टीवी चैनल इतिहास को दूषित करने वाले सबसे बड़े तत्व

Gyan Darpan
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भारत के इतिहास को दूषित और विकृत कर उसमें मनघडंत झूंठे किस्से, कहानियां जोड़कर जहाँ वामपंथी व कथित सेकुलर लेखक प्रमाणित इतिहास लेखन में बाधक तत्व साबित हुए, उससे ज्यादा इतिहास को तोड़ मरोड़कर ऐतिहासिक पात्रों पर फ़िल्में, सीरियल आदि बनाकर इतिहास को दूषित व विकृत करने में टीवी चैनल्स का सबसे बड़ा हाथ रहा| जोधा अकबर Jodha-Akbar, महाराणा प्रताप Maharana Pratap Serial, मीरां बाई Meera Bai Serial आदि सीरियल्स इस बात के प्रमाण है| मनोरंजन के नाम पर बनी फिल्म मुगले आजम Mugal E Aajam के बाद देश का कोई नागरिक यह मानने को तैयार ही नहीं होता कि जोधा नाम की अकबर की कोई पत्नी नहीं थी| अकबरनामा (Akbar Nama Book), जहाँगीर नामा (Jahangir Nama) और अकबर के दरबारी इतिहासकार अबुल फजल (Abul Fazal History Writer) द्वारा कहीं भी अकबर की किसी पत्नी का नाम जोधा नहीं लिखा गया, लेकिन मुगले आजम व बाद में जोधा अकबर फिल्म व जोधा अकबर सीरियल देखने वालों के जेहन में यह बात नहीं बैठती और वे मनोरंजन के नाम पर बने इन सीरियल्स व फिल्मों का हवाला देते रहेंगे| यही नहीं मुगले आजम के बाद कई कथित इतिहासकारों ने इस झूंठ को अपनी पुस्तकों में शामिल कर इतिहास की प्रमाणिकता प्रदूषित की|

महाराणा प्रताप सीरियल में भी स्टोरी को दिलचस्प और मनोरंजन से भरपूर बनाने के लिए ऐतिहासिक तथ्यों की पूरी तरह अवहेलना कर की गई| हाल भी मैं मीरा बाई पर एक सीरियल देख रहा था| सीरियल में वृन्दावन यात्रा पर जा रही मीरा बाई के साथ मेड़ता के शासक विरमदेव को जोधपुर के शासक मालदेव के भय से छिपते हुए दिखाया गया| यही नहीं सीरियल में मालदेव व वीरमदेव की लड़ाई भी दिखाई गई और घायल विरमदेव द्वारा अपनी मृत्यु से पहले मालदेव को मारना दिखाया गया| जबकि हकीकत में मालदेव का निधन विरमदेव की मृत्यु के कई वर्षों बाद हुआ| विरमदेव के निधन के बाद उनका पुत्र जयमल (Jaymal Medtiya) मेड़ता की गद्दी पर बैठा था और मालदेव (Rao Maldev, Jodhpur) से उसने कई युद्ध भी किये| यदि मालदेव व विरमदेव आपसी झगडे में एक ही दिन एक दुसरे के हाथों मारे गये होते तो फिर मालदेव की जयमल के साथ कई लड़ाईयां कैसे होती? लेकिन सीरियल बनाने वालों को सही ऐतिहासिक तथ्यों से कोई लेना देना नहीं|

क़ानूनी बचाव के लिए महज एक डिस्क्लेमर लगा कर ऐतिहासिक पात्रों के नाम व घटनाओं पर मनोरंजन और टीआरपी की अंधी दौड़ में फ़िल्में व सीरियल्स बनाने के कृत्य को कतई उचित नहीं ठहराया जा सकता| जिस तरह साहित्यिक कहानियां, कविताएं जनमानस के मन पर प्रभाव डालती है, उससे ज्यादा वर्तमान में टीवी सीरियल्स व फ़िल्में प्रभाव छोडती है, हर व्यक्ति इतिहास नहीं पढता, वह इन्हीं कहानियों को सच्चा इतिहास मान बैठता है और जब उसे कोई प्रमाणिक इतिहास सुनाता भी है तो वह उस पर भरोसा नहीं करता| जिस तरह चंदबरदाई के चारणी साहित्य पृथ्वीराज रासो ने संयोगिता नाम का चरित्र घड़कर जयचंद को गद्दारी का पर्यायवाची शब्द बना दिया, ठीक उसी प्रकार मुगले आजम, अनारकली, जोधा अकबर आदि फिल्मों ने एक मनघडंत जोधा बाई नाम रच दिया, जो जनमानस के दिलोदिमाग से कभी नहीं निकल पायेगा|

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