एक पत्र दिल्ली पुलिस के नाम

Gyan Darpan
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प्रिय दिल्ली पुलिस,

राजधानी में पिछले कुछ महीनों में हुए आन्दोलनों से निपटने के तुम्हारे वैज्ञानिक तरीकों व कार्यपद्धति को लेकर देश में तुम्हारे खिलाफ काफी रोष है खास कर दिल्ली का पिज्जा बर्गर कल्चर और मोमबत्ती ब्रिगेड तुमसे कुछ ज्यादा ही खफा है| और हो भी क्यों नहीं? आखिर उन्हें तुमने अन्ना आंदोलन को एन्जॉय करने के उलट दूसरे आन्दोलनों पर लट्ठ बरसा आंदोलन एन्जॉय जो नहीं करने दिए| तुम्हारे द्वारा पहले बाबा के आंदोलन में सोते हुए लोगों पर लट्ठ और आंसू गैस के गोले दागने और अब बलात्कार कांड के बाद विरोध कर रहे युवाओं पर इसी तरह के बल प्रयोग करने, बलात्कार पीड़ित का बयान लेने पहुंची मजिस्ट्रेट के साथ बदसलूकी और अपने सिपाही की मौत का बदला लेने के लिए तुम्हारे द्वारा अपनाये हथकंडे पर लोग तुम्हारे ऊपर संवेदनहीन होने व तानशाह होने जैसे आरोप लगा रहें है| पर किसी ने तुम्हारे द्वारा इन आन्दोलनों व मामलों में अपनाये गए मनोविज्ञान को समझने की जहमत नहीं उठाई कि तुम इस तरह के कुकृत्यों से क्या सन्देश देना चाहती हो?

पर प्रिय दिल्ली पुलिस लोग तुम्हारे ऊपर कुछ भी आरोप लगाये मैं तुम्हारे पक्ष में हूँ आखिर होऊं भी क्यों नहीं? क्योंकि मैंने तुम्हारे कुकृत्यों के उस पक्ष को भी समझा है जो आजतक दूसरे लोग नहीं समझ पाये| जैसे –

तुम्हारी संवेदनहीनता में छुपा सन्देश

बाबा रामदेव के आंदोलन और अब बलात्कार कांड के खिलाफ हुए आंदोलन में तुमने जो सख्ती दिखाई लड़कों, लड़कियों, औरतों, बुजुर्गों को घेर घेर कर डंडे मारे, एक्सपाइर तारीख के गैस के गोले छोड़े, फेसबुक पर अपलोड आंदोलन के कई चित्रों में देखा कि कुछ छात्रों को तुम्हारे बहादुर अफसर घेर कर अपने पैरों से उनका गला दबा कुचलकर अपनी वीरता का प्रदर्शन कर रहे है| तो आम लोगों की तरह मेरे मन में भी तुम्हारे खिलाफ रोष उत्पन्न हुआ पर अगले ही क्षण जैसे ही मेरे ज्ञान चक्षु खुले तो समझ आया कि आंदोलन को इस तरह कुचलने के पीछे भी तुमने आतंकवादियों को एक मनोवैज्ञानिक सन्देश दिया है कि- हे विदेशी आतंकियों! हम अपने नागरिकों को ऐसे कुचल सकते है तो तुम्हारा क्या हाल करेंगे? समझ लो|

पर अफ़सोस तुम्हारे इस कुकृत्य में किसी को तुम्हारा ये छुपा सन्देश नहीं समझ आया| मेरा तो यहाँ तक मानना है कि आज दिल्ली आतंकवादियों से सुरक्षित है तो तुम्हारे इसी तरह के संवेदनाहीन कुकृत्यों को देखकर आतंकियों के मन में बैठे डर की वजह से| वो बात अलग है कि मौत से नहीं डरने वाले कुछ सिरफिरे आतंकवादियों का संसद तक पर हमला तुम नहीं रोक पायी पर इसमें तुम्हारी गलती भी क्या? तुम तो आतंकियों पर सिर्फ मनोवैज्ञानिक दबाव ही तो डाल सकती हो| जो तुमने बखूबी डाला भी|

