जब हम पूर्ण विकसित होंगे : व्यंग्य

Gyan Darpan
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मोदी (Narendra Modi) के प्रधानमंत्री बनने के बाद देश में विकास की बड़ी बड़ी बातें चल रही है| हर देशवासी के दिल में अब पूर्ण विकसित होने की उम्मीदें हिल्लोरें मारने लगी है| आखिर मारे भी क्यों नहीं देशवासियों को अब विकास के अमेरिकी पश्चिम मॉडल, मास्को व चीन के वामपंथी मॉडल के साथ खांटी गुजराती मॉडल जो मिल गया| आजकल देश का हर व्यक्ति, सत्ता की सीढियों पर शोर्टकट रास्ते चढने की महत्वाकांक्षा रखने वाला हर नेता गुजराती विकास मॉडल का जाप जप रहा है| मोदी प्रधानमंत्री पद पर आसीन होने के बाद तो गुजराती विकास मॉडल की ही नहीं, गुजराती गरबा संस्कृति की खासियत, उसकी श्रेष्ठता आदि की चर्चाएँ ही नहीं चल रही बल्कि लोग गुजरात की संस्कृति अपनाते हुए गरबा में डूबे है|

लेकिन हम हिन्दुस्तानियों (Indians)की ख़ास आदत है| हम अपनी अच्छी चीजें छोड़ दूसरों की घटिया चीजें अपनाते हुए गौरव महसूस करते है| अब जब हम जैसे विकासशील या पिछड़े देश को इतने सारे विकास मॉडल मिल गए तो हम इन सबका घालमेल कर अपना विकास जरुर करेंगे| जब हम विकास के अपने भारतीय सांस्कृतिक मॉडल को छोड़ कई तरह के मॉडलस के घालमेल वाले संस्करण से विकास करेंगे ( Fully Developed Nations)तब तो विकास कुछ इस तरह नजर आयेगा-

पाश्चात्य अमेरिकी विकास मॉडल अपनाते हुए हम शिक्षित होंगे और उनकी संस्कृति अपनायेंगे, तब हम कपड़े पहनने के झंझट से मुक्त हो जायेंगे| कपड़ों पर होने वाला खर्च बच जायेगा| जो जितना विकसित होगा उसका उतना शरीर नंगा दिखाई देगा| कपड़ों की मांग घटने से देश के कपड़ा उद्योग कपड़ा बनाते व रंगाई-छपाई करते समय जो प्रदूषण फैलाते है, वो बंद हो जायेगा| इस तरह विकसित होने के साथ साथ हम पर्यावरण की रक्षा करते हुए ओजोन परत बचाकर धरती पर बहुत बड़ा अहसान भी कर देंगे|

गुजराती विकास और सांस्कृतिक मॉडल अपनाने के बाद देश में औद्योगिक विकास (Industrial Development) तो धड़ल्ले होगा, जिसमें गरीब, किसान को कुछ मिले या नहीं, पर पूंजीपतियों की पौबारह होगी| देश में जब अमीरों के आने जाने के लिए चौड़ी चौड़ी सड़कें बनेगी, उद्योग लगेंगे तब किसानों की जमीन का सरकार उनके लिए अधिग्रहण कर, उसका मुआवजा देकर किसान को घाटे की खेती करने से निजात दिला देगी| यही नहीं किसान भी भूमि के मुआवजे से मिले धन से कुछ समय तक अमीरों की तरह एशोआराम कर उसका सुख भोग सकेगा|

आज पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP Model)से सड़कें बन रही है| जब हम ज्यादा विकास करेंगे तब शहर, गांव, कच्ची बस्ती तक की सड़कें इसी मॉडल के तहत बनवा देंगे| जिस तरह आज राजमार्गों पर चढ़ते ही टोल चुकाना पड़ता है, उसी तर्ज पर घर से निकलते ही व्यक्ति को गली की सड़क पर पैर रखने के लिए टोल चुकाना पड़ेगा| गरीब जो टोल नहीं चुका सकता वह घर से बाहर ही नहीं निकलेगा और इस तरह गरीबी घर में दुबकी बैठी रहेगी| देश में जिधर नजर पड़ेगी उधर अमीर व्यक्ति ही नजर आयेंगे, जिससे विदेशियों की नजर में हम गरीब देश नहीं अमीर देश कहलायेंगे|

अपनी स्थानीय संस्कृति छोड़, गरबा जैसी दूर से मजेदार दिखने वाली संस्कृति अपनायेंगे तो उसके पीछे का सांस्कृतिक प्रदूषण भी साथ आयेगा| उसके समर्थक नेता उस प्रदूषण के फायदे भी गिनवायेगा कि छोरी के गरबा में किसी के साथ सेटिंग कर भाग जाना घर वालों के लिए फायदे का सौदा है, उनका दहेज़ में किया जाने वाला धन बच गया|

आधुनिक शिक्षा ग्रहण कर जब हम पूर्ण विकसित हो जायेंगे तब घर में बूढ़े माँ-बाप की सेवा करने को रुढ़िवादी क्रियाक्लाप समझ, माँ-बाप को घर से बाहर निकाल देंगे| उन्हें किसी धर्मार्थ संस्थान या सरकार द्वारा संचालित वृद्धाश्रम में छोड़ आयेंगे| सरकारें भी हर वर्ष निर्माण किये वृद्धाश्रमों की संख्या दर्शाते हुए विकास के आंकड़े प्रचारित करेगी|

