राजस्थान के सूखे मेवे : केर, सांगरी, कुमटिया

Gyan Darpan
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राजस्थान में वर्षा की कमी व सिंचाई के साधनों की कमी की वजह से हरी सब्जियों की पहले बहुत कमी रहती थी वर्षा कालीन समय में जरुर लोग घरों में लोकी,पेठा आदि उगा लिया करते थे व ग्वार, मोठ की फली आदि खेतों में हो जाया करती थी पर वर्षा काल समाप्त होने के बाद सब्जियों की भयंकर किल्लत रहती थी| हालाँकि आज सिंचाई के साधनों व यातायात के साधन बढ़ने के चलते अब पूर्व जैसी परिस्थितियां नहीं है| पर पहले सब्जियों के मामले में राजस्थानी गृहणियों को बहुत कमी झेलनी पड़ती थी|

प्रकृति ने राजस्थान में ऐसे कई पेड़ पौधे उगाकर राजस्थान वासियों की इस कमी को पूरा करने के लिए केर, सांगरी व कुमटिया आदि सूखे मेवों की उपलब्धता करा एक तरह से शानदार सौगात दी| प्रकृति की इसी खास सौगात के चलते राजस्थानवासी अपने घर आये मेहमानों के लिए खाने में सब्जियों की कमी पूरी कर “अथिति देवो भव” की परम्परा का निर्वाह करने में सफल रहे|
राजस्थान में उपलब्ध ये तीन फल ऐसे है जिन्हें सुखाकर गृहणियां सब्जी के लिए वर्ष पर्यन्त इस्तेमाल करने लायक बना इस्तेमाल करती रही है और अब भी करती है| आज इन तीनों सूखे मेवों से बनी सब्जी जिसे “पंच-कूटा” कहा जाता है, राजस्थान में शाही सब्जी की प्रतिष्ठा पा चुकी है| खास मौके हों, या किसी बढ़िया होटल का मेनू हो उसमें यह सब्जी नहीं तो मानों कुछ भी नहीं| क्या है ये तीनों सूखे मेवे ? और किन पेड़ पौधों से प्राप्त होते है ? आज इसी विषय पर चर्चा करते है-
केर : केर नाम की एक कंटीली झाड़ी रेगिस्तानी इलाकों में बहुतायत से पाई जाती है इस पर लगे छोटे छोटे बेरों के आकर के फल को ही केर कहते है| केर को वनस्पति विज्ञान में Capparis decidua कहते हैं. इसे आप चेरी ऑफ़ डेजर्ट भी कह सकते है| पंजाब आदि कई जगह इसे टिंट भी कहते है|

यह फल कडवा होता है इसलिए इसे खाने योग्य बनाने के लिए इसे मिटटी के एक बड़े मटके में पानी में नमक का घोल बनाकर उसमें इसे कई दिनों तक डुबोकर रखा जाता है जिससे इसका कड़वापन ख़त्म होकर खट्टा मीठा स्वाद हो जाता है| तत्पश्चात इसे सुखाकर वर्ष पर्यन्त इस्तेमाल हेतु संग्रह कर लिया जाता है|

इसका बिना सुखाये भी आचार व सब्जी बनाकर सेवन किया जा सकता है| राजस्थान में आचार बनाने के लिए यह लोगों की पहली पसंद है| आजकल बाजार में सुखा केर उपलब्ध रहता है|

सांगरी : खेजड़ी या खेजडे का पेड़ राजस्थान के अलावा भी देश के कई राज्यों में पाया जाता है पर इसकी महत्ता जितनी राजस्थान में समझी जाती है वह अन्य राज्यों में नहीं| खेजड़ी का पेड़ बड़ा व मजबूत होता है इसे पनपने के लिए कम पानी की आवश्यकता होती है|

इस पेड़ पर लगने वाली हरी फलियों को ही सांगरी कहा जाता है| यदि इन फलियों को कच्चा तोडा ना जाय तो ये पकने के बाद खाने में बड़ी स्वादिष्ट लगती है| सुखी पकी फलियाँ जिन्हें राजस्थान वासी खोखा कहते है हवा के झोंके से अपने आप धरती पर गिरते रहते है जो बच्चों के साथ ही बकरियों का भी मनपसंद भोजन है|

खेजड़ी के पेड़ पर लगी इन्हीं फलियों रूपी सांगरियों को कच्चा तोड़कर उबालकर सुखा लिया जाता है| सुखी फलियों को सूखे केर व कुमटियों के साथ मिलाकर स्वादिष्ट शाही सब्जी तैयार की जाती है| ताजा कच्ची सांगरी से भी स्वादिष्ट सब्जी बनाई जाती है पर उसकी उपलब्धता सिर्फ सीजन तक ही सीमित है|

