जब पंवारों की छोटी सी सेना के आगे भागी थी भरतपुर की शक्तिशाली सेना

Gyan Darpan
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Battle of karhiya (Near Narwar) fought was between the Jat ruler of Bharatpur Raja Jawahar Singh and the Rajput ruler Rao Kesari Singh Panwar of Karhiya

भरतपुर के जाट राजा जवाहरसिंह एक समय बहुत शक्तिशाली थे| अपनी बढ़ी शक्ति के बल पर जवाहरसिंह ने आस-पास के राज्यों सहित दिल्ली व आगरा तक लूटपाट की और पड़ौसी राजाओं के साथ साथ मुगलों को भी अपनी वीरता के बल पर खूब छकाया| "जयपुर के इतिहास" पुस्तक की लेखिका चंद्रमणि सिंह के अनुसार-"उसकी सेना के 15 हजार अश्वरोही, 25 हजार पदातिक तथा 30 तोपों व गोलाबारूद की असीमित आपूर्ति उसके गर्व को और बढ़ाते थे|" उसके तोपखाने का प्रमुख फ़्रांसिसी नागरिक समरू युद्ध संचालन का निपुण विशेषज्ञ था| अपनी इस शक्ति के घमण्ड में जवाहरसिंह ने जयपुर के राजघराने से वो सम्बन्ध तोड़ लिए जो उसके दादा बदनसिंह ने कायम कर, उन संबंधों की बदौलत भरतपुर का राज्य व राजा की उपाधि पाई थी| जवाहरसिंह ने जयपुर के राजा माधोसिंह के समय राजस्थान के नीमकाथाना के पास मावंडा नामक गांव की पहाड़ियों में युद्ध लड़ा| लेकिन कछवाह राजपूतों की सम्मलित शक्ति के आगे अपनी वीरता और शौर्य पर गर्व करने वाले उस घमण्डी को पीठ दिखाकर भागना पड़ा|

जब जयपुर से युद्ध में विजय हासिल नहीं कर सके तो जवाहरसिंह ने बुन्देलखंड और मालवा की तरफ रुख किया| नरवर उस काल कछवाह राजपूतों की राजधानी थी| रामसिंह कछवाह उस वक्त वहां का शासक था, सो जवाहरसिंह ने मावंडा में कछवाहों के हाथ हुई करारी हार का बदला नरवर के कछवाहों को हरा कर लेने का निश्चय किया और अठारासै चौइस में अपनी सेना के साथ नरवर पर आक्रमण के लिए चम्बल नदी पार की| रास्ते में कालपी, भदावर आदि के राजाओं से धन वसूला और नरवर के पास मगरौनी नामक स्थान पर अपनी सेना का पड़ाव डाला| जहाँ उसके कई स्वजातीय बंधू उससे आकर मिले| इन बंधुओं ने पास ही करहिया के पंवार शासकों के खिलाफ जवाहरसिंह को काफी भड़काया और उन पर आक्रमण करने हेतु उत्तेजित किया|

परिणाम स्वरुप जवाहरसिंह ने करहिया के स्वामी राव केसरीसिंह को पत्र लिखकर उसकी सेवा में हाजिर होने का आदेश दिया| राव केसरीसिंह ने अपने भाई बंधुओं यथा राव दुरजणसाल, मुकंदसिंघ, सिरदारसिंघ, सांवतसिंघ, कैसौराम, पंचमसिंघ और धरमांगद इत्यादि प्रमुख सरदारों व शूरमाओं को आमंत्रित कर जवाहरसिंह के पत्र के बारे में चर्चा कर उसे जबाब देने हेतु सलाह मशविरा किया| इन शूरवीरों को जब जवाहरसिंह का पत्र पढ़कर सुनाया गया तो उनके तन-बदन में आग जल उठी और जवाहरसिंह से युद्ध करने को उनकी भुजाएं फड़कने लगी| जवाहरसिंह को अपनी तलवार का जौहर दिखलाने के लिए इन पंवार बंधुओं ने रणभूमि में आमंत्रित किया कि नरवर पर आक्रमण करने से पहले उनसे दो दो हाथ करले|
अपनी शक्ति के अहंकार में डूबे जवाहरसिंह ने पत्र का जबाब मिलते ही करहिया पर आक्रमण किया| लेकिन इस युद्ध में पंवारों ने ऐसा युद्ध कौशल दिखाया कि जवाहरसिंह की जाट सेना के एक हजार वीरों को काट कर पंवारों ने अपनी तलवारों की प्यास बुझाई| पंवारों ने अपनी तलवार के ऐसे जौहर दिखाए कि जाट सेना के सैनिकों के मुंड युद्ध भूमि में ऐसे लुढकने लगे जैसे रेत के खेतों में गड़तुम्बे लुढकते है| पंवार वीरों की छोटी सी सेना के वीरों के विकट शौर्य प्रदर्शन के आगे घमण्डी जवाहरसिंह की सेना टिक नहीं पाई और हार कर जवाहरसिंह को वापस भरतपुर की ओर भागना पड़ा|

इस युद्ध का राजस्थानी भाषा के मूर्धन्य साहित्यकार, इतिहासकार श्री सौभाग्यसिंह जी शेखावत ने अपने एक लेख में इस तरह वर्णन किया है- "जवाहरमल्लजी तौ आप ही अहंकार री आधी। राजमद आयौ मैंगळ। फौज नै करहिया रा किला माथै वहीर कीनी। बेहू पखां में जोरदार राड़ौ हुवौ। अेक हजार जाट वीर खेत्रपाल री बळ चढिया। जाटां रौ फौ नीं लागौ। थळी रा तूम्बा री भांत मुंडकियां गुड़ी करहिया रा पंवारां इण भांत अण न्यूंतियां न्यूंतियारां नै रण रूप मंडप में बधाया। काले पाणी रूप कुंकम रा तिलक कर भालांरी नोक री अणियां री चोट रा तिलक किया। मुंडकियां रूप ओसीस रै सहारै पौढाय नै रण सेज सजाई अर ग्रीझ, कावळां कागां नै मांस लोही रौ दान बंटाय आपरी उदारता जताई। पछै परोजै रूपी अपजस’रा डंका बजावता जवाहरमल्लली ब्रज वसुंधरा में आया अर पंवार आपरी विजय रा नगारा घुराया। इण भांत अण न्यूंतिया न्यूंतियारां रौ सुवागत पंवारां कियौ जिकौ अठै सार रूप में जता दियौ।"



Battle between the Jat ruler Jawahar Singh and the Rajput ruler Rao Kesari Singh Panwar

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6टिप्पणियाँ

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ब्लॉग बुलेटिन और आनंद बख्शी में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  2. इस पोस्ट में काफी हद तक झूठ परोसा गया है

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