एक खबर पर व्यक्त प्रतिक्रिया पर जिन मित्रों की भावनाएं आहत हुई, उनके नाम...........

Gyan Darpan
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अभी हाल ही में हरियाणा जाट आन्दोलन के बाद उसी से संबंधित एक खबर "जाट समुदाय के लोगो ने इस्लाम कबूल करने का किया फैसला" का लिंक शेयर करते हुए फेसबुक पर मैंने सहज प्रतिक्रिया देते हुए लिखा- "यदि यह खबर सच है तो इसे इमोशनल ब्लैकमेलिंग ही कहा जायेगा| क्या धर्म परिवर्तन से आरक्षण का लाभ मिल जायेगा? इससे तो अच्छा आरक्षण पाने के इच्छुक दलितों से विवाह सम्बन्ध कायम करें तो हो सकता है उन्हें आरक्षण का लाभ भी मिल जाये|"
मेरी इस प्रतिक्रिया पर कुछ जाट मित्रों ने इस खबर को असत्य बताते हुए इसे हटाने का आग्रह किया| पर इन्टरनेट पर तलाशने के बाद यह खबर मुझे देश के प्रितिष्ठित अख़बार "राजस्थान पत्रिका" की वेब साईट पर भी मिली, जिसके बाद इसे असत्य मानने का कारण मेरे सामने नहीं बचा| हालाँकि मैंने जो लिंक दिया था वह मेरी नजर में प्रतिष्ठित वेबसाइट नहीं थी सो उसे असत्य माना जा सकता था| इस खबर की पुष्टि मैंने एक और वेबसाईट पर की|

खबर की राजस्थान पत्रिका की वेब साईट पर पुष्टि के बाद मैंने जाट मित्रों के आग्रह पर उक्त प्रतिक्रिया डिलीट नहीं की और मैं मेवाड़ के दो दिवसीय प्रवास पर चित्तौड़गढ़ होते हुए हमीरगढ़ चला गया, जहाँ मेरे पास न तो फेसबुक देखने का समय था, ना वहां पर्याप्त नेटवर्क था| इस बीच मेरी प्रतिक्रिया पर कई जाट मित्रों की भावनाएं आहत हुई, कईयों ने पोस्ट ना हटाने की शिकायत की टिप्पणियाँ की व कईयों ने मुझे जातिवादी ठहराया| जबकि मैंने उक्त पोस्ट में किसी जाति के खिलाफ प्रतिकूल टिप्पणी नहीं की थी| हाँ ! जो प्रतिक्रिया थी वह हरियाणा के एक संगठन "योगदानी आजाद सेवा सहयोग समीति" से जुड़े कुछ जाट सदस्यों द्वारा आरक्षण आन्दोलन मामले को लेकर धर्मान्तरण की धमकी देने से संबंधित खबर पर थी|
खैर..........मेरी प्रतिक्रिया के बाद मेरे जिन जाट मित्रों की भावना आहत हुई उसके लिए मैं खेद व्यक्त करता हूँ|

पर जिन मित्रों की भावनाएं आहत हुई उनसे मेरे कुछ सवाल है आशा है मित्र इन सवालों का जबाब दे या ना दे पर उनकी जाति के लोगों द्वारा सामूहिक रूप से किये जाने वाले कुकृत्यों की आलोचना करने वालों को जातिवादी ठहराने वाले अपने अन्दर झांक एक बार अवश्य देखेंगे कि ऐसा कर कहीं वे कहीं अपने जातिवादी होने का कितना प्रदर्शन कर रहे है| वे ऐसे कुकृत्यों कर, उनकी जाति पर अंगुली उठाने का मौका देने वालों की आलोचना क्यों नहीं करते? क्यों ऐसे कार्यों पर तटस्थ रहकर उनका मौन समर्थन करते है? हरियाणा जाट आन्दोलन की ही चर्चा करूँ तो फेसबुक पर मेरी मित्र सूचि में मौजूद सैकड़ों जाट मित्रों में से महज दो मित्र राकेश सहरावत व नीरज जाट के अलावा किसी ने इस आन्दोलन में हुई हिंसा की आलोचना नहीं की| ये ही दो मित्र थे जो स्वजातियों द्वारा किये गए कुकृत्य पर शर्मिदा थे बाकी सब तो इस पर गर्व कर रहे थे या तटस्थ थे, या फिर आन्दोलन में की गई हिंसा की खबरों को निराधार, झूंठी आदि बताकर इस कुकृत्य पर पर्दा डालने में व्यस्त थे|

