भूस्वामी आन्दोलन

Gyan Darpan
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Bhoo Swami Aandolan 1956 by Rajput Community In Rajasthan

आजादी के बाद कांग्रेस नेताओं ने राजपूत जाति को शक्तिहीन करने के लिए सत्ता का प्रयोग करते हुए उनकी जागीरें समाप्त करने हेतु जागीरदारी उन्मूलन कानून बनाकर आर्थिक प्रहार किया, ताकि आर्थिक दृष्टि से भी शक्तिहीन हो जाये और राजपूत राजनैतिक तौर पर चुनौती ना दे सके। इस हेतु सन 1954 में जागीरदारी उन्मूलन कानून प्रारूप को तैयार करने के लिए राजस्थान क्षत्रिय महासभा व राजस्थान सरकार के बीच समझौता कराने हेतु गोविन्द बल्लभ पन्त को मध्यस्त बनाया गया। कोशिश करने पर भी इस समझौते में भूस्वामियों के प्रतिनिधियों को भाग नहीं लेने दिया गया।
ऐसी स्थिति में क्षत्रिय युवक संघ ने जाति को जागृत करने हेतु शंख बजाया तो जाति ने फिर अंगडाई ली। एक तरफ इस कानून को सबसे पहले राजस्थान उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई कर्मठ क्षत्रियों ने जिसमें आयुवानसिंह जी हुडील, तनसिंह जी बाड़मेर, ठाकुर मदनसिंह जी दांता, रघुवीरसिंह जी जावली, सवाईसिंह जी धमोरा, केशरीसिंह जी पटौदी, विजयसिंह जी राजपुरा, शिवचरणदास जी निम्बाहेड़ा (मेवाड़), हरिसिंह जी जालौर, कुमेरसिंह जी भादरा आदि ने भूस्वामियों को संगठित किया और जगह जगह घूमकर राजपूत समाज को सरकार से लड़ने को तैयार कर दिया। क्षत्रिय युवक संघ के युवकों ने सरकार के विरूद्ध अहिंसात्मक आन्दोलन चलाने की योजना बनाई। भूस्वामी आन्दोलन को व्यवस्था देने हेतु एक राजपूतों का शिविर (सिरोही) में रखा गया और वहां सरकार से डटकर मुकाबला करने की योजना बनाई गई। भूस्वामी आन्दोलन को नेतृत्व देने वाले कौन कौन और कब-कब होंगे ? निश्चित किया गया और भूस्वामी संघ के अध्यक्ष जब गिरफ्तार हो जायेगें तो दूसरे व्यक्ति उसका नेतृत्व ग्रहण कर लेंगे। ठा. मदनसिंह जी दांता प्रथम अध्यक्ष बनाए गए और इसी पंक्ति में फिर रघुवीरसिंह जी जावली, आयुवानसिंह जी हुडील, तनसिंह जी बाड़मेर, शिवचरणदास जी निम्बाहेड़ा (मेवाड़), हरिसिंह जी सिंहरथ (सिरोही) और केशरीसिंह जी पाटोदी रखे गए। इस सारी योजना का विवरण सौभाग्यसिंह जी भगतपुरा के पास रहा।

राजस्थान के सब जिलों में जिलेवार शिविरों को व्यवस्थाएं की गई। इन शिविर केन्द्रों से जत्थे के जत्थे जयपुर भेजने की व्यवस्था भी की गई और इस प्रकार क्षत्रिय युवक संघ के युवकों ने सरकार के सामने तूफानी संगठन खड़ा कर दिया था। यह भूस्वामी आन्दोलन 1 जून 1955 को आरम्भ हुआ और प्रथम दिन ही पांच हजार भूस्वामियों ने गिरफ्तारी दी। देश की स्वतंत्रता के बाद देश का यह एक बड़ा आन्दोलन था जिसमें प्रथम दिन ही इतने लोगों ने इतनी बड़ी संख्या में गिरफ्तारी दी। इस समय भूस्वामी संघ के अध्यक्ष मदनसिंह जी दांता थे। आन्दोलनकारियों के सिर पर केशरिया साफा होता था तथा एक बैज होता था जिस पर 'वीर सेनानी' अंकित होता था। आयुवानसिंह जी हुडील ने भूमिगत रहकर आन्दोलन का संचालन किया तो बाहर मदनसिंह जी व रघुवीरसिंह जी जावली आदि वीर भूस्वामियों के साथ डटे रहे।