मजिस्ट्रेट विवाद

बलात्कार पीडिता का बयान लेने पहुंची मजिस्ट्रेट पर तुम्हारे द्वारा अपने हिसाब से बयान लेने के लिए दबाव डालने वाले मुद्दे पर भी लोग तुम्हारी मंशा ठीक से नहीं समझ पाये कि तुम बलात्कारियों को अपने हिसाब से सख्त सजा दिलवाने के लिए पहले ही तैयारी किये बैठी हो जिसे एक मजिस्ट्रेट की गलती से पलीता लग सकता था| आखिर मजिस्ट्रेट अकेली बयान लेती हो सकता है वह कोई गलती कर बैठती जबकि तुम्हारे कई कुख्यात अफसरों ने बड़ी मेहनत के बाद पहले ही कार्यवाही कैसे करनी की स्क्रिप्ट लिखकर तैयार थे उन्होंने जो सवाल तैयार कर रखे थे जिनका हो सकता है पीडिता भी बिमारी की हालात में कोई गलत बयान दे बिगाड़ा कर सकती थी| इसलिए इस मामले में भी तुम्हारी आलोचना निहायत ही गलत है|

शहादत भुनाने पर भी आरोप

अब देखो ना कि आंदोलन में शहीद हुए तुम्हारे सिपाही की मौत का तुमने आंदोलन कुचलने में फायदा उठाने की कोशिश की वो भी लोगों को अखरा| मीडिया भी इस मामले में बहुत चिल्लपों कर रहा है| पर मैं इस मामले में तुमने जो कारवाही की है उसे गलत नहीं मान रहा बेशक तुम्हारा सिपाही किसी हमले से नहीं हार्ट अटैक से शहीद हुआ हो| अब देखो ना जब किसी राजनैतिक दल का कोई कार्यकर्त्ता कभी कहीं दुर्घटनावश मर जाता है तो वह राजनैतिक दल उसकी लाश को सड़क पर रख उसके पीछे पुरी राजनीति करता है| यदि कार्यकर्त्ता की जगह कोई नेता मर जाए और चुनाव का वक्त हो तो समझो पार्टी की लाटरी निकल गई और राजनैतिक दल अपने नेता की मौत को शहादत प्रचारित कर चुनाव की वैतरणी ऐसे पार कर लेते है जैसे साधारण नाव की अपेक्षा मोटरबोट से कोई झट से नदी पार कर लेता हो या सीढियाँ चढ़ने के स्थान पर लिफ्ट से छत पर झट से चढ़ जाता हो ठीक उसी तरह राजनैतिक दल अपने नेता की मृत्यु का फायदा उठाते हुए सत्ता के शिखर पर पहुँच जाते है तो तुम अपने एक सिपाही की हार्ट अटैक से हुई शहादत को तुम्हारे सामने हो आंदोलन को दबाने व बदनाम करने में क्यों नहीं भूना सकती? अब तुम्हारे आगे कोई चुनाव जीतने का लक्ष्य तो है नहीं आखिर तुम्हारा लक्ष्य तो आंदोलन को कुचलना ही तो है| इसीलिए तुम्हारा ये कुकृत्य भी मेरी नजर में कहीं भी गलत नहीं है| बल्कि मैं तो तुम्हारे उन अफसरों को सेल्यूट करता हूँ जिन्होंने सिपाही की शहादत को आंदोलन दबाने में औजार की तरह इस्तेमाल करने की रणनीति में शामिल करने के लिए दिमाग लगाया और इलाज करने वाले डाक्टर के बयान के उलट दूसरी जगह पोस्टमार्टम करवा कर अपनी मनपसंद रपट बनवा ली| मैं तो कहता हूँ इस कृत्य से तेरे अफसरों ने राजनेताओं को भी पीछे छोड़ दिया ऐसे अफसर तो आगामी किसी समारोह में सम्मानित होने के अधिकारी है|

