभावित किया| उस बालक द्वारा खिलौनों के लिए झगड़ते बालकों को शांत करने व बारी बारी से खिलौने लेने की हिदायत देते समय राव प्रतापसिंह जी ने बालक की नेतृत्व क्षमता का आंकलन कर लिया| वह बालक था थाणा के ठाकुर धीरसिंह का द्वितीय पुत्र बख्तावरसिंह|

राव राजा प्रतापसिंह जी के अपनी संतान नहीं थी और उन्हें अपने रक्त सम्बन्धियों के किसी बालक को अपना उत्तराधिकारी चुनना था| आज उन्होंने यह आयोजन इसी उद्देश्य के लिए किया था कि वे उन बालकों में से किसी योग्य बालक का अपने उत्तराधिकारी के रूप में चयन कर सके और राव राजा प्रतापसिंह जी इस अनूठे आयोजन में अपने उत्तराधिकारी का चयन करने में सफल रहे| उन्होंने थाणा के ठाकुर धीरसिंह के द्वितीय पुत्र बख्तावरसिंह को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया|
चूँकि बीजवाड़ माचाड़ी ठिकाने की उपशाखा थी व रक्त सम्बन्ध के अनुसार राव राजा प्रतापसिंह जी से बीजवाड़ ठिकाने के वंशजों की ज्यादा नजदीकियां थी और परम्परानुसार उत्तराधिकार पर बीजवाड़ ठिकाणे के किसी बालक का पहला अधिकार बनता था| जबकि थाणा ठिकाणा लालावत नरुकों के पांच ठिकानों यथा माचाड़ी, पाड़ा, पलवा, खोहर और पाई में से पाड़ा ठिकाणे की उपशाखा थी| अत: बीजवाड़ ठिकाणे ने इस घोषणा का प्रतिरोध किया| पर बालक बख्तावरसिंह की विलक्षण प्रतिभा, उसकी नेतृत्व क्षमता और सब को साथ लेकर चलने जैसा आचरण देखकर राव राजा प्रतापसिंह जी ने बीजवाड़ की आपत्ति खारिज करते हुए बख्तावर सिंह को ही अपना उत्तराधिकारी घोषित किया|

26 दिसंबर 1790 को राव राजा प्रतापसिंह जी के निधन के बाद बख्तावरसिंह कछवाह वंश की नरुका शाखा के राज्य अलवर के द्वितीय शासक बने और 24 वर्ष तक अलवर पर राज किया| महाराव बख्तावरसिंह जी बहादुर, साहसी, कूटनीतिज्ञ शासक थे| उन्होंने अलवर राज्य की सीमाओं की पूर्ण सुरक्षा करने साथ सीमाओं का विस्तार भी किया| अलवर के बकेत्श्वर महादेव का विशाल मंदिर आपके द्वारा ही निर्मित है|

सन्दर्भ :
1. "राजस्थान के कछवाह" लेखक कुं. देवीसिंह मंडावा
2. "अलवर राज्य के संस्थापक राव राजा प्रतापसिंह" लेखक पृथ्वीसिंह नरुका

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