देश-धर्म इस राष्ट्र को मत जकड़ो जंजीरों में ।
इसके वैभव के लिए, गला कटाया है यहाँ, असंख्य वीरों ने ।
सरहद पर बैठा हरवक्त रक्षक, उसको भी याद रखो हरदम ।
शीत-ग्रीष्म के मौसम में वो ताने खड़ा संगीन वहां ।
तुम संसद में लड़ते हो, गीदड़ की भांति यहाँ ।
क्या कभी कहा किसी नेता ने, पुत्र अपना हम भी सरहद पर भिजवाएंगे ।।
भ्रष्टाचार-दुराचार की प्राकाष्ठित सीमा पार हुई |
रोज देख समाचार-पत्रों को, माँ भारती अब शर्म सार हुई ।
इसकी गौरव कीर्ति का कुछ तो तुम सम्मान करो |
दूषित राजनीति के लश्कर से मत बांधो प्राचीरों को ।
मत उकसाओ धर्म वाद पर, ना बांटों मंदिर-पीरों को ।
बहुत सुंदर भाव हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत लाजबाब भावपूर्ण प्रस्तुति,,,गजेन्द्र जी , बधाई
जवाब देंहटाएंrecent post: कैसा,यह गणतंत्र हमारा,
इतने बलिदानों को जब व्यर्थ जाते देखता है तो मन की पीड़ा ऐसे ही बहती है।
जवाब देंहटाएंबलिदानी वीरों के लिए सुन्दर गीत।
जवाब देंहटाएंबहुत ही उत्क्रष्ट रचना
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