सामाजिक समरसता के प्रतीक महाराज शारिवाहन

Gyan Darpan
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आजादी के बाद इस देश में क्षत्रिय शासकों के चरित्र हनन का एक फैशन सा चला है. ऐसा कोई राजनैतिक दल नहीं जिसनें समय समय पर क्षत्रिय शासकों को शोषक, आय्यास आदि की संज्ञा देकर उनके खिलाफ जहर ना उगला हो. सिनेमा व टेलीविजन ने भी क्षत्रिय शासकों को हमेशा खलनायक ही देखाने की कोशिश की है. लेकिन इतिहास पर दृष्टि डालें तो पायेंगे कि कई ऐसे क्षत्रिय शासक हुए है जिन्होंने अपने काल में जो सामाजिक समरसता हेतु कार्य किये वैसा कार्य आज के तथाकथित व स्वघोषित समाजवादी नेता नहीं कर सके.

जिन जातियों को अछूत समझा जाता है उन्हें बिना किसी भेदभाव के जहाँ राजस्थान के रामदेव तंवर ( Baba Ram Sa Peer)से अपनाया और उन्हें सहारा दिया वहीं बिहार के कैमूर जिले के शासक शारिवाहन (Maharaj Sharivahan) ने सामाजिक समरसता का परिचय देते हुए दलितों को हवन पूजन व यज्ञ जैसे आयोजनों में ब्राह्मणों की तरह शामिल कर व उन्हें अधिकार देकर सामाजिक असमानता की सरंचना पर करारा प्रहार किया. लगभग 450 वर्ष पूर्व महाराज शारिवाहन द्वारा किये गए इस सामाजिक बदलाव को कैमूर जिले के कई गांवों में आज भी देखा जा सकता है.

इतिहासकारों के अनुसार आज से लगभग 500 वर्ष पूर्व चौसा नरेश महाराज लक्ष्मी ने अपने पुरोहित के पुत्रवध का बदला लेने के लिए चैनपुर नरेश बाघामल पर आक्रमण कर उसे मारकर चैनपुर पर अधिकार कर लिया और अपने पुरोहित को प्रधानमंत्री बनाया. चैनपुर पर अधिकार करने के बाद महाराज लक्ष्मी ने मुंडेश्वरी देवी के मंदिर में पशुबली पर रोक लगाईं. आगे चलकर महाराज लक्ष्मी की वंशपरम्परा में महाराज शारिवाहन चैनपुर के शासक बने व वंशानुगत पुरोहित परम्परा के अनुसार पुरोहित हरसू पाण्डेय पुरोहित व प्रधानमंत्री बनाया गया. जिसका निवास राजा के समान व परिवार के भरण-पोषण हेतु पांच गांव दिए गए थे. पुरोहित को राज्य की और से पूरी सुख-सुविधाएँ थी लेकिन पुरोहित की पत्नी का स्वाभाव गलत था. वह अक्सर राजपरिवार में मनमुटाव पैदा करने के षड्यंत्र रचती थी. एक षड्यंत्र के तहत उसमें रानियों में मतभेद पैदा करने की कोशिश की जिसे भांपते हुए महाराज शारिवाहन की रानी मानिक मति जो सरगूजा नरेश की पुत्री थी ने पुरोहिताइन को षड्यंत्र रचने का दंड देते हुए उसका आवास गिरवा दिया. इतना होने के बाद भी महाराज शारिवाहन ने पुरोहित को धैर्य रखने व इन्तजार करने का कहते हुए सब सुविधाएँ वापस देने का आश्वासन दिया. लेकिन पुरोहित अपनी पत्नी के उकसावे में आ गया और उसमें खुद तथा अपने समुदाय द्वारा हवन, यज्ञ, पूजन आदि के बहिष्कार की घोषणा कर दी व अपनी मातृभूमि के खिलाफ गद्दारी करते हुए मातृभूमि के दुश्मनों से जा मिला. पुरोहित की इस घोषणा के बाद महाराज ने भी एक ऐतिहासिक फैसला लेते हुए दलित शोषित व वंचित समझी जाने जातियों (Dalit) यथा डोम, तेली, दर्जी, धोबी आदि जातियों को धोती, जनेऊ, खड़ाऊ आदि भेंट कर उन्हें हवं-पूजन आदि करने का अधिकार दिया व उन्हें एक एक गांव देकर सामाजिक तौर पर उन्हें समानता प्रदान की.

जिस समय चैनपुर में ये घटनाएँ घट रही थी उसी समय सासाराम में शेरशाह का उतराधिकारी बख्तियार खां राज कर रहा था. हरसू पाण्डेय जिसकी कई पीढ़ियों ने चैनपुर राज्य से सुख सुविधाएँ व मान सम्मान प्राप्त किया था को भुलाकर पुरोहित हरसू पाण्डेय बख्तियार खां से जा मिला और उसे चैनपुर पर आक्रमण के लिए उकसाने लगा. यही नहीं इस गद्दार पुरोहित ने महाराज शारिवाहन के एक सिपहसालार भगवान सिंह को बहकाकर उसे इस्लाम धर्म स्वीकार करवा दिया. बख्तियार खां को चैनपुर राज्य की आंतरिक कमजोरियों का भेद व इस्लाम स्वीकार किये भगवान सिंह व गद्दार हरसू पाण्डेय का साथ मिलते ही उसने अचानक चैनपुर पर हमला बोल दिया. अचानक हुए हमले के बाद अपनी सुरक्षा व्यवस्था सँभालते हुए महाराज शारिवाहन ने अपनी गर्भवती रानी व राजकुमार को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा दिया और खुद बख्तियार खां से युद्ध करने हेतु जुट गए. युद्ध के शुरू में बख्तियार खां की सेना पर महाराज शारिवाहन के यौद्धा भारी पड़ने लगे. यहाँ तक कि बख्तियार खां भी पछताने लगा कि उसमें उकसावे में आकर हमला क्यों किया. लेकिन बख्तियार खां के आपस उपलब्ध तोपों के आगे महाराज शारिवाहन के सैनिक ज्यादा दिन टिक नहीं सके और उनको पराजय का सामना करना पड़ा. अपनी पराजय सामने देख महाराज अपनी एक रानी के साथ गुप्त भूमिगत रास्ते से सुरक्षित स्थान की और पलायन कर रहे थे पर रास्ते में पुरोहित ने अपने साथियों के साथ रास्ता रोक लिया. महाराज ने अपनी रानी को तलवार खुद काट दिया ताकि वो दुश्मन को हाथ ना लगे और खुद भी लड़ते हुए वीर गति को प्राप्त हुए. पुरोहित हरसू पाण्डेय भी महाराज के हाथों घायल हो गया था जिसने बाद में दम तोड़ दिया. इस तरह महाराज शारिवाहन ने वीरगति प्राप्त होते होते मातृभूमि के गद्दार पुरोहित को दंड दे गये.

बख्तियार खां के ग्यारह साल शासन करने के बाद दिल्ली के सम्राट अकबर ने एक आदेश जारी कर चैनपुर रियासत पुन: महाराज शारिवाहन के पुत्र सागर शाह को प्रदान कर दी गई.

लेख बिंध्याचल सिंह द्वारा दी गई जानकारी के आधार

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