बाबर को लगता था कि दिल्ली सल्तनत पर फिर से तैमूरवंशियों का शासन होना चाहिए। एक तैमूरवंशी होने के कारण वो दिल्ली सल्तनत पर कब्ज़ा करना चाहता था। उसने दिल्ली के सुल्तान सुल्तान इब्राहिम लोदी के साथ 1526 में पानीपत में युद्ध किया और दिल्ली की सल्तनत पर कब्ज़ा कर लिया| इसके बाद बाबर ने हिंदुस्तान के सबसे शक्तिशाली शासक राणा सांगा को खानवा युद्ध में परास्त कर हिंदुस्तान में मुग़लवंश की सल्तनत के सिर पर मंडरा रहे सबसे बड़े खतरे को भी ख़त्म कर दिल्ली की गद्दी का अविवादित अधिकारी बन गया। आने वाले दिनों में मुगल वंश ने भारत की सत्ता पर 300 सालों तक राज किया।
कई इतिहासकार बाबर को हिंदुस्तान में राणा सांगा द्वारा बुलाया जाना लिखते है, लेकिन यह असत्य है| जैसा कि ऊपर लिखा जा चूका है बाबर दिल्ली सल्तनत पर तैमूरवंशियों का शासन स्थापित करना चाहता था| अपनी इस योजना को क्रियान्वित करने के लिए उसने कलंदर का वेश धारण कर हिंदुस्तान की थाह ली| हालाँकि इस बारे में देश के इतिहासकार मौन है, पर "कायमखां रासा" के अनुसार बाबर कलंदर के वेश में हिंदुस्तान की थाह लेकर गया था| डा. रतनलाल मिश्र के अनुसार "कायमखां रासा के लेखक नियामत खां जो फतेहपुर के कायमखानी शासक नबाब अलफखां का पुत्र था, जिसने "जान" उपनाम से कायमखाखां रासो सहित कई काव्य रचनाएँ लिखी| इस कवि का रचनाकाल सत्रहवीं सदी का उत्तरार्द्ध तथा अठारवीं सदी का पूर्वाद्ध था|" "कायमखां रासो" के रचियता कवि जान (न्यामतखां) के पिता नबाब अलफखां का जन्म संवत 1621 में और निधन 1683 में हुआ था| कायमखां रासो एक ऐतिहासिक काव्य है जिसमें कायमखानी नबाबों का इतिहास वर्णित है| ज्ञात हो करमचंद चौहान द्वारा मुस्लिम धर्म अपनाने के बाद उसके वंशज कायमखानी (क्यामखानी) मुसलमान कहलाये| फ़तेहपुर, झुंझुनू, केड़, बड़वासी, झाड़ोद पट्टी आदि कई जगह कायमखानी नबाबों की नबाबियां रही है|
रासो के अनुसार बाबर फतेहपुर के नबाब दौलतखां के समय फतेहपुर आया था| नबाब दौलतखां का काल सन 1489 से 1512 तक था| प्रस्तुत है बाबर के छद्मवेश में हिंदुस्तान की थाह लेने आने का "कायमखां रासो" में वर्णित वर्णन, जिस पर शोध की आवश्यकता है-
कई इतिहासकार बाबर को हिंदुस्तान में राणा सांगा द्वारा बुलाया जाना लिखते है, लेकिन यह असत्य है| जैसा कि ऊपर लिखा जा चूका है बाबर दिल्ली सल्तनत पर तैमूरवंशियों का शासन स्थापित करना चाहता था| अपनी इस योजना को क्रियान्वित करने के लिए उसने कलंदर का वेश धारण कर हिंदुस्तान की थाह ली| हालाँकि इस बारे में देश के इतिहासकार मौन है, पर "कायमखां रासा" के अनुसार बाबर कलंदर के वेश में हिंदुस्तान की थाह लेकर गया था| डा. रतनलाल मिश्र के अनुसार "कायमखां रासा के लेखक नियामत खां जो फतेहपुर के कायमखानी शासक नबाब अलफखां का पुत्र था, जिसने "जान" उपनाम से कायमखाखां रासो सहित कई काव्य रचनाएँ लिखी| इस कवि का रचनाकाल सत्रहवीं सदी का उत्तरार्द्ध तथा अठारवीं सदी का पूर्वाद्ध था|" "कायमखां रासो" के रचियता कवि जान (न्यामतखां) के पिता नबाब अलफखां का जन्म संवत 1621 में और निधन 1683 में हुआ था| कायमखां रासो एक ऐतिहासिक काव्य है जिसमें कायमखानी नबाबों का इतिहास वर्णित है| ज्ञात हो करमचंद चौहान द्वारा मुस्लिम धर्म अपनाने के बाद उसके वंशज कायमखानी (क्यामखानी) मुसलमान कहलाये| फ़तेहपुर, झुंझुनू, केड़, बड़वासी, झाड़ोद पट्टी आदि कई जगह कायमखानी नबाबों की नबाबियां रही है|
रासो के अनुसार बाबर फतेहपुर के नबाब दौलतखां के समय फतेहपुर आया था| नबाब दौलतखां का काल सन 1489 से 1512 तक था| प्रस्तुत है बाबर के छद्मवेश में हिंदुस्तान की थाह लेने आने का "कायमखां रासो" में वर्णित वर्णन, जिस पर शोध की आवश्यकता है-
भेख कलंदर को कर्यौ एक बाघ संग ताहि||
मिलि दीवानसौ यों कहयो, येक मंगावहु गाइ||
दीजै गाइ मंगाकै, ज्यौं पूरै मन काज||
देखौ मेरे देखतै, बछुवा कैसे खाइ||
हाक दई दीवान नै, सिंघ सक्यौ नहिं जाइ|
उहि ठौर ठाढो रहै, गऊ न पावै खांन||
जौ तुम यासौं यों करी, तौ रि जाइ||
मद कुंजरकौ सुकि है, सुनिकै सुभट हकार||
हसनखानकैं कटककैं, देखि रह्यो भरमाइ||
पाछे काबिलकौ गयो, सकल हिन्द अवगाह||
संदर्भ : "कायम खां रासो" रचियता - कविजान उर्फ़ नियामतखान कायमखानी, हिंदी अनुवाद : डा. रतनलाल मिश्र
आपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति ब्लॉग बुलेटिन - अलविदा ~ रज्जाक खान में शामिल किया गया है। सादर ... अभिनन्दन।।
जवाब देंहटाएंआपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति ब्लॉग बुलेटिन - अलविदा ~ रज्जाक खान में शामिल किया गया है। सादर ... अभिनन्दन।।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (03-06-2016) को "दो जून की रोटी" (चर्चा अंक-2362) (चर्चा अंक-2356) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Interesting.
जवाब देंहटाएं