स्वतंत्रता सेनानी भूपसिंह गुर्जर उर्फ़ विजय सिंह पथिक

Gyan Darpan
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Vijay Singh Pathik, Bhoop Singh Gurjar
उत्तरप्रदेश के बुलंदशहर जिले के गुठावली ग्राम का निवासी भूपसिंह गुर्जर कुलोत्पन्न युवक था| लंबे कद और सुदृढ़ शरीर वाले भूपसिंह का रंग सांवला था और उसके चेहरे पर चेचक के दाग थे| वह सुलेखक था और खड़ी बोली में रचना भी किया करता था| किशनगढ़ में रहने वाले अपने किसी सम्बन्धी के पास वह नौकरी की तलाश में आया और कुछ काल तक वहां राज्य के धाभाई जी के पास कार्य करता रहा|
धाभाई जी की किसी बात पर अनबन होने पर वह अजमेर चला गया और वहां वहां के रेल्वे वर्कशाप में नौकर हो गया| अजमेर में वह एक किराये के मकान में रहता था जो मनीषी समरथदान के प्रेस के समीप ही था| अवकाश के समय वह समरथदान के प्रेस में जाया करता था| वहां व्याप्त देश भक्तिपूर्ण वातावरण से वह प्रभावित था| बारहठ जी ने उसे होनहार नवयुवक जान कर राव गोपालसिंह खरवा के पास भेज दिया| सन 1912 ई. के प्रारंभिक महीनों में वह खरवा आया| राव गोपालसिंह ने अपने कामदार मुणोत भूरालाल के पास उसकी नियुक्ति करके उसके कामकाज करने के तरीके की बारीकी से जाँच की और अंत में उसे अपने निजी सचिव के पद पर नियुक्त कर दिया| राव गोपालसिंह के पास आने वाले हिंदी पत्रों के उत्तर लिखना, उनके भाषणों के प्रारूप तैयार करना और पत्राचार की फायलों को सुरक्षित रखना आदि कार्य उसके जिम्मे थे|

मिनाक्षा नामक एक मद्रासी सज्जन अंग्रेजी में आये पत्रों के उत्तर तैयार करने के काम पर नियुक्त था| अलारखां उस्ता बंदूकों का दक्ष कारीगर था और ठिकाने का नौकर था| राव गोपालसिंह के निवास कक्ष की चांदणी में बैठकर वह बंदूकों की मरम्मत करता और खाली कारतूस भरने का काम भी करता था| भूपसिंह भी उस कार्य में रूचि रखता था| फुरसत के समय वह और मोड़सिंह भवानीपुरा उस्ता के पास जा बैठते और खाली कारतूस भरने के काम में हाथ बंटाते थे| खरवा आने के समय भूपसिंह की आयु 20/22 वर्ष की रही होगी| राव गोपालसिंह के पास रहने से भूपसिंह के विचारों में भी उग्र क्रांतिकारी भावना का उदय होना स्वभाविक था| वहां रहते हुए उसे क्रांतिकारी युवाकों के सम्पर्क में आने के अनेक अवसर प्राप्त हुए| राव गोपालसिंह के निजी सचिव होने से पद प्रतिष्ठा एवं विश्वसनीयता ने भी उसे क्रांतिकारियों से परिचित होने का यथेष्ट मौका दिया|

जून, 1915 ई. में ए.जी.जी. राजपुताना के आदेश पर राव गोपालसिंह को टॉडगढ़ के सुदूर पहाड़ी स्थान पर नजर-कैद किया गया, तब उन्हें अपने कुछ सेवकों और विश्वस्त साथियों को अपने पास रखने की सुविधा प्रदान की गई थी| उसी आदेश के अनुसार मोड़सिंह भवानीपुरा, सेक्रेट्री भूपसिंह, सवाईसिंह मेड़तिया आदि कुछ विश्वस्त लोग उनके साथ टॉडगढ़ गए थे| उसी काल में लाहौर षडयंत्र केश में पकड़े एक व्यक्ति ने अपने बयानों में भूपसिंह से मिलने एवं उसके द्वारा खरवा से बन्दूकें व कारतूस प्राप्त करने की बात कही| उसी बयान के आधार पर अजमेर से एक पुलिस इंस्पेक्टर भूपसिंह से पूछताछ करने टॉडगढ़ पहुँचने वाला था| राव साहब को अपने अन्य सूत्रों से पुलिस इंस्पेक्टर के टॉडगढ़ आने और भूपसिंह के बयान लेने की सूचना मिल चुकी थी| अत: पुलिस दल के टॉडगढ़ पहुँचने से पूर्व ही उसी रात को भूपसिंह को वहां से निकालकर मेवाड़ के पहाड़ी क्षेत्र में छिपने और पनाह लेने को भेज दिया था|