क्षत्रिय युवकों और अन्य साहसी से जेलें भने लगी। आन्दोलन चलता रहा, राजपूत गिरफ्तार होते रहे। आन्दोलन का संचालन आयुवानसिंह जी ने भूमिगत रहकर किया। तनसिंह जी ने आन्दोलन का केंद्र बाड़मेर में खोला व बन्दी हुए। आन्दोलन की तेज गति से घबराकर तत्कालीन मुख्यमंत्री मोहनलाल सुखाड़िया ने भूस्वामी संघ के अध्यक्ष मदनसिंह जी दांता व रघुवीरसिंह जी जावली को लिखित आश्वासन दिया, जिसके फलस्वरूप आन्दोलन 21 जुलाई 1955 को स्थगित कर दिया गया, परन्तु इसकी क्रियान्विति पर पुन: मतभेद हो गया और 19 दिसंबर 1955 को पुन: आन्दोलन शुरू हो गया।

गृहमंत्री रामकिशोर व्यास के निवास स्थान पर प्रदर्शन किया गया। बहुत से भूस्वामी गोविन्दसिंह जी आमेट के नेतृत्व में गिरफ्तार किये गये। आन्दोलन चलता रहा, भूस्वामी जेल जाते रहे और मार्च 1956 में आयुवानसिंह जी को बन्दी बना लिये गये। भूस्वामी बन्दियों को राजनैतिक कैदी मानकर बी श्रेणी में रखा गया। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु आयुवानसिंह जी ने जोधपुर जेल में अनशन शुरू कर दिया। 22 मार्च, 1956 को आयुवानसिंह जी को टोंक जेल में भेज दिया गया जहाँ तनसिंह जी व सवाईसिंह जी धमोरा भी बन्दी थे। यहां इन दोनों ने भी अनशन शुरू कर दिए अन्त में सरकार को भूस्वामियों को राजनैतिक कैदी मानना पड़ा व उनको 'बी' श्रेणी की सुविधायें देनी पड़ी।

रामराज्य परिषद् व हिन्दू महासभा के नेताओं ने इस आन्दोलन का पूर्ण समर्थन किया। रामराज्य परिषद् के संस्थापक स्वामी करपात्री जी महाराज, स्वामी कृष्ण बौधाश्रम जी महाराज (जो बाद में ज्योर्तिमठ के शंकराचार्य बने), स्वामी स्व. रूपानन्दजी सरस्वती (ज्योर्तिमठ के तत्कालीन शंकराचार्य), लोकसभा के सदस्य नन्दलाल जी शर्मा (तत्कालीन लोकसभा सदस्य), केशव जी शर्मा, राजा महेन्द्रप्रताप जी वृन्दावन जैसी विशिष्ठ प्रतिभाओं का मार्ग दर्शन भी प्राप्त हुआ। (संघ शक्ति अक्टूबर 80 में श्री भानु के लेख से साभार) इनके अतिरिक्त पृथ्वीराजसिंह जी दिल्ली, ओंकारलाल जी सर्राफ, सत्यनारायण जी सिन्हा, जुगलकिशोर जी बिड़ला, डॉ. बलदेव जी आदि का सराहनीय योगदान रहा ।