महान सेकुलर भी हो तुम

दिल्ली के सुभाष पार्क में तुम अवैध निर्माण नहीं ढहा पाई और वहां शांतिप्रिय धर्म के लोगों द्वारा किये शांतिपूर्ण विरोध में तुम्हारे कई सिपाही बेचारे घायल हो गए पर उन्होंने पत्थर फैंककर शांतिपूर्वक हमला कर रही भीड़ के ऊपर अपना डंडा तक नहीं उठाया| लोगों ने इसे तुम्हारी बुजदिली कहा और तुम्हारी बुजदिली के लिए फेसबुक के पन्ने भर डाले पर उन्होंने उस प्रकरण में भी नासमझों ने तेरा संदेश ना समझा| बस मेरी अल्प बुद्धि ने तुम्हारे उस सन्देश को समझ लिया कि उस प्रकरण में अपने सिपाहियों को पिटवाकर और भीड़ पर प्रतिघात नहीं कर तुमने अपने आपको महान सेकुलर साबित किया| अब तक अपने आपको महान सेकुलर दिखाने की होड सिर्फ राजनैतिक दलों में ही थी पर तुमने तो उनको भी पीछे छोड़ दिया| सुभाष पार्क में तुम्हारे सिपाही पिटते गए पर भीड़ पर वे चाह कर भी तुम्हारा दिया सेकुलर डंडा उठा नहीं सके| इस तरह तुम्हारे द्वारा दिखाई गई महान सेकुलरता को मैं बारम्बार नमन करता हूँ|

कितनी चिंतित हो तुम सुरक्षा के लिए

तुम्हारे द्वारा आम आदमी की सुरक्षा के लिए नित्य किये जाने वाले बंदोबस्त देखकर ही मैं तुम्हारा फैन बना हूँ| दिल्ली की सड़कों पर तुम्हारे कितने सिपाही अफसर हमारी सुरक्षा के लिए तैनात रहते है, बेरियर लगाकर वाहनों की सघन चैकिंग करते है, वाहनों के कागजात में कमी रखने वालों के चालान काटे बिना उनसे कुछ रूपये लेकर उन्हें अर्थ दंड दे सबक सिखाते है| लोग तुम्हारे इस कार्य को भी उगाही के लिए किया जाना बताते है पर वे यह नहीं समझते कि यह थोड़ा सा सुविधा शुल्क उन्हें चालान भुगतने के लिए न्यायालय में लगने वाले चक्करों से तो मुक्ति दिलाता ही है साथ ही जेब ढीली होने पर आगे से ट्रैफिक नियमों का पालन करने हेतु भी बाध्य करता है| यह भी तो देश हित ही तो है फिर तुम्हारे सिपाही इस तरह की गई उगाही को कौनसे स्विस बैंक में जमा करवाते है वे इस उगाही से शाम को शराब पीने व मुर्गा खाने में खर्च कर हमारी घरेलु अर्थव्यवस्था को सहारा ही तो देते है पर यह बात आम लोगों को समझ आये तब ना| आखिर आये भी कैसे अब देश का हर कोई नागरिक प्र.म.जी की तरह अर्थशास्त्री तो है नहीं|

चूँकि तुम्हारे सिपाही सड़कों पर बैरियर लगाकर थोक में आती मोटर साईकिल व छोटी कारों की चैकिंग में व्यस्त रहते है और आतंकी बड़ी कारों में आकर या टोल फ्लाई ओवर्स पर टोल चुकाकर फर्राटे से दिल्ली में घुस वारदात कर देते है तो इसमें तुम्हारी क्या गलती? यदि इस तरह की वारदात होने पर कोई तुम्हे गलत ठहरता है तो वो उसे ज्ञान ही नहीं कि ये सब जन-संख्या वृद्धि की वजह है तुम या तुम्हारी विफलता नहीं| आखिर बड़ी कारों को चैकिंग के नाम पर तुम रोक भी तो नहीं सकती क्या पता किस बड़ी कार में कौन बड़ा आदमी निकल आये?

दिल्ली में जगह जगह लगने वाले जाम की वजह से भी लोग तुम्हें कोसते है कि यहाँ कोई पुलिस सिपाही होता तो जाम नहीं लगता पर उन्हें कौन समझाए कि तुम्हारे सिपाही बेचारे वही सड़कों पर छिप कर ट्रैफिक रुल तोड़ने वालों पर कड़ी व पैनी नजर रखे है अब वे ट्रैफिक रुल तोड़ने वालों को पकडे या चौराहों पर खड़े होकर ट्रैफिक कंट्रोल कर जाम से लोगों को मुक्ति दिलाए ?

