कुम्भा महल और विजय स्तंभ : चितौडगढ़

Gyan Darpan
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कुम्भा के महलों के भग्नावशेष और यह पास में खड़ा हुवा विजय स्तम्भ ! एक ही चेहरे की दो आँखे है जिसमे एक में आंसू और दूसरी में मुस्कराहट सो रही है | एक ही भाग्य विधाता की दो कृतियाँ है-एक आकाश चूम रहा है और दूसरा प्रथ्वी पर छितरा गया है | एक ही कवि की दो पंक्तियाँ है,जिसमे एक जन-जन के होठों पर चढ़कर उसकी कीर्ति प्रशस्त कर रही है और दूसरी रसगुण से ओत-प्रोत होकर भी जंगल के फूल की तरह बिना किसी को आकृष्ट किए अपनी ही खुशबु में खोकर विस्मृत हो गई है | एक ही जीवन के दो पहलु-एक स्मृति की अट्टालिका और दूसरी विस्मृति की उपमा बनकर बीते हुए वैभव पर आंसू बहा रही है |

पास ही पन्ना दाई के महलों में ममता सिसकियाँ भर रही है,कर्तव्य हंस रहा है और जमाना ढांढस बंधा रहा है | निर्जनता शान्ति की खोज में भटकती हुयी यही आकर बस गई है | जीवन में भावों की उथल-पुथल चल रही है,यधपि जीवन समाप्त हो गया है | राख अभी तक गर्म है,यधपि आग बहुत पहले ही बुझ चुकी है |मौत का सिर यही कटा था,किंतु जिन्दगी का धड़ छटपटा रहा है |अपने लाडले की बलि चढाकर माताओं ने कर्तव्य पालन किया,मौत का जहर पीकर जिन्होंने जिन्दगी के लिए अमृत उपहार दिया | अपने ही शरीर की खल खिंचवा कर मालिक के लिए जिन्होंने आभूषण बनाये |

ओह ! कैसी परम्पराएँ थी !

यह परम्परा तो जन हथेली पर लेकर चलने की नही,उससे से भी बढ़कर थी | जान को कहती थी - "तुम चलो,हम आती है !"



लेखक : स्व. तनसिंह, बाड़मेर (पूर्व सांसद बाड़मेर, संस्थापक क्षत्रिय युवक संघ)
आवाज सीजी रेडियो के सौजन्य से

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9टिप्पणियाँ

  1. आपकी पोस्ट को आज की बुलेटिन अंतर्राष्ट्रीय जल सहयोग वर्ष .... ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। सादर ...आभार।

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (07-07-2013) को <a href="http://charchamanch.blogspot.in/“ मँहगाई की बीन पे , नाच रहे हैं साँप” (चर्चा मंच-अंकः1299) <a href=" पर भी होगी!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. उदाहरण स्थापित करने वाले परम्पराओं के उत्कृष्ट रूप गढ़ते हैं।

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  4. मैं भी कितना भुलक्कड़ हो गया हूँ। नहीं जानता, काम का बोझ है या उम्र का दबाव!
    --
    पूर्व के कमेंट में सुधार!
    आपकी इस पोस्ट का लिंक आज रविवार (7-7-2013) को चर्चा मंच पर है।
    सूचनार्थ...!
    --

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