चिणौ

Gyan Darpan
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राजस्थानी भाषा के मूर्धन्य साहित्यकार श्री सौभाग्यसिंह शेखावत की कलम से....

आजकाल लोगबाग म्हनै भूंगड़ौ कैवै है। पैली चिणौ कैवता। पण, इण सूं म्हनै किणी रीत-भांत री नाराजगी कोनी। औ प्रक्रति रौ धारौ इज है। समै रै सागै सागै जिण भांत उमर ढळे अर काया में पलटाव आवै उणी भांत नांव भी पलटीजता रैवै। गाय रौ जलमतो बाछियौ लवारयौ इज बाजै पछै अेक पारवौ चूंघै जितै बाछड़ौ कहीजै। फैर दूध काढ़ियां पछै थण लिवाड़या करै कैरड़ियौ पुकारीजै। दूध सूं टाळियां पछै टोगड़ौ भणीजै। हींसौड़ी हिलाइजै जणां खोधा रै नांव सूं ओळखीजै। भर जवानी में कांधा रै सळ पड़ै नै बूकिया मचकै जणां नारियौ गिणीजै। गाड़ी बेरै, बैवै, कांधै अंतोलौ बोझ भार खींचौ जद घोळौ कहीजै। जितै आपांण में, बळ में भरौ पूरौ रैवै बळद पुकारीजै। अर जद कांधौ मुचबा लागै। पग कांपण ढूकै। नाड़ डगमगावण लागै। दांत पड़बा लागै जद डांगरौ बाजै।
औइज क्यूं औस्था भेद सूं मिनख भी तौ गीगौ, बालौ, टाबर, डावड़ौ, मोटियार, मांटी नै बुढापा में बूढ़ळौ, डोकरौ बाजै इज है। पछै कर धूजै, गाबड़ कांपै, पग डोलण लागै उणनै डोकरौ कैवै तौ अणहूंतौ कांई ? पछै बूढ़ा चिणा नै, ताव में तपियोड़ा, भोभर में तड़फियोड़ा, भाड़ में भुळसियोड़ा नै भूगड़ौ नी कैवै तो कांई छोलौ कैवै। फूटियोड़ौ बासण तौ डबरौ इज बाजै। बोळाई रौ घड़ौ कळस थोड़ो इज बाजै। नीगळियोड़ौ पातौ नुंई बोगी सूं भलांई घणौ चौखौ हुवै फेर भी कळसौ को बाजै नी। जणां पछै चिणौ जिका बूढा चिणा नै भूंगड़ौ समझै तौ बेजां बात कोनी। इण माथै बुरौ मानै जिकौ अण-समझ। रीस करै जिकौ साव कूड़ौ। सिवजी गरळ अहारी बाजिया। भुजंग गळे घातियौ जणां भुयंगनाथ कहीजिया। विख कंठां में रोकियौ जद विखकंठ कैवीजिया। जै सिव आपरौ फूठरौ सिव नांव इज चावता हा तौ विख पीयौ इज क्यूं ? उणां नै कुंण पीळा आखा मेलिया हा कै विख पीयां इज सरै। सौ, भूंगड़ा नांव सूं चिड़णौ भोळप री बात