कैसे मिला गजेन्द्रसिंह को किसान शहीद का दर्जा

Gyan Darpan
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इस देश में कर्ज से डूबकर हर वर्ष कई किसान आत्महत्या करते है. लेकिन गजेन्द्र सिंह ने किसानों की समस्याओं की और सरकारों का ध्यान आकर्षित करने के लिए जो बलिदान दिया, उसका सम्मान करते हुए दिल्ली सरकार ने उसे किसान शहीद का दर्जा दिया, साथ ही उसके एक पुत्र को दिल्ली सरकार में नौकरी देने, दिल्ली में गजेन्द्र सिंह के नाम से किसान सहायता केंद की स्थापना करने, दिल्ली में किसानों को दी जानी वाली सहायता योजना का नाम शहीद गजेन्द्र सिंह किसान सहायता योजना रखने का केबीनेट मंत्रीमंडल ने निर्णय लिया. और मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने बवाना में किसानों को इस योजना के तहत चैक का वितरण गजेन्द्र के परिवार के सदस्यों के हाथों करवा कर योजना की शुरुआत भी की. गजेन्द्र को किसान का दर्जा देने और एक आश्रित को नौकरी देने की मांग मानने के पीछे भी क्षत्रिय समाज बंधुओं की तगड़ी भूमिका रही.
गजेन्द्र का शव लेने पहुंचे राजेन्द्र सिंह बसेठ ने दिल्ली पुलिस को साफ़ मना कर दिया कि जब तक दिल्ली सरकार के मंत्री व उस वक्त मंच पर उपस्थित आप नेताओं के खिलाफ गजेन्द्र को आत्महत्या के लिए उकसाने का मुकदमा दर्ज नहीं होने तक वे शव नहीं ले जायेंगे. चूँकि हादसे में दिल्ली पुलिस ने भी लापरवाही बरती थी और गजेन्द्र की मौत से आहात किसानों के हुजूम जब दिल्ली की और रवाना होने की ख़बरें मिलने से दिल्ली पुलिस भी दबाव में थी अत: दिल्ली पुलिस ने गृहमंत्री से परामर्श लेकर मुकदमा दर्ज कर लिया. उधर गजेन्द्र के परिजनों व मित्रों जिनमे राजेन्द्र सिंह बसेठ प्रमुख रूप से थे ने सर्वप्रथम बयान जारी कर रैली के आयोजको पर आत्महत्या के लिए उकसाने ,फिर समय रहते नही बचाने और फिर मौत के बाद भी रैली जारी रखने पर अपराधिक कृत्य के आरोप लगाये. इन आरोपों से सीधे दिल्ली सरकार एकदम बचाव की मुद्रा में आ गयी और समस्त किसान संगठनो सहित राजनितिक दलों के तीखे प्रहारों का निशाना बन गयी ।
चूँकि इस मामले में आम आदमी पार्टी के अन्य नेताओं की बजाय मनीष सिसोदिया पर इस मामले में सीधे आरोप लगने लगे. एक तरफ एक क्षत्रिय किसान हादसे का शिकार हो गया था, दूसरे क्षत्रिय मनीष सिसोदिया का राजनैतिक कैरियर इस मामले में दांव पर लगने वाला था. सो डेमेज कंट्रोल के लिए क्षत्रिय संगठनों के प्रतिनिधि यथा ठाकुर अनूप सिंह, सूर्यकान्त सिंह, आर.पी.सिंह. के.पी.सिंह आदि सक्रीय हो गये और दिल्ली व राजस्थान के क्षत्रिय कार्यकर्ताओं व नेताओं से समन्वय किया.

