भाग्य में लिखा वो मिला

Gyan Darpan
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“भाग्य में लिखा छप्पर फाड़ कर मिलता है” पूर्वजों की बनाई यह कहावत एकदम सटीक है ऐसे कई उदाहरण देखने, पढने को मिल जाते है कि जिसके भाग्य में राजा बनना लिखा था तो वह किसी राजा की रानी के गर्भ से पैदा नहीं होने के बावजूद भी राजा बना| जोधपुर के राजा मानसिंह हालाँकि जोधपुर राजपरिवार में पैदा हुए पर उनके पिता का जोधपुर राज्य के राजा के छोटे पुत्र होने के कारण गद्दी पर उनका अधिकार कतई नहीं रहा| जब पिता के ही हक़ में राजगद्दी नहीं थी तब मानसिंह के अधिकार की तो बात ही दूर थी|

उस वक्त जोधपुर की राजगद्दी पर भीम सिंह विराजमान थे जो मानसिंह के बड़े भाई ( उनके पिता के बड़े भाई का पुत्र) थे| मानसिंह जालौर के किले में थे पर पारिवारिक कलह और पोकरण के ठाकुर सवाई सिंह के षड्यंत्रों के चलते भीमसिंह ने मानसिंह को जालौर किले से बेदखल करने हेतु अपने प्रधान सेनापति इंद्रराज सिंघवी के नेतृत्व में एक विशाल सेना भेज जालौर किले को घेर रखा था|

वर्षो से जोधपुर की सेना से घिरे रहने के चलते मानसिंह आर्थिक तौर पर तंगहाली में गुजर रहे थे, धनाभाव के चलते किले में सुरक्षा के लिए गोलाबारूद तो छोड़िये खाने के लिए अन्न की भी भयंकर कमी पड़ जाया करती थी| ऐसी हालत में हर बार मानसिंह के मित्र कवि जुगतीदान बारहट, बणसूरी दुश्मन सेना के मध्य से छद्मवेश में निकलकर अर्थ की व्यवस्था करते थे| एक बार तो जब बारहट जी के धन की व्यवस्था के लिए सभी रास्ते बंद हो गये तब कवि जुगतीदान बारहट ने अपनी पुत्रवधू के गहने चुपके से निकाल बेचकर राजा मानसिंह की आर्थिक सहायता की| जिसे मानसिंह कभी नहीं भूले|

उस दिन वर्षों के सैनिक घेरे के चलते किले में धन व खाद्य सामग्री का अभाव पड़ गया था, किले में मौजूद हर व्यक्ति चार पांच दिन बाद खाद्य सामग्री के ख़त्म होने के बाद भूखे रहने वाली परिस्थिति भांप कर व्याकुल था| मानसिंह को भी अब धन की व्यवस्था करने का कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था, सभी परिस्थियों पर गहन चिंतन मनन करने के बाद मानसिंह ने मन ही मन अपने बड़े भाई जोधपुर के राजा भीमसिंह के सेनापति के आगे आत्मसमर्पण करने का निर्णय कर अपने साथियों से विचार विमर्श किया|

उनके साथी भी ऐसी विकट परिस्थिति में आत्म समर्पण करने के ही पक्ष में थे आखिर आत्म समर्पण भी बड़े भाई की सेना के सामने ही करना था अत: स्वाभिमान आहत होने वाली बात भी इतनी बड़ी नहीं थी| कोई सेना होती तो आत्म समर्पण करना कुल परम्परा के खिलाफ होता, स्वाभिमान आहत होता| पर यहाँ तो अपने ही बड़े भाई की सेना के आगे समर्पण करना था| फिर भी वहां मौजूद नाथ सम्प्रदाय के एक साधू देवनाथ आत्म समर्पण के पक्ष में नहीं थे, उन्होंने मानसिंह को आत्म समपर्ण करने के लिए चार दिन इन्तजार करने का कहते हुए आश्वस्त किया कि आने वाले चार दिनों में परिस्थितियां आपके अनुकूल होगी| एक साधू के वचन पर भरोसा कर मानसिंह ने आत्म समर्पण करने के लिए चार दिन इन्तजार करने का निश्चय किया| चार दिन बाद अचानक ऐसी परिस्थियाँ बदली कि- जो मानसिंह वर्षों से जालौर किले को येनकेन प्रकारेण बचाने को जूझ रहा था उसे जोधपुर राज्य के राजा बनने का सौभाग्य प्राप्त हो गया|

उन्हीं चार दिन बाद जोधपुर सेनापति ने जालौर किले में उपस्थित होकर मानसिंह को जोधपुर नरेश भीमसिंह की मृत्यु का समाचार सुनाते हुए अनुरोध किया कि भीम सिंह के बाद आप ही राज्य के उत्तराधिकारी है अत: जोधपुर चलिए और राजगद्दी पर बैठिये|

चूँकि राजा भीमसिंह के कोई संतान नहीं थी और आपकी गृह कलह में जोधपुर राजपरिवार के लगभग सदस्य मारे जा चुके थे अत: जीवित बचे सदस्यों में मानसिंह ही जोधपुर की राजगद्दी के हक़दार बन गए| एक दिन पहले तक जिस बड़े भाई की सेना से दुश्मन सेना की भांति टक्कर ले रहे थे वही मानसिंह महाराजा भीमसिंह की मृत्यु का शोक मना छोटा भाई होने का कर्तव्य निभा रहे थे|

जो सेना मानसिंह के खून की प्यासी थी जिसे मानसिंह के वध के लिए वर्षों से जालौर किले की घेराबद्नी के लिए तैनात किया गया था भाग्य का खेल देखिये कि उसी सेना का सेनापति इंद्रराज सिंघवी जालौर किले में मानसिंह से जोधपुर चलकर राजगद्दी पर बैठने का आग्रह कर रहा था और मानसिंह उसे कह रहे थे- “मैं तुझ पर कैसे भरोसा करूँ ?” और कल तक मानसिंह के खून का प्यासा वही जोधपुर का सेनापति उस दिन मानसिंह को सुरक्षा देने के वचन निभाने का भरोसा दिलाने के लिए कसमें खा रहा था|

आखिर सेनापति ने मानसिंह के कहे अनुसार जोधपुर के राज्य के कुछ प्रभावशाली सामंतों को बुलाया और उनके द्वारा सुरक्षा के प्रति आश्वस्त करने व उनका समर्थन मिलने के बाद मानसिंह ने जोधपुर आकर राज्य की गद्दी संभाली व चालीस वर्ष तक राज्य किया|

जो व्यक्ति जोधपुर जैसे राज्य के ख़्वाब देखना तो दूर अपनी छोटी सी रियासत व जालौर किले को अपने नियंत्रण में रखने को जूझ रहा था उसका भाग्य देखिये कि उसका वह किला तो बचा ही साथ ही परिस्थितियों द्वारा ली गयी करवट ने उसे जोधपुर राज्य का महाराजा बना दिया|

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6टिप्पणियाँ

  1. समय बड़ा बलवान, उसका मान करना चाहिये।

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  2. प्रारब्द में लिखे हुए को टाला नहीं जा सकता ।सुर्ववंशी राजा हरिश्चन्द्र ने प्रराब्द ने अनुसार अपना राज्य ,पत्नी,पुत्र तक गँवा दिया था ।

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  3. वक्त अपने हिसाब से ही चलता है.

    रामराम.

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  4. we got lesson that we should hard work till last time and wait and watch

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  5. वक़्त से ज्यादा शक्तिशाली कोई नहीं | बहुत खूब लिखा आपने | आभार

    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
    Tamasha-E-Zindagi
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