कुमटिया : यह भी एक पेड़ होता है जिसकी फलियों को सुखाकर उनमें से बीज निकालकर उनका सब्जी के लिए प्रयोग किया जाता है|
प्रकृति द्वारा उपलब्ध कराई गयी इन सौगातों की बदौलत राजस्थान की गृहणियां अथिति सत्कार की परम्परा निभाने व अपने घर में स्वादिष्ट व स्वास्थ्यवर्धक सब्जियां उपलब्ध कराने में आजतक सफल रही है| इन तीनों को मिलाकर बनाई सब्जी को पंच-कुटा की सब्जी कहा जाता है| इसकी बनाने की विधि अगले किसी लेख में दी बताई जायेगी|

राजस्थान के इन तीनों सूखे मेवों से बनी सब्जियां स्वादिष्ट होने के साथ ही पेट के रोगों को ठीक करने में भी रामबाण औषधियां है| साथ ही इनका सेवन किसी भी मौसम में कभी भी किया जा सकता है|
केर, कुमटिया, सांगरी की महिमा का बखान स्व. आयुवान सिंह शेखावत ने अपने राजस्थानी काव्य “हठीलो राजस्थान” में इन शब्दों के साथ किया है-

सट रस भोजन सीत में,
पाचण राखै खैर |
पान नहीं पर कल्पतरु ,
किण विध भुलाँ कैर ||


(जिस फल के प्रयोग से ) सर्दी के मौसम में छ:रसों वाला भोजन अच्छी तरह पच जाता है | उस कैर (राजस्थान की एक विशेष झाड़ी) को किस प्रकार भुलाया जा सकता है जो कि बिना पत्तों वाले कल्पतरु के समान है |

कैर,कुमटिया सांगरी,
काचर बोर मतीर |
तीनूं लोकां नह मिलै,
तरसै देव अखीर ||


कैर के केरिया , सांगरी (खेजडे के वृक्ष की फली) काचर ,बोर (बैर के फल) और मतीरे राजस्थान को छोड़कर तीनों लोकों में दुर्लभ है | इनके लिए तो देवता भी तरसते रहते है |

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17टिप्पणियाँ

  1. लाजवाब प्रस्तुति..इनकी लोकप्रियता का अंदेशा इसी से लगाया जा सकता है की यंहा के प्रवासी व्यापारी राजस्थान में आने पर इनको चाव से बनवाते है व् साथ लेकर जाते है ।

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  2. Ratan singh ji , aapne Khelara va Phopalia ka jikar nahi kiya. Kya vo Dry vegitables main nahi aati?

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    1. संजय जी
      इनके बारे में लिखना ध्यान से निकल गया| याद दिलाने के लिए आभार |

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  3. बहुत बढ़िया जानकारी मिली ... सादर !


    आज की ब्लॉग बुलेटिन क्योंकि सुरक्षित रहने मे ही समझदारी है - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  4. हां आज ये शाही डिश है, साल भर का सामान गांव से आजाता है इस लिये आज भी इनका आनंद लेने का अवसर मिल ही जाता है. पोस्ट में चित्र दिखाई नही देरहे हैं, जरा चेक कर लिजियेगा.

    रामराम.

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    1. ताऊ जी
      आपके ब्राउजर में कोई दिक्कत हो सकती है दिन में चार कंप्यूटर पर अलग अलग खोलकर देखा था सबमे चित्र बढ़िया दिख रहे है |

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  5. राजस्थान में रहते हुए केर की सब्जी और अचार तो खूब खाया है बाकी का याद नहीं.वैसे राजस्थानी व्यंजन सभी एक से एक होते हैं,उनका स्वाद ही निराला है .. यहाँ तक की साधारण लाल मिर्च की चटनी भी कभी -कभी बाकि सब्जियों पर भारी पड़ जाती है.

    अच्छी पोस्ट है.

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  6. हमें भी अच्छे लगते हैं ये व्यंजन ,और साथ में लहसुन-मिर्च की चटनी भी !

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  7. रहीम के बेर-केर का संग वाली बात का केर यही है शायद, मैं मानता रहा कि यह केले के लिए कहा गया होगा. खेजड़ी से परिचय देथा जी की कहानियों के माध्‍यम से हुआ. कुमटिया का स्‍वाद लिया है, लेकिन उसकी महिमा से अनजान था.

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  8. रतन जी ,आज आपने परदेसियों को भी देश की याद दिला दी। जिस शाही डिश का आपने जिक्र किया है ,ये हमारे राजस्थान की शान है। कई बार आने जाने वालों के साथ हम ये सूखे मेवे दुबई मंगवाते हैं ,और यहाँ भी बड़े चाव से बनाते खाते हैं। अब तो काफी समय के बाद इसका नाम सुना है।

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  9. मेरी टिप्पणी स्पैम में चली गई लगता है.

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  10. उत्तर
    1. भाई ! शंकर सिंह शेखावत
      पहले अपना खुद का पूरा परिचय तो दो !!

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    2. Bhai Ratan singh mujhe ye chalana nhi aata he,
      Ap facebook par ho kya,
      Name - shankar singh shekhawat
      Thikana - Chhawashri(Jhunjhnu)

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  11. कल तो श्रीमती जी कह रही थी कि थोड़ा पचकूटा ले आते हैं। सब्जी न होने पर काम आएगा।

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