इसलिए हे प्यारी दिल्ली पुलिस तुम अपने कार्य को अपने हिसाब से अंजाम देती रहो| लोग क्या आरोप लगाते है उसकी परवाह मत करो| बस सरकार कैसे खुश होगी उसी पर ध्यान रखो, उसी में तुम्हारी व तुम्हारे अधिकारियों की भलाई है| तुम तो अपने अधिकारियों को ठीक वैसे ही छूट देकर रखो जैसे एनकाउंटर कर पदोन्नति के लिए तुमने सुविधा दे रखी थी| यदि एक आध अफसर समय पूर्व पदोन्नति पाने के लिए फंस भी गया तो क्या फर्क पड़ने वाला है जैसे एक अफसर ऐसा ही लाभ लेने के चक्कर में व्यापरियों की कार पर हमला कर उनकी हत्या कर फंस गया था|

तुम्हारा
शुभचिंतक

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18टिप्पणियाँ

  1. देश भक्ति जनसेवा
    दे बत्ती पा मेवा।

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  2. सही कहते हैं आप, दिल्ली पुलिस तो महान है। हम मूढ़ ही नहीं समझ पाये।

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  3. दिल्ली पुलिस
    महा बदतमीज
    जो चाहे करो
    --------------

    रामराम.

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  4. बुजुर्ग कहते है,,,कि पुलिस किसी की सगी नही होती,इनसे दोस्ती और दुश्मनी दोनों मंहगी पडती है,,,,

    recent post : नववर्ष की बधाई

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  5. यहा कई महानुभवो ने अपने तर्क दिये मै उनके बारे मे कुछ नही कहुगा पर पुलिस से यह काम कराने वाले भी हमारे ही लोग है और एक बार पुलिस कोई अन्‍तरयामी नही है जो हर क्राईम का उसे पहले पता चल जाये क्‍या आप और हम लोगो मे से कितने पुलिस का सहयोग करते है आज हम कैन्‍डल मार्च निकाल रहे है अच्‍छा है होना चाहिये पर हम उसे क्‍या कहेगे जब एक व्‍यक्ति को सरेआम मारा जाता है और हम बेबस उसका सहयोग करे बिना मूक दर्शक बने रहते है तब हमारी भावनाये कहा चली जाती है क्‍या उसमे हम दोषी नही है यहा पर सभी को समझने और कुछ करने की जरूरत है किसी एक पर दोष मडना सही नही
    यहा लेखक महोदय से कहूगा की मेरे कमेन्‍ट को आप हटा सकते है पर जो विचार मेने व्‍यक्‍त किये है उनके कही ना कही सत्‍यता जरूर है

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    उत्तर
    1. मै आपकी बात से भी सहमत हूँ ब्रदर। आप पुलिस वाले हैं हम आपकी भावनाओं की भी कद्र करते हैं। हर जगह पुलिस ही गलत नही होती।

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    2. विनोद जी
      1-पहली बात तो आपका कमेन्ट कैसा भी हो डिलीट नहीं होगा यहाँ सबके विचारों का स्वागत है|
      2- मानता हूँ पुलिस अंतर्यामी नहीं जो उसे अपराध का पहले पता चल जाये पर पता चलने के बाद तो ईमानदारी से उसकी जड़ तक पहुँचने की ड्यूटी तो निभाई जा सकती है|
      3- पुलिस को किसी नागरिक द्वारा सहयोग न करने के पीछे भी पुलिसियों द्वारा किया जाने वाला गलत व्यवहार ही जिम्मेदार है|
      4- जहाँ तक पुलिस द्वारा आदेश के अनुसार कार्य करने की बात है तो वो गलत नहीं मान लीजिये पुलिस को हल्का बल प्रयोग का आदेश मिला और उसने हल्का बल प्रयोग किया तब तक ठीक है पर एक युवक या युवती को घेर कर पीटना कहाँ की संवेदना है? ऊपर चित्र में आप पुलिसिया संवेदना का उदाहरण देख सकते है|
      5- दिल्ली में मैं रोज देखता हूँ चैकिंग के बहाने सिर्फ बाइक सवारों को उस वक्त परेशान किया जाता है जब वे सुबह अपनी ड्यूटी पर जा रहे होते है और पांच दस मिनट की देरी ही उनका ड्यूटी पर हाफ डे लगावाने के लिए काफी है| और इसका फायदा पुलिस वाले उगाही करने में उठाते है|
      ६- दिल्ली में जितनी अवैध बसे चलती है वे पुलिस को मंथली एंट्री फी चुकाकर ही चलती है उन्हीं में ज्यादातर ड्राइवर कंडक्टर अपराधी होते है!
      ७- और भी बहुत सारे कारण है जो पुलिस कार्यप्रणाली के खिलाफ रोष होने के पक्के कारण है और उसके जिम्मेदार पुलिस कर्मी ही है|
      ८- किसी भी पीडित के बयान स्वतंत्र रूप से मजिस्ट्रेट लेता है पर दामिनी के बयान लेंते समय मजिस्ट्रेट के साथ बदसलूकी कर पुलिस क्या संदेश देना चाहती थी ?
      9- पुलिस की कार्यवाही में कई आन्दोलनकारी मरते है साथ ही कभी पुलिसकर्मी भी मर सकते है तो सुभाष तोमर की हार्ट अटैक की मौत के बावजूद भी कुछ युवकों को हत्या में क्यों फंसाया गया ? क्या पुलिसिया हथकंडा नहीं ?