जबकि इन मित्रों को इस शर्मनाक घटना की निंदा करनी चाहिए थी, जिसने उनके समाज पर बदनामी का कलंक लगाया है, उन तत्वों के खिलाफ कार्यवाही की मांग करनी चाहिए थी, जिन तत्वों की करतूत ने हरियाणा में जातीय संघर्ष बढाने वाले तत्वों को मौका दे दिया| यह इन बेलगाम आंदोलनकारियों की करतूत का ही नतीजा है कि जातीय आधार पर सत्ता सुख पाने की लालसा रखने वाले कथित नेता आज हरियाणा की 36 बिरादरियों में से 35 बिरादरियों के मन में जाटों के खिलाफ नफरत भर कर उन्हें जाटों के खिलाफ लामबंद करने की कोशिशों में लगे है| मेरी प्रतिक्रिया पर सबसे ज्यादा मेरे राजस्थान के जाट मित्रों की भावनाएं आहत हुई| मेरा उनसे सीधा सा एक ही सवाल है कि राजस्थान के जाटों को आरक्षण का लाभ पहले से मिल रहा है तो उनका अन्य प्रदेशों के जाटों को आरक्षण के लिए समर्थन देना क्या जातिवाद नहीं? क्या हरियाणा जाट आन्दोलन में हुई हिंसा व आगजनी पर राजस्थान के जाट युवाओं का गर्व करना जातिवाद नहीं था? मेरी प्रतिक्रिया पर भावनाएं आहत करने वाले मित्रों ने अपने उन स्वजातीय युवाओं की इस तरह की टिप्पणियाँ पर ऐतराज क्यों नहीं किया? जो अन्य जातियों के लोगों को उकसाने का कार्य कर रही थी|

हरियाणा हिंसा पर तटस्थ रहने वाले मित्र क्यों अचानक कथित "मुरथल बलात्कार काण्ड" की खबर को झूंठ साबित करने पर जुट गये? उन्हें आंदोलनकारियों द्वारा की गई हिंसा ने नहीं झकझोरा, पर उनके समाज की बदनामी करने वाली एक कथित खबर ने झकझोर दिया और वे इसके खिलाफ तुरंत सोशियल साइट्स पर उतर आये| क्यों? क्या यह जातिवाद नहीं है?
राजस्थान की ही "डांगावास कांड" घटना ले लीजिये-
मेरी प्रतिक्रिया पर भावनाएं आहत करने व मुझे जातिवादी उपमा से विभूषित करने वाले मित्र उस वक्त भी तटस्थ थे| उस कांड पर उनके कई मित्रों के आग्रह पर उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी बल्कि इसे कानून का मामला बताकर अपना पल्ला झाड़ लिया| उस कांड के समर्थन में भी कई जाट युवाओं द्वारा गर्व करने जैसी टिप्पणियों पर उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी| हाँ उसी गांव में जब एक जाट ने एक दलित बहन के यहाँ मायरा भरा तो उसका उन्होंने खूब प्रचार किया| मतलब साफ़ है जिस घटना से समाज की छवि बिगड़ी रही थी वहां मौन और जो घटना समाज की छवि सुधार सकती है उसकी पुरजोर से मार्केटिंग| क्या यह जातिवाद नहीं?

डांगावास की घटना बेशक कानून से जुड़ा मुद्दा थी, लेकिन उसके क़ानूनी फैसले का इंतजार नहीं किया और जातीय आधार पर एकजुट होकर विरोधी को ही निपटा दिया गया| ऐसी घटना पर तटस्थ रहना, मौन रहना, कोई विपरीत प्रतिक्रिया जाहिर ना करना क्या मौन समर्थन और जातिवाद नहीं?