इज है। चिणौ समै पाय भूगड़ौ बणै इज है। पण चिणौ भूंगड़ा नै दुहागण रौ दुहाग समझै आ चिणा री भी भूल इज है। समै पाय लाटा सूं निकळियोड़ा चिणा री परमगत भी भूगड़ौ इज है। चिणौ भी पैली पांच दिन री भोम समाघ ली। आपरी काया नै सीत-ठाढ़ में गाळी। पछै पौधौ बाजियौ। पछै पांन-पत्ता आया जणां बूंठौ कहीजियौ फेर फूल-फगर आवै नै लोवड़ फूटै जणां धैघरी आवै जद कटैई चिंयौ नांव पावै। पछै छोलौ कहीजै। कई चिंया तौ अधबीचौ इज तूइज जावै। सतमासिया रैय जावै। चिड़कलियां, काबरियां, सूंवटा डाकण सारियां री दीठ सूं अकाळ मौत पाय काचा कळवा बण जावै। कितरा ई तीवंण तरकारी रा तोलां में सीझता रंधता चाटू चमचां रा धमीड़ा झेलता मिनखां री भौभौ री भूखी जीभ रा सुवाद बश जावै। पछै रह्मा-सह्मा, कचर्या-अधकचर्या डेगची री दाळ में काळ पा जावै। पछै इण संग्राम सू जीवतौ बचै जिकौ चिणौ नांव पावै। इण जीवण जात्रा रै पछै जायर चिणौ जंूण मिळै। पण फेर भी केईक लोगबाग तौ आज भी गेलै वगताइज चिंन्ही-सी बात मालै इज कह देवै -चिणौ उछळ नै कांई भाड़ फोड़ नांखै ! जांणै चिणा री गिणत में गिणतइज कोनी ? बिना हाड री जीभ हालतां कांई जेज लागै। जांणै चिणौ नींजोरौ इज हुवै। चावळ रै आगै उण री क्यूं गिणत इज नी हुवै। गोवूं रौ गुलाम इज हुवै। जौ री जोरू इज हुवै। बाजरी रौ बाटियौ सेंकण रौ बळीतौ इज हुवै। जांणी चिणा री क्यूं ग्यान-गिणत ई नी हुवै। जांणी ग्वाड़ रौ जायाड़ी इज हवदै। उतरियोड़ा मटका रौ भांगीजियोड़ ठीकरौ इज हुवै। नीम सूं झड़ियोड़ौ पीळौ पांनड़ी इज हुवै। खेळी सूं तुळियोड़ौ धरमाणां रौ गूदळियौ नीर इज हुवै। रोही में पड़ियोड़ौ आरणौ छाणौ इज हुवै। पण लोग जांणै कोनी खेड़ा में पड़ी ठीकरी इज कदै रसोवडै़ तपी ही। पीळौ पात ही कदै जेठ री तावड़ी में बटावू नै दोय घड़ी आपरी सीळी छांवळी में थाकेलौ आंतरै करण नै विश्राम दियौ हौ। धरमाणां रौ नीर भी पंखेरुवां री तिस मेट जीवां रौ जीव जोखौ मेटियौ हौ। रोही रौ छाणौ भी जग्य रा बैसवानळ में होमीजियौ हौ।