इस आन्दोलन को सफल बनाने में अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा के अलावा राजस्थान के बाहर के राजपूतों का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा। मालवा के बासेन्द्रा ठिकाने के कँवर तेजसिंह जी सत्याग्रहियों का जत्था लेकर पहुंचे। राव कृष्णपालसिंह जी, रामदयालसिंह जी ग्वालियर, जनेतसिंह जी इटावा, महावीरसिंह जी भदौरिया, ठाकुर कोकसिंह जी, डॉ. ए.पी. सिंह जी लखनऊ, प्रेमचन्द जी वर्मा, सौराष्ट्र (गुजरात) से एडवोकेट नटवरसिंह जी जाड़ेजा, मास्टर अमरसिंह जी बड़गुजर भौड़सी (हरियाणा) आदि साहसी व्यक्ति भी इस आन्दोलन में कुद पड़े।
यों तो राजस्थान के तीन लाख से अधिक भूस्वामी इस आन्दोलन में सम्मिलित हुए पर सबका यहां नाम अंकित करना सम्भव नहीं। विशेष व्यक्तियों के अतिरिक्त जिनका अधिक सक्रिय योगदान रहा उनमें कल्याणसिंह जी कालवी, विजयसिंह जी नदेरा, रिसालसिंह जी जोधपुर, सूरसिंह जी रेटा (एस.एस. नाथावत), खण्डेला राजा लक्ष्मणसिंह जी, छोटा पाना धौंकलसिंह जी चरला, रघुनाथ सहाय जी वकील जयपुर, देवीसिंह जी व स्वरूपसिंह जी खुड़ी, उम्मेदसिंह जी कनई, नरपतसिंह जी खवर, हेमसिंह जी मगरासर, कानसिंह जी बोघेरा, सज्जनसिंह जी देवली, मास्टर अमरसिंह जी अलवर, राजा अर्जुनसिंह जी किशनगढ़, बलवन्तसिंह जी नेतावल (मेवाड़), हेमसिंह जी चौहटन, माधोसिंह जी ऊनावड़, उदयभानसिंह जी चनाना, सूरजसिंह जी झाझड़, बाघसिंह जी नेवरी, गणपतसिंह जी चंवरा (जयपुर जेल से छूटने के बाद वहीं देवलोक हुए), चैनसिंह जी भाकरोद, उदयसिंह जी भाटी, रणमलसिंह जी सापणदा, उदयसिंह जी आवला, हरिसिंह जी राठौंड (गढ़ियावाला रावजी), हरिसिंह जी और कुमसिंह जी (सोलंकी तला-बाड़मेर), भूरसिंह जी व हरिसिंह जी (सिन्दरथ-सिरोही), नरपतसिंह जी सराणा, मालमसिंह जी बड़गांव, कर्नल माधोसिंह जी ऊनावड़ा, जयसिंह जी नदेरा, गिरधारीसिंह जी खोखर, प्रतापसिंह जी सापून्दा, ठाकुर रिडमलसिंह जी सापून्दा, उम्मेदसिंह जी भदूण, महाराजा अर्जुनसिंह जी, ले. जनरल नाथूसिंह जी, राजा संग्रामसिंह जी खण्डेला, हनुवन्तसिंह जी खण्डेला आपजी भोमसिंह जी कुन्दनपुर कोटा, प्रो. मदनसिंह जी अजमेर, राव कल्याणसिंह जी, राजा सुदर्शनसिंह जी, शाहपुरा, तख़्तसिंह जी मलसीसर, नारायणसिंह जी सरगोठ, राव वीरेन्द्रसिंह जी खवा, (जयपुर) अमरसिंह जी, व आनन्दसिंह जी बोरावड़, तेजसिंह जी विचावा, ठा. मानसिंह जी कैराफ, तख्तसिंह जी, भीमसिंह जी, साण्डेराव, ठा. सवाईसिंह जी फालना के नाम गिनाये जा सकते हैं।

आन्दोलन तेज गति से चलने लगा, जयपुर की सड़कों और चौराहों पर केशरिया साफा बांधे हुए भूस्वामियों के जत्थे नजर आते थे। दिन प्रतिदिन भूस्वामियों से जेल भरी जाने लगी थी। ऐसे समय राजा मानसिंह जी जयपुर का सहयोग लेने के लिए आयुवानसिंह जी ने उनको एक पत्र लिखा जिसका भाव यह था कि हमारे पूर्वजों ने जयपुर रियासत की रक्षार्थ व प्रजा की रक्षार्थ सिर कटाये हैं। अब आपको जरा भी ध्यान है तो हमारी सहायता करें। यह पत्र खण्डेला राजा संग्रामसिंह जी के माध्यम से महाराजा के पास पहुँचाया गया। पत्र पढ़कर महाराजा मानसिंह जी प्रभावित हुए और उन्होंने भूस्वामियों को सहायता करने का मानस बना लिया तथा शीघ्र ही ही तत्कालीन प्रधानमंत्री पण्डित जवाहरलाल नेहरू से सम्पर्क साधा। दूसरी ओर इसी समय मोहरसिह जी लखाऊ व देवीसिंह जी महार दिल्ली पहुंचे और जुगलकिशोरजी बिड़ला के माध्यम से सत्यनारायण सिन्हा भी भूस्वामियों की मांगों से सहमत हुए और उन्होंने शीघ्र ही नेहरूजी से सम्पक किया। नेहरू जी ने भूस्वामियों की मांगों पर विचार करना स्वीकार किया। नेहरूजी के हस्तक्षेप से भूस्वामी कार्यकारिणी के सदस्यों को पन्द्रह दिन के लिए पेरोल पर रिहा किया। भूस्वामी सदस्या के अध्ययन और समाधान के लिए एक समिति निर्मित की गई। भारतीय प्रशासनिक सेवाओं के अनुभवी प्रशासक त्रिलोकसिंह व नवाबसिंह इनके सदस्य थे।