जून, 1915 के पश्चात् फरार भूपसिंह, "विजयसिंह पथिक" के नाम से प्रकट हुआ और तब वह मेवाड़ के बिजोलिया ठिकाने के किसान आन्दोलन के अग्रणी नेता के रूप में जनता के सामने आया| किसान आन्दोलन में प्राप्त सफलता ने उसे किसान नेता और जन नेता के सर्वोच्च पद पर प्रतिष्ठित कर दिया| बिजोलिया किसान आन्दोलन के सम्बन्ध में श्री भंवरलाल पाण्डेय ने "सोलारी सही" और श्री शंकर सहाय सक्सेना ने "पथिक" नामक पुस्तक लिखी|
पथिक नामक पुस्तक के लेखक श्री शंकर सहाय सक्सेना ने टॉडगढ़ से फरार होने से पूर्व का भूपसिंह का जो वृतान्त लिखा है, उसके अधिकांश उल्लेख मनोकल्पित एवं निराधार है| उन्हें इतिहास सम्मत मानने के लिए कोई प्रमाणिक आधार नहीं है| उक्त पुस्तक के पृष्ठ-12 पर उल्लिखित है कि "भूपसिंह खरवा रहते समय अक्सर जोधपुर के प्रतापसिंह और बीकानेर के महाराजा गंगासिंह से मिलता, उनसे गुप्त परामर्श करता और उनके दिलीभावों को जानने की चेष्टा करता था"- सरासर झूठा और निराधार कथन है| मधुशाला की गप्प के सिवाय उस कथन का कोई महत्त्व नहीं नहीं है| उसी पुस्तक में उल्लेख है कि ब्यावर के दामोदरदास राठी ने भूपसिंह को सर्वप्रथम राव गोपालसिंह के पास भेजा था, निराधार और कल्पना प्रसून है| वास्तव में सन 1912 में अजमेर से मनीषी समरथदान ने भूपसिंह को सिफारिसी पत्र देकर खरवा भेजा था| इस प्रकार से ओर भी अनेक निराधार उल्लेख जो भ्रांति फ़ैलाने वाले है, उक्त पुस्तक में लिखे गए है| ऐसे निराधार भ्रांत कथनों का निराकरण किया जाना आवश्यक है| वरना वे कथन पाठकों को सदैव भ्रांति में डाले रहेंगे|

उक्त पुस्तक में अनर्गल व निराधार कई गलत कथन लिखे जैसे-

1. क्रांतिकारी नेताओं ने खरवा के राव गोपालसिंह को ब्यावर पर और भूपसिंह (पथिक) को अजमेर तथा नसीराबाद पर हमला करने का कार्य सौंपा था| (पृष्ठ-102) 2. राजस्थान के भूपसिंह- राव गोपालसिंह, मोड़सिंह और सवाईसिंह आदि के साथ 21 फ़रवरी 1915 को खरवा स्टेशन से कुछ दूर जंगल में कई हजार वीर यौद्धाओं का दल क्रांति की शुरुआत का संकेत पाने की प्रतीक्षा में तैयार था|

रात्रि को दस बजे के बाद अजमेर से अहमदाबाद जाने वाली रेलगाड़ी खरवा से गुजरती थी। उससे खरवा स्टेशन के समीप जंगल में एक बम का धमाका कार्यारंभ का संकेत था। उस संकेत को पाते ही भूपसिंह को अजमेर पर और खरवा ठाकुर को व्यावर पर आक्रमण करना था। किन्तु संकेत नहीं मिला। (पृ. 103)