      हटाएं
  6. शेखावत जी यह बात तो मे पूर्व मे हि लिख चुका हू कि दोनो पक्षो मे गलतीया है मै मानता हू कि हर पुलिस का व्‍यवहार अलग होता है और किसी एक गलत व्‍यवहारी के कारण सभी पुलिसकर्मी की छवी खराब हो जाती है एक बात तो है कि यह हम सही होगे तो सभी सही होगे ज‍ब हम सभी कागजात रखेगे तो कोई हमे परेषान नही करेगा और जो करत है वह गलत है जिसकी शिकायत उच्‍चाधिकारीयो को की जा सकती है मे स्‍वम इसके तरह के अवेध वसूली के खिलाफ हू

    आज से करीब 1 साल पूर्व नक्‍सलीयो द्वारा करीब 80 पुलिसकर्मीयो को मौत के घाट उतारा गया था वो सभी वहा पर अपने जमीन की या पारीवारिक लडाई नही लडने गये थे वो हम सभी भरतीयो की लडाई लड रहे थे या उस समय देश वालो को उनके प्रति सहानुभूती नही दिखानी चाहिये थी साहब जी आलम यह है कि उन मरने वाले पुलिसकर्मीयो के बच्‍चो तक को सरकारी नोकरी प्राप्‍त करने के लिये दफतरो के चक्‍कर लगाकर जाने कितनी चप्‍पलो को तोडना पडेगा इसलिये हम सभी को भ्रष्‍टाचार को मिटाने का कार्य करना चाहिये बिना किसी पर दोष मडे
    और शेखावत जी आपने मेरे विचारो पर जो स्‍वम केविचार व्‍यक्‍त किये उनका धन्‍यवाद आशा है आप मेरे विचारो को अन्‍यथा नही लेगे मेरे ये विचार किसी व्‍यक्त्‍िा विशेष या वर्ग विशेष के लिये नही है

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  7. आमिर जी मे माना पुलिस वाला हू पर गलत कार्य को हरगीत सहन नही करता हॅ मै पुलिस वाले से पहल एक आम नागरीक हू जो भ्रष्‍टाचार को जड से मिटाना चाहता हू खासकर इस विभाग से पहले

