जब जूठा खाना प्रमाण बना

Gyan Darpan
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मेवाड़ के महाराणा विक्रमादित्य की हत्या कर बणवीर (Banveer) चितौड़ का शासक बन गया था| विक्रमादित्य के छोटे भाई उदयसिंह (Maharana Udaisingh) जो अब मेवाड़ राजगद्दी का असली वारिस था, को स्वामिभक्त पन्नाधाय बणवीर के षडयंत्र से सुरक्षित बचा कर डूंगरपुर होते कुम्भलमेर पहुंची और वहां के किलेदार आशा देपुरा (जो एक महाजन था और राणा सांगा ने उसे इस पद पर आसीन किया था) को समझाकर उसे सुरक्षित किया| उस समय बणवीर ने भी उदयसिंह का अपने हाथों मारा जाना व उसका कृत्रिम होना प्रचारित कर रखा था, ऐसे में पन्नाधाय द्वारा सूचित किये जाने के बावजूद मेवाड़ के कई देशभक्त सामंत उसकी बात पर भरोसा नहीं कर रहे थे| अत: 15 वर्षीय बालक उदयसिंह के ननिहाल पक्ष के लोगों को बुलाया गया, जिन्होंने उदयसिंह को पहचान कर बणवीर के दुष्प्रचार का खंडन किया|

इस प्रकार उदयसिंह के जीवित होने की पुष्टि होने के बाद मेवाड़ के कई सरदार उसके पास पहुंचे| कोठरिया के रावत खान, रावत सांईदास चुण्डावत, केलवे से जग्गा, बागोर से रावत सांगा आदि सरदारों ने उदयसिंह को मेवाड़ का स्वामी मानते हुए उन्हें गद्दी पर बैठा कर नजराना किया और इन सरदारों ने पाली के अखैराज सोनगरा को बुलाकर उसकी पुत्री से उदयसिंह के साथ विवाह करने का अनुरोध किया|
अखैराज सोनगरा के लिए अपनी पुत्री का विवाह मेवाड़ के स्वामी से करना प्रतिष्ठा की बात थी, लेकिन वह बणवीर द्वारा उदयसिंह की हत्या के प्रचार से उदयसिंह की असलियत को लेकर आशंकित था| अत: उसने उदयसिंह की असलियत की पुष्टि के लिए मेवाड़ के सरदारों के सामने एक शर्त रखी कि “यदि मेवाड़ के वहां उपस्थित सरदार उदयसिंह का जूठा खा ले, तो वह अपनी पुत्री का विवाह कर देगा|” तब मेवाड़ के सरदारों ने उदयसिंह का जूठा खाया और अखैराज सोनगरा की तसल्ली की कि यह उदयसिंह कृत्रिम नहीं असली है| और अखैराज सोनगरा ने उदयसिंह की असली होने की संतुष्ट कर अपनी पुत्री का उसके साथ विवाह कर दिया|

इस तरह जूठा खाना मेवाड़ के महाराणा उदयसिंह की असलियत की पुष्टि का प्रमाण बना और तब से यह एक रिवाज बनकर आज तक प्रचलित और विद्यमान है|


Note: चित्र काल्पनिक है|

When Leftover food make proof for maharana udaisingh's realty

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