3. बहुत अधिक संख्या में हथियार इकट्ठे किए गए थे, जिसमें तीस हजार से अधिक बन्दूकें थी। बहुत अधिक राशि में गोला और बारूद था। तुरन्त सब सामग्री गुप्त स्थानों में छिपा दी गई। (पृ. 104)

4. अन्य सभी क्रान्तिकारी दलों को खरवा से हटा दिया गया। इसके उपरान्त भूपसिंह, ठाकुर गोपालसिंह, मोड़सिंह और सवाईसिंह आदि पांच क्रान्तिकारी वीर बहुत से अस्त्र-शस्त्र, बंदूके, गोली बारूद, बम इत्यादि लेकर रातों रात खरवा के गढ़ से निकल कर जंगल में बनी एक शिकारी बुर्ज (ओदी) में मोर्चाबन्दी करके जा डटे। दूसरे दिन अजमेर का अंग्रेज कमिश्नर पांच सौ सैनिकों की टुकड़ी लेकर खरवा आया। उनके गढ़ में न मिलने पर खोजता हुआ वह उस शिकारी बुर्ज के पास पहुँचा और बुर्ज को घेर लिया गया। (पृ. 104)

"पथिक" नामक पुस्तक में उल्लिखित उपर्युक्त वर्णन कल्पना प्रसून एवं निराधार है। क्रान्तिकारियों द्वारा भूपसिंह को अजमेर-नसीराबाद पर आक्रमण करने की जिम्मेदारी सौंपने का कथन तो निरा-हास्यास्पद है और भंग पीने वाले (भंगोड़ियों) भंगेड़ियों की गप्प से अधिक उसका कुछ भी महत्व नहीं है। दिल्ली से क्रान्ति योजना के रहस्योदघाटन की खबर मिलते ही भूपसिंह का राव गोपालसिंह और उनके तीन साथियों के साथ, खरवा गढ़ से निकलकर जंगल में बनी शिकारी बुर्ज में जा बैठने और अंग्रेज कमिश्नर का 500 सैनिकों के साथ उन्हें वहाँ जा घेरने का कथन भी कल्पना की ऊंची उड़ान मात्र है। तथ्यहीन है। सही तथ्य तो यह था कि दिल्ली से पं. बालकृष्ण ऊखल की सूचना मिलते ही राव गोपालसिंह जंगल में लगे तम्बू-डेरे उठवाकर 25 फरवरी, 1915 को खरवागढ़ में आ गए थे। 27 जून, 1915 को अजमेर के अंग्रेज कलेक्टर ने खरवागढ़ में आकर राव गोपालसिंह को आदेश सुनाया। उक्त घटनाक्रम का सप्रमाण उल्लेख "राव गोपालसिंह खरवा" ग्रंथ के द्वितीय अध्याय में किया गया है। बनारस षडयंत्र केस की प्रकाशित सरकारी रिपोर्ट में भी भूपसिंह का नामोल्लेख कहीं नहीं मिलता। अजमेर-मेरवाड़ा के प्रसंग में उक्त रिपोर्ट में खरवा राव गोपालसिंह के संदर्भ में लिखा है—Thakur Gopalsingh Kharwa was in league with Rasbihari Bose in Feb., 1915. He was given charge for the emencipation of Ajmer Merwara in a wider plot of revolt at Delhi and other places (Sedition Committee Report, 1918)

इस उपर्युक्त सरकारी कमेटी की रिपोर्ट से ज्ञात होता है कि ‘पथिक' नामक पुस्तक में अजमेर-मेरवाड़ा में किये गये क्रान्तिकारियों के कार्यों का श्रेय पथिक को देकर अनेक प्रकार के जो अनर्गल मनगढ़न्त कथन लिख दिये गए हैं, वे सरासर गलत हैं, ऐतिहासिक तथ्यों की हत्या कर के पाठकों को विभ्रमित किये जाने का दुष्प्रयत्न मात्र है।

इतिहासकार सुरजनसिंह शेखावत, झाझड़ द्वारा लिखित पुस्तक "महान क्रांतिकारी राव गोपालसिंह खरवा" से साभार
नोट: पुस्तक के लेखक राव गोपालसिंह खरवा के दीवान रहे है|


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