दिल्ली में दौसा के किसान गजेन्द्रसिंह द्वारा आत्महत्या करने पर यही (भावनाएं आहत होने वाले) मित्र गजेन्द्रसिंह को साफों का कारोबारी साबित करने वाले एक झूठी खबर को शेयर कर प्रचारित कर रहे थे कि वह किसान नहीं कारोबारी था, जबकि गजेन्द्रसिंह महज साफे बांधने जैसा पारिश्रमिक करते थे| एक मित्र जिनके एक पारिवारिक सदस्य की एक गैंगवार में हत्या के बाद वे हर वर्ष उसका शहीदी दिवस मनाते है, गजेन्द्रसिंह की आत्महत्या पर उसे शहीद का दर्जा देने की हमारी मांग रास नहीं आ रही थी, वे तो गजेन्द्रसिंह के राजपूत जाति में जन्म लेने के कारण उसे किसान तक मानने को राजी नहीं थे, उनकी टिप्पणियों पर मेरे द्वारा जबाबी प्रतिक्रिया व्यक्त करने पर इन्हीं भावनाएं आहत होने वाले मित्रों में से एक मित्र तुरंत इनबॉक्स में मुझे समझाने आ गए कि ये उचित नहीं| हमने भी उनका सम्मान करते हुए अपनी आगे की प्रतिक्रिया रोक दी|

खीमसर विधायक हनुमान बेनीवाल अपने राजनैतिक फायदे के लिए हमेशा राजपूत जाति को निशाने पर रखते है अपने सार्वजनिक भाषणों में राजपूत समाज के खिलाफ जहर उगलते है (सोशियल मीडिया के मित्रों से मिली जानकारी के अनुसार)| उनके साथ फोटो खिंचवाकर सोशियल साइट्स पर चिपकाने वाले मित्र को तब वे जाट-राजपूत भाईचारे के लिए खतरा महसूस नहीं हुये, पर जैसे ही हनुमान बेनीवाल पर अपने समाज के खिलाफ प्रतिक्रियाएं देने आहत कुछ उग्र राजपूत युवाओं ने हमला किया और दोनों समूहों के बीच ऑडियो वार चली तभी उन मित्र को "जाट-राजपूत भाईचारे" की अहमियत महसूस हुई| आखिर उन्हें यह जरुरत पहले महसूस क्यों नहीं हुई?

जब तक हमारे स्वजातीय दूसरों पर हमला करते रहे तब तक हम तटस्थ रहे और अपने निशाने पर आते ही हम निशाना साधने वालों को भाईचारे की अहमियत समझा कर चुप करने की कोशिशों में लग जाये| क्या यह हमारे मन छुपा हुआ छद्म जातिवाद नहीं?

अत: अपनी भावनाएं आहत करने वाले मित्रो एक बार अपने अन्दर झाँक कर देखो| दूसरों को जातिवादी ठहराने वालो अपनी उस मानसिकता को भी पहचानों जिसके वशीभूत तूम दूसरों को जातिवादी ठहरा देते हो|
जहाँ तक मेरे जातिवाद का प्रश्न है वो भी मैं साफ़ किये देता हूँ-"जातिवादी व्यवस्था मैंने स्वयं ने नहीं अपनाई, यह मुझे विरासत में, जन्मजात मिली है जो इस देश में हर नागरिक को मिलती है| जन्मजात मिली इस व्यवस्था के अनुसार मैं जिस जाति में पैदा हुआ उप पर गर्व करता हूँ और बाकी अन्य जातियों का हृदय से सम्मान करता हूँ| अब तक अपने कर्तव्य पालन में कभी भी किसी दूसरे का हक अपने स्वजातीय के पक्ष में नहीं मारा| इसे आप अपने मनमाफिक कोई भी उपमा देने के लिए स्वतंत्र है|"

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6टिप्पणियाँ

  1. ऐसा बयान तो हवा सिंह सांगवान भरी सभा में भाषण झाड़ते हुए दे चूका है...!

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  2. अपने अंदर झाँकने की जरूरत है जाटों को , शहर के शहर गाँव के गाँव फूँक दिये सूरी जाति के लोगों के तब कहा गए थे ये जातिवाद का रोना रोने वाले ?

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  3. बहुत बढिया, खरी खरी। जाट आन्दोलन के दौरान हुई हिंसा और तोड़ फोड़ ने सर्व समाज में जाटों के खिलाफ बैर भाव ही बढाया है। जिससे सामाजिक समरसता भंग हूई है और इसका खामियाजा आने वाली पीढियां भुगतेंगी।

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  4. रतनसा बिल्कुल सही फरमाया

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  5. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन अंतिम सत्य की तलाश में - ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

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