आफत कांठल ऊमड़ी, आंधी संग घणघोर |
हाथ रात सूझी नयी, कुहलाया जन मोर ||१
नद नाला जल ऊफण्या, भरग्या जेल तलाव ||२
धीरज धार पाल्यो धरम, थमगो विपद बयार |
विकसी जनमन वाटिका, रौनक बाग़ बाजार ||३
रण चुनाव कंसणी हरा, सत्ता दी पलटाय ||४
कोप कंसणी कालिका, चंड प्रचंडी चाल |
लोकतंत्र मोलो पड्यो, राजनीति बेहाल ||५
बरस एक ऊपर नवम, बीता कारा मांय ||६
बरस गुणिस चालीस बे, पिता तजी जद देह |
भार पड्यो भैरव भुजां, झेल लियो कंधेह ||६
ललचायी सत्ता ललक, तुरत दियो तिण || ७
जायी जवाहर लाडली, पीरोजै ब्याही |
विपख जेल पधराविया, इंदिरा जी बाईह ||८
मोदी पीलू महतो असोक, लाल देवी ज ख़ास ||९
पटनायक बीजू पुणा, बखत सिकंदर साथ |
राजनीत रण रा रसिक, विपदा घाली बाथ ||१०
कांगरेस करतूत री, उड़गी सगलै खेह ||११
संसद सभा विधान सह, सरवर सरित समान |
जनमत मेघो बरसियो, निपज्यो सतमत धान ||१२
धन धीणों धापो- धपी, मिट्यो काल जंजाल ||१३
बहुत सून्दर प्रस्तुती
जवाब देंहटाएंरतन सिंह शेखावत जी
जवाब देंहटाएंपूर्व में हुई चर्चा के अनुसार आपके ब्लॉग से कुछ लेख को अपने दैनिक समचार पत्र भास्कर भूमि में प्रकाशित किया है। अखबार का प्रतियां आप तक भेजना चाहते है। आप अपने घर की पता भेजने की कृपा करे.......bhaskar.bhumi.rjn@gmail.com
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Hmmm ..., very good
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