आज चावळां, गैवां, बाजरी री जीभां आपरी बडाई में, टणकाई में ईयां चालै है जियां जेठ मास में हेमाचळ सू कराड़ा भांगती भगीरथ धीवड़ी गंगा चालै। कारतिक मास में आकास में किरत्यां चालै। माघ महीनै हिरणी रै लारै आहेड़ी माल्है। कपूत चेलासू गरू री अपकीरत चालै। उझळती बिगड़ेल रांड रा लोयण चालै। ग्रीखम में मारवाड़ रै धोरां रा भगूळिंया चालै। पण चिणौ आज री घड़ी भी निकळंक, सोळवां सोनां री भांत खरौ। रोही रा सेर री भांत अदाग। साव अकळंक। लूण सारखौ जग चावौ । चावळ, गैवूं, बाजरी भलां ही चिणा नै फेटैड़ा रौ उतारौ गिणौ। सिर री मथवाय समझौ। रात री रातींधौ गिणौ। राज रोग जैड़ी असमाध गिणौ। पण, चिणौ इण भेळप जुग में भी साव सुध, प्रवीतकाय, अकळंक आतम, खोटौ पण खरौ नाज है। गैवां, चावळां, बाजरा में भेळावण है। भेळण मिळियां इज तौ गोवूं किल्यांण सोनौ, मैसकिन नै लालबादर नांव पायौ। बाजरौ भी संकरियौ, साठियौ, अरड़ियौ, रूवां दांणियौ ईयां इज नी बाजियौ है। पण, चिणौ असलता पर हेमाळा ज्यूं अचळ, दुरवासा ज्यूं खरौ, गंगाजळ ज्यूं निरमळ नै गंवार रा दाणा ज्यूं अबीध है। जद ही चिणा नै वेदां’में चिणक गायौ। पुराणां चिणक कैय लड़ायै नै कळ कारखाना रा जुग में चिणौ सतजुग सूं घोर कळजुग तांई आपरा बाप दादा, मायतां रा नांव सूं ओळखीजतौ आयौ। कांई चिणौ लुळ जावतौ तौ लालबादर नी तौ पीळौ पीलू मोदी नी बण जावतौ। साठियौ नी तौ हाटियौ तौ बाज इज जावतौ। पण चिणा नै दळ-पलटू राजनेतावां री भांत जात पलटणौ, सुवाद पलटणौ नी भायौ। जिका दळ नी पलटै वै ठौड़ रा ठौड़ बूढा डांगरा ज्यूं आप रा खुरड़ा रगड़ता रैया इज करै है। पगां सूं जमीं रौदळता रैवै। पण, इण सूं कांई। लोग क्यूं इज कैवै। जीभ तौ जळवाळा ज्यूं लपकती रैवै। तोछा नीर में माछळी ज्यूं फदकती रैवै। समै रै सागै बदळै जणां हींचड़गावा नै खुड़खातिया में आंतरौ इज कांई ? सारौ इज धान सोळा पंसेरी नी तुलै। काग अर कोयल अेक रंग है इण सूं कांई! काग नै कोयल रौ भेद कदै मिटियौ है। सौ. चिणौ हिन्दू समाज रौ चौथौ वरण नी है। इण री इज पिछांण है। मांन है।
चावळ पाणी रौ पूत। गैवूं पळाव रौ पोतौ। जौ-जळ रौ जीव इज है। जळ बिना काया नी राख सकै। बाजरा री इज बिना मेह खेह उड़ती दीसै। पण चिणौ धरती रौ धींग है। थोड़ोसी पगटेक आल मिळ जावै तौ सैठौ। पछै न दाह सूं दाझै, न तिस आगै भाजै। असली अखाड़िया जेठी ज्यूं खंभ ठोक, पग रोप, झोला रोळी रूपी अरि आंधी रा अरड़ाटां सू भटभेड़ी लेवतौ रैवै। गैवां ज्यूं गुळांच खावणौ, चावळां ज्यूं पसीजणौ, नै बाजरा ज्यूं बायरा रै धकै लुळ जावणी कांई फूटरापा में गिणीजै ? गैवूं, चावळ, बाजरौ भलां ई धान रा सिरताज बाजै। पातसाही आमखास रा सत्तरखांन, बहतर उमराव गिणीजै। कदाच गैवां, चावळां री भांत चिणा री आरगैर, रखाव रुखाळी, भूख तिस में आड़-औछाड़ चिणा री मत करौ पण, गैंवूं, चावळ तौ थोड़ा-सा धाया-धींगा रौ खज है। धापतोड़ां रौ रातब है। बंगला- बगीचां रा छैलभंवरां रौ सोयतौ है। कुबेरजी रा डावड़ां री भुगत है। पण, चिणौ भूखा व्रंदावनरौ गोरधन, गरीब-गुरबां रौ गिरधारी, भूखां रौ भेळपौ, मजूरां रौ मोहीलौ नै धापतोड़ां रौ ओळगु तौ है इज।