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    1. विनोद जी
      1- सभी पुलिसकर्मी एक जैसे नहीं होते ये मैं भी मानता हूँ पर वे जिस व्यवस्था के अधीन है उसके खिलाफ भी नहीं जा सकते|
      2- नक्सलियों के हाथो मारे जाने वाले कर्मियों के प्रति हमारी भी संवेदना उतनी ही है जितनी आपकी| क्योंकि मेरे भी परिवार के कई सदस्य व कई मित्रगण पुलिस सेवा में कार्यरत है| उनकी प्रॉब्लम भी मुझे पता है|
      3- पुलिसकर्मी जिन हालातों में ड्यूटी करते है वो मुझसे छुपी नहीं है पर बात संवेदना की है जैसा कि ऊपर चित्र में देख रहे है एक अधिकारी किस तरह एक लड़के को पैर से कुचल रहा है ! इसकी जगह इसका बेटा कुचला जाता तो इसे कैसे लगता ?
      यदि बलप्रयोग करते वक्त यदि कोई आन्दोलनकारी पुलिस से घिर जाये तो मारने के बजाय गिरफ्तार करना चाहिए शायद यही कानून कहता है|
      4- नाकाबंदी कर वसूली करने वाले पुलिसकर्मियों का दोष इतना ही है कि वे बिना कागजात वाले वाहन चालकों का चालान नहीं काटकर अपनी जेबें भरने में लगे रहते है| इसका उदाहरण - पिछले ८ दिसंबर को मुझे दिल्ली पुलिस ने रोका, मैंने अपने वाहन के कागजात निकाले तो पोल्यूशन सर्टिफिकेट की तारीख निकल चुकी थी| पुलिसकर्मी ने कहा कोर्ट का चालान कटेगा| मैंने कहा- काट दे और बता कितनी पैनल्टी देनी है |
      पर उसने मेरे द्वारा चार बार पूछे जाने के बाद भी पैनल्टी नहीं बतायी बस मुझे डराता रहा कि- बहुत ज्यादा है| ताकि मैं सौदेबाजी कर उसे कुछ रूपये दे निकल लूँ|
      पर मैं अड़ गया कि- चालान काट कर तू अपनी ड्यूटी निभा |
      तब उसने मुझे पूछा काम क्या करते है और जैसे सुना कि मैं पत्रकार हूँ मुझे पेपर सौंप कर कहा -भाई साहब जाईये| जबकि उसको मेरा चालान काटना चाहिए था जबकि उसके बाद भी मैं कहता रहा कि चालान काट दे ताकि आगे से इस तरह की लापरवाही ना करूँ पर मैं उन्हें रोज देखता हूँ उनका मकसद सिर्फ उगाही होता है|

      हटाएं
    2. रतन जी की उगाही वाली बात पढ़ कर एक वाकिया याद आया।
      एक बार एक आदमी रोड से जा रहा था उसके पास गाड़ी के कागजात नही थे।,तो एक पुलिस वाले ने रोक दिया। तो उसने कहा सर आपको जो लेना हो ले लें लेकिन आगे जाकर फिर कुछ न देना पड़े। पुलिस वाले ने कहा की ठीक है अगर आगे कोई पुलिस वाला रोके तो कहना ''तोता''
      वो आदमी आगे गया। उसे एक पुलिस वाले ने रोका और कागजात के बारे में पूछा तो उसने कहा ''तोता'' पुलिस वाले ने कहा ठीक है जाओ।
      दुसरे दिन जब वो किसी और रोड से निकल रहा था तो फिर एक पुलिस वाले ने रोक लिया। तो उसने सोचा की कल तोता कहकर छुट गया था,आज भी कह दो। तो उसने कहा ''तोता'' पुलिस वाले ने कहा ''गाड़ी साइड में लगा दो आज ''कौवा'' है। ''

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  8. इतना देखने के बाद बस यही कहा जा सकता है कि संवेदनशीलता बनी रहे।

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  9. कुछ भी कही लेकिन पुलिस की छवि अच्छी नहीं है ये धारणा बहुत से लोगों की है . अब चाहे इसमें कुछ ही पुलिस वाले दोषी हों मगर पुरे सिस्टम को नाकारा माना जाने लगा

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  10. प्रभावी लेखन,
    जारी रहें,
    बधाई !!

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  11. नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ... आशा है नया वर्ष न्याय वर्ष नव युग के रूप में जाना जायेगा।

    ब्लॉग: गुलाबी कोंपलें - जाते रहना...

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  12. पर अफ़सोस तुम्हारे इस कुकृत्य में किसी को तुम्हारा ये छुपा सन्देश नहीं समझ आया| मेरा तो यहाँ तक मानना है कि आज दिल्ली आतंकवादियों से सुरक्षित है तो तुम्हारे इसी तरह के संवेदनाहीन कुकृत्यों को देखकर आतंकियों के मन में बैठे डर की वजह से|.......
    """"""आतंकियो से कम नहीं फिर भी सोचना चाहिए ये बेचारे तो २१ वि सदी के गुलाम है जब ये डंडा नहीं बरसाएंगे तो रोटी कैसे खायेंगे इनकी बागडोर मुकरने वाले लोग ही सम्हालते है """"
    दामिनी को श्रद्धांजली @ khotej.blogspot.in
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