ऐ बावरी, अपनी मुहब्बत का क्या नाम रखा है ?

Gyan Darpan
10
अक्सर लोग पूछते है मुझसे , ऐ बावरी, अपनी मुहब्बत का क्या नाम रखा है।
गज़ब ! कैसे जान गया जमाना , तेरे नाम को मैंने अपनी नज्मो में छिपा रखा है।

अजीब ! एक तुम थे जिसने गुनगुनायी थी मेरे संग संग राहो में दिलकश ग़ज़ल।
दे गयी थी राहत मेरे सोजे दिल को कितने सुहाने थे तेरे साथ जो बीते वोह मंज़र।


तेरे शहर की मस्त बहती नदियां मुझे आज भी तेरे अहसास की गहराईया दे जाती है।
कच्चे धागों का यह बन्धन , मेरी रूहे जान भी तेरी गली की हवा में मदहोश रहती है।

लेखिका: कमलेश चौहान (गौरी) : Copy Right at ( Saat Janam Ke Baad)

एक टिप्पणी भेजें

10टिप्पणियाँ

  1. Nice.. tumhe q bataye.. hame apne baware ka kya nam rakha h...

    जवाब देंहटाएं
  2. अक्सर लोग पूछते है मुझसे , ऐ बावरी, अपनी मुहब्बत का क्या नाम रखा है।
    गज़ब ! कैसे जान गया जमाना , तेरे नाम को मैंने अपनी नज्मो में छिपा रखा है।

    वाह!!!!

    जवाब देंहटाएं
  3. कौन देता है मुहब्बए को भला कोई नाम,कतरा ए दिल से जो कतरा मिल जाये वो ही तो मुहब्बत है.
    बेहद सुन्दर प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
एक टिप्पणी भेजें