परम्पराएं ही बचा सकती है जातीय सौहार्द

Gyan Darpan
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भारतीय संस्कृति में अनेकों जातियों का समावेश है. अनेक जातियां सदियों से इस देश में आपसी सौहार्द से एक साथ रहती आई है. यहाँ जो भी व्यक्ति पैदा होगा वो किसी न किसी जाति में पैदा होगा, उसी में ही पलेगा बढेगा. अत: वह अपने आप इस व्यवस्था का एक अंग बन जाता है. उसकी जन्म के आधार राजपूत, ब्राह्मण, बनिया, जाट, दलित आदि पहचान स्वत: बन जाती है. लेकिन वह जन्म के साथ ही विभिन्न जातियों के बीच पला बढ़ा होता है. अत: वह इस व्यवस्था में अपने आप ढल जाता है. अपनी जाति पर गर्व करते रहने के साथ वह अन्य जातियों का सम्मान भी स्वत: करता है. इसी तरह अनेकता में एकता के साथ रहने की खासियत का ही फल था कि यहाँ बाहर से आने वाले धर्मों का यहाँ की जनता ने कभी विरोध नहीं किया. बल्कि उनको भी बिना किसी भेदभाव के यहाँ रहने हेतु समायोजित कर लिया. यहाँ के लोग इस साझा संस्कृति में सदियों से एक दूसरी जाति का सम्मान करते हुए साथ रहते आये है. कभी आपसी सौहार्द की कमी नहीं रही. कई इतिहासकार भी यही लिखते है कि मुगलकाल में भी झगड़े सिर्फ सत्ता के लिए थे, साम्प्रदायिक सदभाव में कभी कोई कमी नहीं रही.

इस साझा संस्कृति में कई परम्पराएं भी चलती रही है जो आज भी गांवों में कायम है. मैं तो यहाँ तक मानता हूँ कि इस जातीय अनेकता में भी जो आपसी सौहार्द रहा है, उनके पीछे वे परम्पराएं ही है. इन परम्पराओं के तहत गांव में शादी के बाद जब भी कोई बहु आती थी, तब गांव के किसी व्यक्ति को उसका धर्म पिता बनाया जाता था, यह परम्परा आज भी विद्यमान है. इसके पीछे एक ही कारण था कि ससुराल आई लड़की को ससुराल में भी माता-पिता की कमी नहीं खले, ससुराल में कोई दिक्कत परेशानी हो तो वो अपने इन धर्म के माता-पिता के साथ बाँट सके और उसका निवारण करा सके. इसी तरह गांवों में धर्मेला भी बहुतायत से चलता था. अक्सर एक जाति का व्यक्ति दूसरी जाति के किसी व्यक्ति को अपना धर्मभाई बनाता था. इसे धर्मेला परम्परा के नाम से जाना जाता है. इस तरह भाई बने व्यक्ति जातीय भावनाओं से ऊपर उठकर एक दुसरे की भाई की तरह सहायता किया करते थे. धर्मेला परम्परा में ऊँचा-नीचा जातीय भाव नहीं देखा जाता था. क्षत्रिय जाति के लोग दलित जाति के लोगों को भी अपना धर्म भाई बनाते थे. मेरे पिता जी का मांगूराम बलाई (दलित) धर्मभाई है. आजतक पिता जी उसे भाई की हैसियत से घर के हर सामाजिक कार्यक्रम में बुलाते है. हम भी मांगूराम को काका कहकर ही पुकारते है.

इस तरह की परम्पराएं सिर्फ भाई-बहन, पुत्र-पुत्री बनाने तक ही सीमित नहीं रहती थी, बल्कि शादी ब्याह जैसे सामाजिक कार्यक्रमों में भी ये रिश्ते निभाये जाते है. धर्म भाई बना व्यक्ति अपनी धर्म बहन की संतान की शादी में भात जिसे कई जगह मायरा भी कहते है भरने ठीक उसी तरह आते है जैसे उस महिला के सगे भाई आते है. अभी हाल ही राजस्थान के नागौर जिले के डांगावास गांव में दलितों व जाटों के बीच भूमि विवाद को लेकर हुई जातीय हिंसा और उसके बाद दोनों पक्षों द्वारा जातीय लामबंदी के बावजूद इस तरह के रिश्ते निभाने की ख़बर मिली, खबर के अनुसार एक जाट ने अपनी दलित बहन की संतान में दोनों जातियों के बीच तनाव के बावजूद जातिवाद से ऊपर उठकर धर्म भाई का रिश्ता निभाते हुए भात भरा, यह खबर साबित करती है कि यही वे परम्पराएं है जो आजतक हमें जातीय अनेकता के बावजूद आपस में एक दुसरे से जोड़े हुए है.