इस तरह हमारे द्वारा अपनाये गए खिचड़ी विकास मॉडल के फायदे ही फायदे होंगे, भले हम अपनी मूल संस्कृति, विकास का प्राचीन भारतीय मॉडल जिसकी बदौलत भारत दुनियां में सोने की चिड़िया हुआ करता था, को खो देंगे| जिसके लिए कभी विश्विद्यालयों में शोध होगा| कई लोग डाक्टर की उपाधियों से विभूषित भी हो जायेंगे| पर हमारा देश कभी सोने की चिड़िया बनेगा, का सपना भी नहीं ले पायेगा| यह बिंदु वामपंथी इतिहाकारों के लिए भी फायदे का सौदा साबित होगा, वे भारत कभी सोने की चिड़िया था ही नहीं, पर ढेरों किताबें लिखेंगे और शोध पत्र छापेंगे कि ये कोरी कल्पना थी कि भारत कभी सोने की चिड़िया भी था|


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  1. मोदी के पास जादू का डंडा है, जो वे एक रात में सब कुछ अच्छा कर देंगे अब तक हर चुनाव में राजनीतिक दल आश्वासन देते आएं हैं, किसने एक रात में परिवर्तन ला दिया है,पांच साल राज कर के भी ऐसे ही दुबारा फिर उन्हीं आश्वासनों पर वोटमांगने आ जाते हैं , जैसे कि 'गरीबी हटाओ' के नाम पर सालों साल वोट लेते रहे पर इन नेताओं की अपनी गरीबी के अलावा जनता की गरीबी नहीं मिटी साठ साल में क्या मिला, जो अब मोदी से एक दिन में मांग रहें हैं।
    हमारी यह विशेषता है कि हम पूरे टैक्स भी नहीं देना चाहते हैं, सुविधाएँ भी निःशुल्क सारी चाहते हैं , यदि कोई भी सरकार पी पी मॉडल पर या विदेशी निवेश के माध्यम से कुछ करे तो भी हमें तकलीफ होती है,और उस की आलोचना कर कोसना शुरू कर देते हैं यही हाल पिछली सरकार के साथ था, वही अब भी है ,आखिर उसका अन्य आर्थिक स्रोत क्या हो?गुजरात भी भारत का ही हिस्सा है यदि वहां कुछ विकास हुआ तो, उस तरीके को अपनाना क्या गुनाह है या बुरा है ,आपके व्यंग में व्यंग कम राजनीतिक आलोचना की बू ज्यादा आ रही है , खैर आपको अपने इस ज्ञानवर्धक तथाकथित व्यंग के लिए बधाई

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    1. महोदय
      मेरा व्यंग्य राजनीति पर है या नहीं, वो मैं जानता हूँ पर आपकी टिप्पणी में राजनैतिक बू ही नहीं आ रही बल्कि आपकी राजनैतिक तिलमिलाहट भी झलक रही है !
      आपको यह भी पता होना चाहिए कि पी पी मॉडल पर या विदेशी निवेश के माध्यम से विकास का फार्मूला मोदी का नहीं, पिछली सरकारों का है अत: इसके लिए आलोचना मोदी की कहाँ हुई ? खैर....आपकी राजनैतिक भक्ति आपको मुबारक, हम तो जो जन विरोधी लगेगा उसकी आलोचना करेंगे ही, वो किस काम का जो गरीब के काम ना आये ??


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  2. हुकुम…… व्यंग्यात्मक लहज़े एवं कम शब्दों में बहुत ही सार्थक,गूढ़ और सारगर्भित बात कह दी आपने। इसके लिए साधुवाद। हुकुम …जहाँ तक मैं इतिहास के बारे में जितनी भी जानकारी रखता हूँ ,उसके आधार पर सतार्किक कह सकता हूँ कि इस देश में सत्ता प्राप्ति के जितने भी प्रयास हुए हैं उन सबके मूल में एक ही धारणा कार्य कर रही है कि एन-केन-प्रकारेण क्षत्रियों (कालान्तर में राजपूतों ) को सत्ता से वंचित किया जाए। प्राचीन शुंग,कण्व और सातवाहन जैसे ब्राह्मण वंश, नापित(नाई ) पुत्र महापदमनन्द का नन्द वंश , मध्यकाल का गुलाम वंश(जो कि मुहम्मद गौरी की बहादुरी से न प्राप्त होकर इसी देश के गद्दार व्रह्मवंशियों द्वारा स्थापित करवाया गया था ) और इसका आधुनिक संस्करण नेहरू वंश ,ये सब के सब सिर्फ और सिर्फ षड़यंत्र के आधार पर सत्ता प्राप्त कर पाये। मोदी भी इसका अपवाद नहीं हैं वो भी इन्हीं के पर्यायवाची हैं। जब कोई व्यक्ति अपनी संस्कृति विस्मृत कर उधार की संस्कृति को स्वीकारता है और उसे विकास का नाम देता है तो इसे उस व्यक्ति के मानसिक दिवालियेपन के अतिरिक्त अन्य नाम नहीं दिया जा सकता। दीर्घ वार्ता फिर कभी। बहरहाल एक सुन्दर लेख के लिए पुनः आभार।

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