चौधरी कुम्भाराम ने आशीर्वाद देते हुए कहा- बाईसा ! मैं भूख हड़ताल पर बैठा हूँ सो अन्न जल कैसे ग्रहण कर सकता हूँ ? पर रतन कँवर ने हठ करते हुए नेताजी से कहा- बाबा ! जब तक आप खाना नहीं खायेंगे तब तक घर का हर सदस्य भूखा रहेगा| आप घर के आगे भूखे बैठे है तो हम भोजन कैसे कर सकते है?
आखिर रतन कँवर बाईसा द्वारा भोजन के लिए किया गया आग्रह और उसके संस्कार देखकर चौधरी कुम्भाराम जी गहरे सोच में पड़ गए| एक तरफ उनका भूख हड़ताल का निर्णय टूट रहा था तो दूसरी और बाईसा रतन कँवर द्वारा निभाया जाने वाला गृहस्थ धर्म टूटता नजर आने लगा| और कुछ देर सोच विचार कर नेता चौधरी कुम्भाराम उठकर रतन कँवर बाईसा के पीछे पीछे भूख हड़ताल त्याग कर भोजन करने चल पड़े| और घर के सभी सदस्यों ने नेताजी के साथ बैठकर भोजन किया|
इस प्रकार एक पिता के आगे आने वाले राजनैतिक संकट का एक पुत्री द्वारा सिर्फ अपने संस्कार के चलते चुटकियों में समाधान हो गया|
इस घटना और बाईसा रतन कँवर के संस्कारों का राजस्थानी भाषा के मूर्धन्य साहित्यकार श्री सौभाग्य सिंह जी ने ३० मार्च २००४ को लिखे अपने काव्य शब्दों में इस प्रकार वर्णन किया है---
किणी बात पर एक दिवस, मुख्य मंत्री आवास
कपड कोट उभो कियौ, नीम छावली पास |
नीम छावली पास, चौधरी नामी कुंभाराम
तख्ती भूख हड़ताल लगा, अर मन धरणा की धाम |
चेला चांटी चार दस, सेवागर कुछ और
सूरज किरण धर पर पड़त, समै सुहानो भौर ||
मुख्य मंत्री आवास पर, मिलण भेंट मन धार |
मिलण भेंट मन धार, कै गांव नगर रा लोग
अरजी गरजी सिकायती, आप आप उद्योग |
एक बजे रै आसरै, भोजन हुवौ तैयार
धोक देय बोला मुखै, रतन कँवर जी आर |
चालो बाबा जीमने, भोजन हुवौ तैयार
चौधरी जी सुभ आसीस दे, हरख जतायो हेत |
बाईसा मैं अनसन अठे, अनजल किणविध लेत
ग्रहस्थ धर्म री बात कह, मन में हेत विचार |
बाईसा मुख मुख बोलिया, जीमो घरै पधार
जीमो घरै पधार, भाभूसा अर बाल सब, करै आप इंतजार |
आप जिमियां जीमसी, करसी साथ आहार ||
हठ भरियो आग्रह अटल, गहरो करै विचार
चौधरी जी धरनो तजै, चलै बाईसा लार |
संस्कार अर संस्कृति, मात पिता रै लार
घरै पिता रै सीख कर, करै आपरै द्वार |
हंसी खुसी भोजन करै, लेय सुपारी पान
आसिस देता घर गया, पाय अनुठौ मान |
पांच मख नित प्रत ध्रम, हिन्द देस आचार
अतिथि वटुक संत जण, जिमावै सत्कार |
खीर पुडी अर चूरमौ, अमरस प्याला चार
धाया धापा धड़ीग व्हे, खुस खुस गया पधार ||
बाबा चालो जीमल्यौ, टालौ मत मनुहार |
सागै बैठ’र जीमिया, लगा एक ही पांत
महामहिम इम पा लियो, राज ध्रम उदात |
सुणी जिका हरखित हुआ, चली चौखालै काथ
सुख सम्पति सारी सदा, अन बन धीनो धाप|
सुहाग भाग क्रोड़ा बरस, रहै अखंडित आप ||
किणी = किसी , कपड कोट = तम्बू, शामियाना, समै = समय, धोक = पैर छूकर प्रणाम करना, जीमणे = भोजन करने, बाईसा = राजस्थान में लड़कियों को बाईसा संबोधित किया जाता है, किणविध = किस तरह, जीमो= भोजन करो, भाभूसा = माता जी के लिए संबोधन, जीमसी=खाना खायेंगे, लार = पीछे, जीमावै = खाना खिलाना, धाया धप्पा = भर पेट, विवहार = व्यवहार, हरखित = प्रसन्न
very nice
जवाब देंहटाएंसुचना ****सूचना **** सुचना
जवाब देंहटाएंसभी लेखक-लेखिकाओं के लिए एक महत्वपूर्ण सुचना सदबुद्धी यज्ञ
सच में पढ़ कर अभिभूत हो गये, संस्कृति का आत्मीय पक्ष।
जवाब देंहटाएंप्रेरक आलेख !!
जवाब देंहटाएंयही राजस्थान की परंपरा है जिसकी वजह से संस्कारों में आज भी शिरमौर है, बहुत सुंदर और सहेजने लायक आलेख.
जवाब देंहटाएंरामराम.
.आथित्य की परम्परा तथा अपनत्व की भावना का बहुत सुन्दर उदहारण संस्कारों की एक अच्छी मिसाल
जवाब देंहटाएंजय हो ... जय हो !
जवाब देंहटाएंआज की ब्लॉग बुलेटिन आम आदमी का अंतिम भोज - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
हटाएंयह कर्मा बाई की धरती है जहा मनुहार करने पर भगवान स्वय भोजन करने आये थे
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्क्ति है सा
बहुत शानदार तरीके से उस घटनाक्रम को कविताबद्ध किया है।
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