रघुवीरसिंह जी जावली, तनसिंह जी बाड़मेर व आयुवानसिंह जी ने भूस्वामियों की ओर से एक प्रतिवेदन तैयार किया इस समिति के सामने रखा। नेताओं से बातचीत की। अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा के मंत्री डॉ. ए.पी. सिंह जी, ठाकुर रघुवीरसिंह जी व आयुवानसिंह जी सहित छ: सदस्यों के शिष्टमण्डल ने नेहरूजी को स्मरण पत्र दिया। कुछ लोगों ने आन्दोलनकारियों में फूट डालकर इसे विफल करने का प्रयास भी किया पर भूस्वामी टस से मस नहीं हुए। नेहरूजी की भूस्वामियों के साथ सहानुभूति पर भी राज्य सरकार भूस्वामी वर्ग की सहृदयता को कमजोरी मान रही थी। अत: वार्ता असफल हो गई तो 29 मई 1956 को यह आन्दोलन पुन: जोर पकड़ने लगा। भैंरूसिंह जी बड़ावर, ठाकुर देवीसिंह जी खुड़ी और सवाईसिंह जी धमोरा वापिस जेल गए। पं. नेहरू को जब यह हालात मालुम हुए तो वयोवृद्ध गांधीवादी विचारक रामनारायण जी चौधरी की जयपुर भेजा।

भूस्वामी नेताओं से उन्होंने शीघ्र ही सम्पर्क किया। तनसिंह जी ने 1 जून 1956 को आमरण अनशन शुरू कर दिया था। राजस्थान सरकार का रवैया अच्छा न होने के कारण अयुवानसिंह जी ने पुनः 23 जून, 1956 को व्यक्तिगत सत्याग्रह का नोटिस दिया। इसी समय रघुवीरसिह जी जावली, रामनारायण जी चौधरी, उदयभानसिंह जी चनाना व विजयसिंह जी नदेरा भी आयुवानसिंह जी से जेल मिलने आये। आयुवानसिंह जी, सवाईसिंह जी धमारा व तनसिंह जी से लम्बी बातचीत की। अच्छा वातावरण बना प्रस्ताव तैयार किया गया। इस प्रस्ताव को दिखाने शिवचरणदास जी, ठा. रणमलसिंह जी सापणदा, उदयभाणसिंह जी चनाना, सुरसिंह जी रेटा जेल में मिलने गये।

26 जून 1956 को उच्च न्यायालय के आदेश से रिहा किये गए पर आयुवानसिंह जी व सवाईसिंह जी धमोरा जेल में ही रहे। बाद में मोहरसिंह जी एडवोकेट ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेश से 13 अगस्त 1956 की रिहा करवाया। इस आन्दोलन का सरकार पर अधिक दबाव आयुवानसिंह जी के व्यक्तिगत सत्याग्रह, उनकी भूख हड़ताल व उनके अनशन के कारण पड़ा। ठाकुर बाघसिंह जी शेखावत बरडुवा और नागौर जिले के गुरडवा ठाकुर ने भी आयुवानसिंह जी के समर्थन में अनशन किये। इन सबका मुख्यमंत्री सुखाड़िया पर नैतिक दबाव पड़ा। साथ ही भैरूसिंह जी की सहानुभूति भी भूस्वामियों के साथ थी।

इस कारण सरकार ने समझौता वार्ता शुरू की व समझौता हुआ। इस समझौते के अनुसार भूस्वामियों को खुदकाश्त के लिए मुरब्बे (जमीन), राजकीय सर्विस में जागीरदारों की नियुक्ति, जागीर कर्मचारियों के पेंशन की सुविधा, जागीर मुवावजे में वृद्धि आदि लाभ दिये गये। ये सुविधाएं नेहरू अवार्ड के नाम से जानी गई। राजस्थान के भूस्वामी संघ के आन्दोलन की समाप्ति के बाद गुजरात के भूस्वामियों को लाभ दिलाने के लिए आयुवानसिंह जी अपने पचास साथियों सहित कच्छभूज गए और सौराष्ट्र तथा कच्छ का दौरा किया। अहमदाबाद में स्वयं ने अनशन की घोषणा की। इनके साथ वहां सवाईसिंह जी धमोरा, रघुवीरसिंह जी जावली आदि भी थे।

अन्त में गुजरात सरकार को भी वहां के भूस्वामियों को सुविधाएं देनी पड़ी। इस प्रकार भूस्वामी संघ के इन राजपूती चरित्र के युवकों ने जागीरदारी उन्मूलन के मामलों पर राजस्थान सरकार को झुकाया और गुजरात सरकार को भी प्रभावित किया। क्षत्रिय युवक संघ के युवाओं द्वारा किये गये ये कार्य जाति के इतिहास में अपना विशेष सीन रखते है। अत: इन सब का उल्लेख यहां किया गया है।

साभार : राजपूत सोसायटी मासिक पत्रिका अंक दिसंबर 2014


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