पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी के बीच हुये युद्ध

Gyan Darpan
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किंवदंतियों के अनुसार पृथ्वीराज चौहान ने 16 बार गौरी को पराजित किया और हर बार गौरी ने उससे पैरों में गिरकर क्षमा मांगी और पृथ्वीराज ने उसे छोड़ दिया।
यदि तार्किक रूप से भी देखें तो यह ठीक नहीं लगता। यह सही है कि पृथ्वीराज युवा था, उच्च्श्रन्ख्ल था लेकिन वह 21 भीषण युद्ध लड़ कर जीत चुका था, इसलिए कम से कम वह इतना अदूरदर्शी या सीधे शब्दों में कहें तो मुर्ख नहीं हो सकता था कि एक ही गलती को बार बार तब तक दोहराता रहे जब तक स्वयं हार नहीं गया।


पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी के बीच असल में कितने युद्ध हुये, ये एक ऐसा यक्ष प्रश्न है जिसका आज किसी के पास सही एवं सटीक उत्तर नहीं है। इसलिए इस अंक में हम इस विषय पर ही थोड़ा शोध करेंगे और सत्य को जानने का प्रयास करेंगे।


यदि जनश्रुतियों की बात करें तो ये बात प्रचलन में है कि पृथ्वीराज चौहान और गौरी के बीच लगभग 17 युद्ध हुये (कहीं कहीं 21 युद्धों का भी उल्लेख है), जिनमें 16 बार पृथ्वीराज ने गौरी को पराजित किया एवं छोड़ दिया। लेकिन वर्तमान इतिहासकार ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर चौहान और गौरी के बीच दो युद्धों का हुआ मानते हैं, प्रथम 1191 ईं में और द्वितीय 1192 में। दोनों युद्ध तराइन के मैदान में लडे गये। अधिकांश मुस्लिम इतिहासकार तो केवल एक ही युद्ध का होना मानते हैं, जिसमें गौरी जीत गया। लेकिन कुछ मुस्लिम इतिहासकार जैसे फरिश्ता, मिन्हाज अस सीरिज, जैनउल मासरी, तथा तबकाते-ऐ- नासिरी तथा हसन निजामी आदि दो युद्धों का वर्णन करते हैं। इससे बाकी मुस्लिम इतिहासकारों की मात्र एक युद्ध 1192 वाली बात स्वतः ही झूठी सिद्ध हो जाती है। ओझा जी ने भी साफ लिखा है कि मुस्लिम इतिहासकार या तो अपनी हार वाली बात छुपा जाते हैं या घुमा फिराकर लिखते हैं। दूसरी तरफ हिन्दू और जैन ग्रन्थ इन दोनों के बीच अनेक युद्ध होने का वर्णन करते हैं। और ये सही भी प्रतीत होता है।

देवी सिंह मंडावा अपनी पुस्तक ‘‘सम्राट पृथ्वीराज चौहान में लिखते हैं’’- ‘‘हम पृथ्वीराज रासो को छोड़ भी दें, तो पुरातन प्रबंध संग्रह में चौहान और गौरी के बीच 8 युद्धों के होने का वर्णन है। प्रबंध चिंतामणि कई युद्ध होना मानती है। जबकि पुरातन प्रबंध 20 युद्धों के होने की बात कहता है तो हम्मीर महाकाव्य में 7 युद्धों का वर्णन किया गया है।’’ डॉक्टर दशरथ शर्मा ने भी 1186 से दोनों के बीच लगातार संघर्षों का वर्णन किया है।

