गौरी का इतिहास और पृथ्वीराज

Gyan Darpan
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अपनी क्रूरता, बर्बरता और पाशविकता में मोहम्मद गौरी Mohmmad Ghori अपने से पूर्व आये मलेच्छ मुस्लिम आक्रमणकारियों मुहम्मद बिन कासिम और महमूद गजनवी से जरा भी भिन्न न था। लेकिन इतना अंतर था कि पूर्ववती मुस्लिम आक्रमणकारियों का उद्देश्य मात्र लूटपाट और इस्लाम का प्रचार था। जबकि उनसे भिन्न मोहम्मद गौरी भारत में मुस्लिम सत्ता भी स्थापित करना चाहता था। जिसमें वह सफल भी हुआ। सही अर्थों में मोहम्मद गौरी ने ही हिंदुस्तान में इस्लाम तथा इस्लामिक सत्ता की नींव रखी और उसकी सफलता ही बाबर के लिए प्रेरक बनी, जिसके कारण भारत में मुगल सल्तनत की स्थापना हुयी और इस्लामिक राज आया।
मोहम्मद गौरी का जन्म 1150 ईसवीं में गौर नामक एक छोटे से राज्य में हुआ था। इसका बचपन का नाम मुइज्जुद्दीन मुहम्मद बिन साम था। उसके पिता का नाम बहाउद्दीन साम बिन हुसैन था। दसवीं शताब्दी में महमूद गजनवी ने अनेकों बार भारत को लुटा जिससे उसने अपने गजनी साम्राज्य को अत्यंत साधन संपन तथा ऐश्वर्यपूर्ण बना दिया। उसने गौरों की सत्ता छीनकर उसे गजनी में मिला लिया था उसकी मृत्यु के बाद गजनी को उतना सशक्त शासक नहीं मिला और गजनी का पतन हो गया। उसकी मृत्यु के बाद स्वतंत्र हुये राज्यों में गौरों की सत्ता भी थी। उसके बाद लम्बे समय तक गौरों और गजनवियों में संघर्ष चलता रहा। 1173 में मोहम्मद गोरी के बड़े भाई ग्यासुद्दीन ने गजनी को पूरी तरह जीत लिया। इस विजय में मोहम्मद गौरी अपने बड़े भाई का सेनापति था।
गजनी जीतने के बाद ग्यासुद्दीन ने नाटकीय ढंग से गजनी की सत्ता मोहम्मद गौरी को सौंप दी जिसकी उसने कल्पना भी न की थी। ऐसा उसने एक फकीर के कहने पर किया था जिसने उसे बताया की उसका छोटा भाई एक आसमानी सितारा है और उसका जन्म एक बहुत बड़ी सल्तनत का बादशाह बनने के लिए हुआ है जो गौरों का साम्राज्य सुदूर सिंध तक कायम करेगा।

गौरी के समय का भारत
गजनी का सुलतान बनने के बाद से ही मोहम्मद गोरी ने भारतवर्ष को जीतने का दुस्साहसिक स्वप्न अपने मन में पाल लिया था। सन 1175 से ही उसने भारतवर्ष पर आक्रमण करने शुरू कर दिये थे। आइये उस समय के भारत पर एक नजर डाल लेते हैं उस समय उत्तर पश्चिम भारत में पंजाब, मुल्तान और सिंध तीन विदेशी राज्य थे।
इसके अलावा समस्त उत्तर भारत, पश्चिम तथा पूर्वोतर भारत पर राजपूत शासक राज कर रहे थे इनमे प्रमुख थे। पश्चिमी भारत में अन्हीलवाड के चालुक्य, अजमेर तथा दिल्ली में चौहान, कन्नौज के गहड़वाल, बुंदेलखंड के चंदेल, पूर्वी भारत में बंगाल के पाल (गौड़ राजपूत) जिनके शासन में झारखण्ड, अधिकांश बिहार तथा कामरूप (असम आदि) आता था। ये वंश उस समय अपने अन्तिम काल में था। बंगाल के सेन जो उस समय पालों की विलुप्त होती शक्ति के समय उभार पर था।

मोहम्मद गोरी के पूर्वज गौड़ राजपूत थे।
मोहम्मद गौरी गौर वंश का था। उसका राज्य वर्तमान अफगानिस्तान के पश्चिमी मध्य भाग गजनी और हेरात में स्थित है। इस राज्य के आसपास की पहाड़ियां गौर की पहाड़ी कहलाती है जिसके कारण इस राज्य तथा गौर वंश का नाम पड़ा। वर्तमान अफगानिस्तान कालांतर में गंधार के नाम से जाना जाता था जब श्रीराम अयोध्या के सम्राट बने तब उनके भ्राता महाराज भरत को यहाँ का शासन मिला आगे चलकर गंधार का अपभ्रंश गौर हो गया और महाराज भरत के वंशज गौर कहलाने लगे। गौर राजपूतों का गंधार में शासन सर्वविदित है तथा आने वाले समय में जब इस्लाम आया तब यहाँ के अधिकांश राजपूत मुस्लिम हो गए, लेकिन गौर राजपूतों के नाम पर अभी तक इन पहाड़ियों को गौर नाम से ही जाना जाता है। यह तथ्य विवादास्पद हो सकता है, शायद आज उतना प्रमाणिक भी न हो लेकिन हम इसे पूरी तरह नकार नहीं सकते कि मोहम्मद गौरी के पूर्वज क्षत्रिय थे। गौर के इन्हीं राजपूतों का वंशज था मोहम्मद गौरी।

