राजस्थानी कहावतों में वर्षा का पूर्वानुमान

Gyan Darpan
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राजस्थान में वर्षा की शुरू से कमी रही है, राजस्थान के लोग पीने के पानी के लिए भी वर्षा जल निर्भर थे. बादलों द्वारा वर्षा के रूप में बरसाई उनके भाग्य की को सहेज कर राजस्थानवासी पुरे वर्ष तक अपनी व अपने मवेशियों की प्यास बुझाते थे. इस तरह वर्षा पर आश्रित होने के चलते जाहिर है राजस्थानवासी वर्षा की बेशब्री से इन्तजार करते थे. इसी बेशब्री ने उन्हें मौसम विज्ञान समझने की प्रेरणा दी और राजस्थान के लोगों ने अपने मौसम ज्ञान को जो वैज्ञानिक कसौटी पर भी खरा था को कहावतों में सहेज लिया. ताकि आने वाले समय में यह पारम्परिक ज्ञान कहावतों में बचा रहे व आमजन इसे आसानी से समझ सके. प्रस्तुत है वर्षा को लेकर राजस्थान में प्रचलित कुछ कहावतें, जो विक्रमसिंह राठौड़, गुंदौज द्वारा लिखित, संकलित है-

आगम सूझे सांढणी, दौड़े थला अपार !
पग पटकै बैसे नहीं, जद मेह आवणहार !!

सांढ (ऊंटनी) को वर्षा का पूर्वाभास हो जाता है. सांढणी जब इधर-उधर भागने लगे, अपने पैर जमीन पर पटकने लगे और बैठे नहीं तब समझना चाहिए कि बरसात आयेगी !!

मावां पोवां धोधूंकार, फागण मास उडावै छार|
चैत मॉस बीज ल्ह्कोवै, भर बैसाखां केसू धोवै ||

माघ और पोष में कोहरा दिखाई पड़े, फाल्गुन में धुल उड़े, चैत्र में बिजली न दिखाई दे तो बैशाख में वर्षा हो|

अक्खा रोहण बायरी, राखी सरबन न होय|
पो ही मूल न होय तो, म्ही डूलंती जोय ||

अक्षय तृतीया पर रोहणी नक्षत्र न हो, रक्षा बंधन पर श्रवण नक्षत्र न हो और पौष की पूर्णिमा पर मूल नक्षत्र न हो तो संसार में विपत्ति आवे|

अत तरणावै तीतरी, लक्खारी कुरलेह|
सारस डूंगर भमै, जदअत जोरे मेह ||

तीतरी जोर से बोलने लगे, लक्खारी कुरलाने लगे, सारस पहाड़ों की चोटियों पर चढ़ने लगे तो ये सब जोरदार वर्षा आने के सूचक है !!

आगम सूझै सांढणी, तोड़ै थलां अपार।
पग पटकै, बैसे नहीं, जद मेहां अणपार।

यदि चलती ऊँटनी को रात के समय ऊँघ आने लगे, तब भी बरसात का होना माना जाता है।

तीतर पंखी बादली, विधवा काजळ रेख
बा बरसै बा घर करै, ई में मीन न मेख ||

यदि तीतर पंखी बादली हो (तीतर के पंखों जैसा बादलों का रंग हो) तो वह जरुर बरसेगी| विधवा स्त्री की आँख में काजल की रेखा दिखाई दे तो समझना चाहिए कि अवश्य ही नया घर बसायेगी, इसमें कुछ भी संदेह नहीं !!

अगस्त ऊगा मेह पूगा|

अगस्त्य तारा उदय होने पर वर्षा का अंत समझना चाहिए

अगस्त ऊगा मेह न मंडे,
जो मंडे तो धार न खंडे ||

अगस्त तारा उदय होने पर प्राय: वर्षा नहीं होती, लेकिन कभी हो तो फिर खूब जोरों से होती है |

अम्मर पीलो
मेह सीलो |

वर्षा ऋतू में आसमान का रंग पीलापन लिए दिखाई पड़े तो वर्षा मंद पड़ जाती है|

अम्बर रातो|
मेह मातो||

वर्षा ऋतू में यदि आसमान लाल दिखाई पड़े, लालिमा छाई हो तो अत्यधिक वर्षा होती है|

अम्बर हरियौ, चुवै टपरियौ |
आकाश का हरापन सामान्य वर्षा का धोतक है|
काळ कसुमै ना मरै, बामण बकरी ऊंट|
वो मांगै वा फिर चरै, वो सूका चाबै ठूंठ||

ब्राह्मण, बकरी और ऊंट दुर्भिक्ष के समय भी भूख के मारे नहीं मरते क्योंकि ब्राह्मण मांग कर खा लेता है, बकरी इधर उधर गुजारा कर लेती है और ऊंट

सूखे ठूंठ चबा कर जीवित रह सकता है|
धुर बरसालै लूंकड़ी, ऊँची घुरी खिणन्त|
भेली होय ज खेल करै, तो जळधर अति बरसन्त|

यदि वर्षा ऋतू के आरम्भ में लोमड़िया अपनी “घुरी” उंचाई पर खोदे एवं परस्पर मिल कर क्रीड़ा करें तो जानो वर्षा भरपूर होगी||

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1टिप्पणियाँ

  1. वर्षों के तजुर्बे का परिणाम होती हैं ये और ऐसी कहावतें, जो आज भी हर कसौटी पर खरी उतरने का दम रखती हैं।

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