चावळियौ पोतड़ां रौ अमीर, कै सौंधां भीनी समीर इज क्यूं नी हवै, पण जळ बिना पळ नी जीवै। गैवूं भी बिना वारि, मुख-बारि फाड़ दै। बाजरौ भी बिना खाद पाणी री सलाद रै फिसाद मांडतौ जेज नी लगावै। पण चिणौ बिना पांणी पिछतावै न खाद सूं उन्माद आवै। न झोलां सूं झुळसै, न रोळी घकै रोवै। न सेळी सूं सहमै। सागै पगां आप री खिमतां पांण छौंकलिया हिरण रै कांनड़ां री भांत आप रा पानड़ा टहटावतौ रैवै।

चिणौ, चिणौ झूपड़ां में झूमै। महलायतां में महकै। रसोवड़ां में रमै। हलवायां री हाटां पिंजरां रा कवच धारियां हरखै। ब्याव सगाई, गोठ घूघरी में जठै बाजरी बिलखतौ फिरै। चावळ मूंडौं उतारियां खुणै पड़यौ देखै। गैवूं गुळांचियां खावै उठै चिणौ चंचळ गजगामण ज्यूं मुळकतौ फिरै। आपरी नांव रासण चीणी रै संग गळबाथां घालियां, थाळां, रकेबियां रै हौदे बिराजियौ, बाजोट पागड़ां पर बैठियौ मिनखां री गलाफ में घुड़दौड़ां करै। दांत रूपी भालां सूं मींडा-भेटी खेलै। उठै गैवूं चूला रै ठीयै पड़ियौ आप रा पसवाड़ा सेकै। बाजरौ उम्मेदवार चरवादार ज्यूं कठैई ठांण रूपी कोठिलयां में पड़ियौ अमुझै। उठै लाडूवां रे रूप में चिणौ इज लडीजै। सेव, दाळ रे रूप में चिणा री बेटियां रा इज हालरिया गवीजै। उठै गैवां रा फांफरा फलका-सा मूंडा कियां फंफैड़ी खावता इज फिरै। चावला री चात्रकता इक टैम में इज चौड़ै आ जावै। पछै सारी बखतां चकरबंब खावतौ इज फिरै। कोई नी बूझै धौळिया रै मुंडै कितरा दांत। चिणा री बेटी बडभागण दाळ रौ लाडौ नै चिणा रौ दोहीतौ बेसण तौ गोठां में इण रीत घूमै जिण रीत द्वापर में सोळा सैंस गोपियां में मथुरा रौ कानूड़ौ रमै। मोतीचूर री मरोड़, रेसमी रौ रास, दिलकुसाल री कुस्ती, मोतीपाक री ममता किणनै नी मोवै। बूंदी बिना तौ सघळी मिठाई फूंदी ज्यूं उड़ती फिरै। नुकती री भुगती किणनै खारी लखावै। भोगळां री भट भेड़ी भूख रा भाखरां रा हाडकिया भांग नाखै। गैवां री बेटी मैदाबाई री आवभगत इज बेसण सूं हथळेवौ जोडै जद हुवै। जद इज पंचधारी चक्की जळमै। नींतर तौ मैदाबाई दुहागण बांझ री भांत बैठी ज्यूं डुसका इज भरै। चावळ तौ होळी-दीवाळी वारतींवार कदैक-सी रसोवड़ा में आय पडै है। पण चिणा रौ चंग तौ सदा गरीबां, चंगां, माड़ां सगळां रै घरां चार पौर चौसठ घड़ी बाजती इज रैवै।

कांई संसार त्यागी कांई संसार रागी सगळी ठौड़ चिणा रौ आव जाव रैवै। साध सरावै सौ सती। जिकौ चिणा नै साधां भी सरायौ है-
चिणौ चवेणी गंगजळ, जे पूरै करतार।
कासी कदै न छोड़जै, विस्वनाथ दरबार।।


पछै चिणा रै आगै चावळां री चापलूसी गैवां री गुमराई, बाजरा री बडाई तौ तलै पड़े इज टांग ऊंची है।
जणां चणक रै सांम्ही कणक रौ कांई गरब ? कठै चणक री गोळ-भटौळ चामीकर बरणी काया नै कतै सटकळ पेटिया कणक री तूळी-सी सीधी काया। सांच मानौ नै नीं मानौ पण नाज बे-अनाज चिणौ।

लेखक : श्री सौभाग्यसिंह शेखावत
पूर्व अध्यक्ष : राजस्थानी भाषा, साहित्य, संस्कृति अकादमी, बीकानेर

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