पृथ्वीराज की भूलें
निसंदेह पृथ्वीराज एक महान एवं वीर सेनापति तथा एक उद्भट योद्धा था जिसने अनेकों युद्ध जीते उसके शौर्य के किस्से तत्कालीन भारतवर्ष में प्रसिद्ध थे। लेकिन ये एक अफसोस जनक बात है कि पृथ्वीराज जैसे महान सेनानायक का आज तक निरपेक्ष एवं तथ्यात्मक मूल्यांकन नहीं हुआ है। मुस्लिम एवं वामपंथी इतिहासकारों ने जहाँ उसे अदूरदर्शी, व्यसनी एवं व्याभिचारी सिद्ध करने का प्रयत्न किया है वहीं अधिकांश राजपूत इतिहासकार गलतियों पर पर्दा डालने का प्रयत्न करते हैं। पृथ्वीराज ने अपने जीवन में अनेक गलतियाँ तथा भूलें की जिनके कारण ही मोहम्मद गौरी अंततः भारत में विजयी हो सका। प्रो. गोविन्द प्रसाद उपाध्याय के अनुसार “पृथ्वीराज ने प्रथम तराईन युद्ध में मोहम्मद गौरी की भागती हुयी सेना का पीछा करके उसकी शक्ति क्षीण करने का प्रयास नहीं किया। दूसरे तराईन युद्ध के पहले गौरी से समझोता वार्ता के सम्पूर्ण काल में पृथ्वीराज में सैनिक दृष्टि से सतर्कता तथा जागरूकता का न होना उसकी दूरदर्शिता के अभाव का ही परिचायक है।
डॉक्टर सतीश चन्द मित्तल के अनुसार 1182 में पृथ्वीराज तथा मोहम्मद गौरी के बीच दूसरा युद्ध हुआ इसे भारतीय इतिहास की युग परिवर्तनकारी घटना कहा जा सकता है। मोहम्मद गौरी ने धोखे से युद्ध जीतने की योजना बनाई। प्रारंभ में गौरी ने एक दूत भेजकर अधीनता मानने का झुठा सन्देश भेजा तथा स्वयं तराईन तक बढ़ आया। जब पृथ्वीराज ने लौटने को कहा, तब गौरी ने कहला दिया कि वह अपने भाई का सेवक है इसलिए उसकी आज्ञा के बिना पीछे नहीं हट सकता और न वह युद्ध कर सकता है। पृथ्वीराज ने उसकी बातों को सही मान लिया और निश्चिंत हो गया। गौरी ने अचानक कुछ समय बाद आक्रमण कर दिया।

कर्नल टॉड के अनुसार ‘‘पृथ्वीराज अपने उद्दंड स्वाभाव, अपमानजनक कार्यों और सफल उच्चाभिलाषा के कारण बहुतों की ईर्ष्या एवं रोष का विषय बन गया था। हर संभव क्षेत्र से उस पर आक्रमण हो रहे थे। बदला लेने और ईर्ष्या की भावना के कारण पाटण, कन्नौज और अनेक छोटे राजाओं ने उस युद्ध में उसका साथ नहीं दिया जो बाद में उन सबके मिटने का कारण बना।’’

कुल मिलाकर पृथ्वीराज दूरदर्शी तो नहीं था। इसीलिए उसने गौरी को कभी गंभीरता से नहीं लिया। उसके छोटे मोटे हमले जो लगातार होते रहते थे पृथ्वीराज के लिए कभी चिंता का विषय न थे। गौरी को पृथ्वीराज के सेनापति ही कई बार कई मुटभेड़ो में परस्त कर चुके थे। लेकिन कभी उसका सम्पूर्ण नाश करने का प्रयास न किया। उसने कभी भारत से बाहर की गतिविधियों को जानने का प्रयास नहीं किया, वो राजपूत राजाओं से तो लड़ने में व्यस्त रहा लेकिन कभी पश्चिम की सीमाओं की सुरक्षाओं की चिंता नहीं की, जहाँ से सदैव इस्लामिक आक्रान्ताओं के आक्रमण होते रहते थे। गौरी पंजाब तक आ चूका था लेकिन चौहान किंचित मात्र भी चिंतित ना था। 1181 के प्रथम तराईन युद्ध में चौहान ने गौरी को बुरी तरह परास्त करने के बाद भी जीवित छोड़ दिया। इतना ही नहीं पृथ्वीराज ने अपनी अमूल्य उर्जा, विलक्षण योद्धा और वीर सैनिकों को राजपूतों के साथ युद्ध में व्यर्थ कर दिया। आल्हा-उदल तथा भीमदेव सोलंकी से किये गए उसके युद्ध भयंकर गलतियाँ थीं। इसमें उसने अपनी अपार शक्ति का भारी क्षय किया था।

लेखक सचिन सिंह गौड़
संपादक- सिंह गर्जना (हिंदी पत्रिका)


अगले अंक में भारत की तत्कालीन राजनैतिक परिस्थिति का विश्लेष्ण

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3टिप्पणियाँ

  1. गौड़ साहब का आलेख पढ़ कर बहुत निराशा हुई. इसके ऐतिहासिक तथ्य तो भारतीय इतिहास की किसी हाई स्कूल स्तरीय पुस्तक में भी मिल जायेंगे पर मुहम्मद गौरी को गौड़ क्षत्रिय बताना उनकी अपनी खोज है और इसके लिए इतिहास का विद्यार्थी होने के नाते मैं अपना सिर्फ सिर ही पीट सकता हूँ. गौड़ साहब यदि तराइन के प्रथम और द्वितीय युद्ध को सन 1181 और 1182 में दिखाने के स्थान पर यदि क्रमशः 1191 और 1192 में दिखाते तो अधिक उचित होता..

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  2. महोदय
    बहुत सी खामियां हैं आपके लेख में।

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