हालाँकि आजादी के बाद वोट बैंक की राजनीति ने जातीय सौहार्द बिगाड़ने में सबसे ज्यादा बड़ी भूमिका निभाई है. चुनावों में हर व्यक्ति अपनी अपनी जातीय भावनाओं के अनुरूप एक दुसरे के खिलाफ वोट करता है, कई बार चुनावों में जातीय झगड़े भी होते है, बावजूद इन परम्पराओं के चलते जब भी मौका पड़ता है लोग परम्पराओं के तहत बने रिश्ते निभाने सब कुछ भूल कर चले आते है. गांव में जब भी चुनाव होते है जाट, राजपूत, दलित आमने सामने होते है. हाल ही जनवरी माह में मेरे गांव में पंचायत चुनाव हुए, उससे पहले भी विधानसभा व लोकसभा चुनाव का दौर चला, जातीय लामबंदी भी हुई. जातिवादी तत्वों ने अपने पक्ष में जातीय वोट लेने हेतु जातीय भावनाओं का दोहन करने के लिए जातीय विद्वेष फैलाया. वोट डालते समय भी सभी जातियां आमने-सामने थी. पर फरवरी में मेरी पुत्री की शादी में वे सभी लोग अपने अपने धर्म के रिश्ते निभाने शरीक हुए जो चुनाव में सामने थे, पर किसी को याद भी नहीं था कि एक माह पहले हम एक दुसरे के आमने-सामने थे.

ये है उन परम्पराओं का कमाल जिसे आजकल की आधुनिक पीढ़ी रूढ़ियाँ मानती है. भले कथित लोगों व जातीय तत्वों को इन परम्पराओं से नफरत हों, इन्हें रूढ़ियाँ प्रचारित की जाय पर ये रूढ़ियाँ, परम्पराएं भारतीय संस्कृति जिसमें जातीय व्यवस्था रची बसी है के आपसी सौहार्द के लिए आवश्यक है.

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3टिप्पणियाँ

  1. बहुत ही बढ़िया लेख हैं... प्रिय रतन सिंह जी मैं आपसे जानना चाहता हूँ की यह जो टेम्प्लेट आपने अपनी वेबसाइट पर लगाया हैं, यह मैं अपने ब्लॉग पर कैसे लगा सकता हूँ... . मुझे यह टेम्पलेट Apriezt को अपने ब्लॉग पर लगाना हैं, मुझे यह इन्टरनेट पर मिल गया हैं, लेकिन यह Xml version में नहीं हैं बल्कि एक ज़िप फाइल मिली हैं, जिसमे कई तरह के जावास्क्रिप्ट फाइल और css फाइल और फोटो आदि दिए गये .... अब मैं तो एक ब्लॉगर हूँ और मेरी कोई वेबसाइट नहीं हैं , मतलब मेरे पास मेरी वेबसाइट का कोई अपना डोमेन नहीं हैं. मेरा ब्लॉग Ht100.blogspot.com हैं, कृप्या क्या आप मेरी सहायता कर सकते हैं, इन सभी जावास्क्रिप्ट और css फाइल्स को कैसे xml में बदल लू और कैसे इसे अपने टेम्पलेट को सेट करू... ब्लॉगर में... आपके उत्तर की प्रतीक्षा में .... सुरेश कुमार, लुधियाना, पंजाब...

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (07-06-2015) को "गंगा के लिए अब कोई भगीरथ नहीं" (चर्चा अंक-1999) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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  3. ऐसी परंपरा बरकरार रखनी चाहि‍ए...ये सूत्र हैं लोगों को जोड़े रखने का। बहुत अच्‍छा लि‍खा आपने।

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