अब चूँकि गजेन्द्र सिंह की शहादत को पहचान दिलाना मुख्य उद्देश्य था अतः रणनीति बनाकर दिल्ली सरकार पर समुचित दबाव बनाना आवशयक था ताकि गजेन्द्र सिंह को भारत का प्रथम किसान घोषित करवा कर उनके नाम का स्मारक दिल्ली में बन सके और सभी किसान सहायता योजना उनके नाम से घोषित हों। साथ ही उनके परिवार को आर्थिक आत्मनिर्भरता प्राप्त हो। इसके लिए सर्व प्रथम AAP प्रवक्ता आशुतोष के चुभते हुए बयान से नाराज युवाओं ने अपना काम चुपचाप शुरू कर दिया और शीघ्र ही परिणाम प्राप्त हुआ कि जो आशुतोष एक दिन पूर्व व्यंग्य बयान दे रहा था अगले ही दिन सार्वजानिक रूप से रुदन का विश्व रिकॉर्ड सभी टी वी चैनलों पर बना चुका था।

इसके बाद सभी क्षत्रिय संगठन किसान शहीद को व्यवहारिक और संवैधानिक रूप से घोषित करवाने में जुट गए। दिल्ली सरकार भी स्थिति को भांप गयी उसने भी सिर्फ पार्टी के राजपूत नेताओ को ही वार्ता के लिए भेजा। क्षत्रिय प्रतिनिधियों अपनी 5 मांगे मानने के बाद ही चर्चा करने को तैयार थे और केवल इन्ही मांगो को मानने की शर्त पर नांगल झामरवाङा आने को कहा। आम आदमी पार्टी की ओर से संजय सिंह अपने प्रतिनिधि मंडल के साथ क्षत्रिय संगठनो के प्रमुख प्रतिनिधियों के साथ जिनमें अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा श्री क्षत्रिय वीर ज्योति, श्री राजपूत युवा परिषद, एवं श्री क्षत्रिय युवक संघ प्रमुख रूप से थे। इससे पहले चाहते हुए भी सुरक्षा कारणों से आम आदमी पार्टी के नेता गजेन्द्र सिंह के घर दुःख प्रकट करने भी नहीं जा सके. संजयसिंह क्षत्रिय संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ गजेन्द्र सिंह के परिजनों से मिले व उनकी सभी मांगे दिल्ली सरकार तक पहुंचाई, जिन्हें दिल्ली सरकार ने तुरन्त मान लिया. मुख्यमंत्री केजरीवाल ने सभा जारी रखने के मामले में माफ़ी मांगी. हालाँकि मांगे मानने के बावजूद मुकदमें में आम आदमी पार्टी नेताओं को कोई राहत नहीं देने की बात क्षत्रिय प्रतिनिधियों ने साफ़ कर दी। लेकिन ऐसा कर पार्टी ने क्षत्रिय संगठनों के रोष व असंवेदनशीलता के आरोप से अपने आपको बचा लिया. गजेन्द्र को शहीद का दर्जा दिलवाने में आम आदमी पार्टी की राजपूत लॉबी ने जहाँ महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई वहीं आधुनिक विश्वामित्र श्री देवी सिंह जी महार के सतत मार्ग दर्शन एवं दिशा निर्देशन में क्षत्रिय वीर ज्योति मिशन के राजेन्द्र सिंह बसेठ ने, राजपूत युवा परिषद, क्षत्रिय युवक संघ, क्षत्रिय महासभाओं, आदि के प्रतिनिधियों से सलाह मशविरा कर रणनीति तय कर सबसे बड़ी भूमिका निभाई. वहीं पृथ्वीराज सिंह भांडेडा, शक्ति सिंह बांदीकुई, महावीर सिंह रुंवा, उम्मेद सिंह करीरी, महिपाल सिंह तंवर ने हर समय सक्रिय सहयोग देकर पहली बार भारत में किसी किसान को शहीद का दर्जा दिलवाने में महती भूमिका निभाई।

इस प्रकरण में एक खास बात उभर कर आई और वो थी विभिन्न क्षत्रिय संगठनों का बेहतरीन ढंग से किया गया समन्वय एवं तालमेल, जिसमें दिल्ली, राजस्थान व उतरप्रदेश के क्षत्रिय बंधू पूर्ण तन्मयता से सलंग्न थे| यदि क्षत्रिय समाज क्षेत्रीय संकीर्णता से उठकर क्षत्रित्व पर एक होकर काम करेंगे तो क्षत्रिय समाज के लिए सुखद रहेगा|

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