वैसे भी देखा तो जाये तो मोहम्मद गोरी अत्यंत महत्वकांक्षी था 1173 में गौर का सुलतान बनने के बाद से ही उसकी इच्छा भारतवर्ष पर शासन करने की थी। उसने सर्वप्रथम मुल्तान पर आक्रमण किया और उसे धोखे से जीत लिया। उसके बाद उसका 1178 में गुजरात के सोलंकियों से भीषण युद्ध हुआ, जिसमंे उसकी बुरी तरह पराजय हुयी। इसके बाद इतिहासकार 1191 में उसके पृथ्वीराज के साथ युद्ध का वर्णन करते हैं, जो गले नहीं उतरता। क्योंकि गौरी जैसे अति महत्वकांक्षी शासक के लिए 13 साल तक चुपचाप बैठे रहना संभव नहीं था। 1191 में जब वह पृथ्वीराज से पराजित हुआ था, तब अगले ही वर्ष पुनः वह युद्ध के मैदान में था, तो 1178 से 1191 तक वह क्यों चुप बेठा रहा, यह बात समझ नहीं आती।

कुल मिलाकर हम इस निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं कि चौहान और गोरी के बीच मुख्यतः तराइन के मैदान में दो युद्ध हुये जिनमें दोनों ने अपनी अपनी सेनाओं का नेतृत्व किया। लेकिन उनकी सेनाओं तथा सामंतों के बीच कई छोटे बड़े युद्ध लडें गये। पृथ्वीराज चौहान अपने समय का सबसे शक्तिशाली सेनापति था। उसके साथ 108 सामंत रहा करते थे तथा अनेक छोटे बड़े राजाओं ने उसे अपनी लड़कियां दी थी या उसे नजराने भेजते थे। तत्कालीन भारत का वो सर्वमान्य राजपूत नायक था, जिसके सामंतों में राजपूतों के प्रत्येक कुल के वीर थे, जो उसके लिए अपनी जान देने को तत्पर थे। ऐसे में ये आवश्यक नहीं था कि पृथ्वीराज प्रत्येक युद्ध में जाता। वैसे भी खेबर दर्रे से गौरी के दो आक्रमणों का उल्लेख मिलता है। इन दोनों ही आक्रमणों को पृथ्वीराज के सेनापति पज्वनराय (आमेर के शासक) ने ही निष्फल कर दिया था (अंग्रेज और मुस्लिम इतिहासकार इसे नहीं स्वीकारते)। इसमें भी कोई दो राय नहीं की गौरी लगातार भारत पर आक्रमण करता रहा था, जिसे पृथ्वीराज के सामंत ही विफल कर देते थे। इनमें से कई युद्धों में गौरी होता था और कई में नहीं। कभी वो हार जाता था कभी भाग जाता था। ऐसा लगता है गौरी के ये आक्रमण मुख्यतः पृथ्वीराज और स्वयं की सैनिक शक्ति को आंकने के लिए होते थे, क्योंकि 1178 में वह सोलंकियों से हार चुका था। इस तरह के कई छोटे बड़े आक्रमणों के बाद 1191 में उसने पूरी तैयारी के साथ पृथ्वीराज पर आक्रमण किया। इस बीच भारत की राजनीति भी बहुत सीमा तक परिवर्तित हो चुकी थी। पृथ्वीराज चौहान एक तरफ सोलंकियों, परमारों, चंदेलों को हरा कर अजय स्थिति में आ चुका था। गहड़वालों से उसका संघर्ष चल रहा था, तो दूसरी तरफ इन युद्धों में वह अपनी बहुत मूल्यवान ऊर्जा तथा कई श्रेष्ठ सामंत खो चूका था।

एक बात और साफ है कि पृथ्वीराज और मोहम्मद गौरी युद्ध के मैदान में सिर्फ दो ही बार आमने सामने हुये थे। गौरी को बार बार हराना, पकड़ना, उसका चौहान से माफी मांगना और पृथ्वीराज का उसे बार बार छोड़ देना पूर्णतः गलत है।. ये बात चारणों ने पृथ्वीराज को अत्यंत वीर और उदार सिद्ध करने के लिए लिखी है। (लेकिन असल में ये बातें पृथ्वीराज को एक कमतर और अदूरदर्शी शासक ही सिद्ध करते हैं) हमें इन बातों का खंडन करना चाहिए।

लेखक : सचिन सिंह गौड़,संपादक : सिंह गर्जना

अगले लेख में मोहम्मद गौरी की जानकारी और पृथ्वीराज की गलतियों पर चर्चा

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