खुबसूरत

pagdandi
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आज बड़े अरसे बाद वक़्त मिला है मुझे खुद को निहारने का ,
हाँ बड़े अरसे बाद ,
क्योकि आज दोपहर में ही बेटा बहु ,बेटी जंवाई ,नाती पोते सबने उडान भरी है
विदेश में जाकर बस जाने के लिए ,
कहते है यंहा क्या पड़ा है , पर मेरा तो सब यही धरा है ,
अब मेरे पास काम ही क्या है करने को जिसको भागना है भागे अब मै तो निहारूंगी खुद को ...
वैसे तो आईना रोज देख लेती थी पर में कितनी खुबसूरत हूँ वो ये बोल पाए ,
उससे पहले ही में पलट लेती थी बहुत सालो पहले ये आईना और वो कहा करते थे कि
मै बहुत खुबसूरत हूँ ,
पर अब वो नहीं रहे ....अब क्या वो तब नहीं रहे जब दोनों बच्चे मेरी गोद मे थे ,
उस दिन से लेकर आज तक कभी आईने में खुद को निहारने का मौका ही नहीं मिला
अब तो जी भर के बाते करुँगी आईने से और वो मेरी तारीफ मे कुछ बोले ऐसा निखरुंगी मे तो
क्यों बांध के रखु ये जुड़ा बालो का मे अब तो इन्हें भी आजाद कर दूंगी उन नुकीली पिनो से ,
लहराने दूंगी अपने गालो पे ,अपने कंधो पे झूलने दूंगी, आँखों पे आये तो आने दूंगी
क्यों सब सफ़ेद हो गए है तो क्या कोई धुप मे सफ़ेद थोड़े ही किये है जो इनपे काला रंग चढ़ाऊ ,
अरे आज भी बहुत नशीली है मेरी आँखे .आज ठीक से देखा तो पता चला हा झुर्रियां आ गई है बहुत
तो क्या हुआ ये ही तो है गवाह मेरे ६० साल के तजुर्बे की ,
बहुत बारीकी और करीब से देखा है जिंदगी के हर रंग को इन आँखों ने ..
काजल लगा लुंगी क्यों ना लगाऊ ? ना जाने किस की नजर लग जाये क्यों ना लगे ?


आखिर मै हूँ ही इतनी खुबसूरत



बहुत पहन ली सूती साड़ियाँ
आज तो मे उनकी दी वो फूलो वाली साड़ी पहनूंगी
आज तो मे वो पुराना पिटारा खोलूंगी
झुमके और कंगन भी पहनूंगी
यूँ तो मेरे हाथो की लटकी चमड़ी किन्ही चूड़ियों से कम नहीं है
पर मे तो कंगन पहनूंगी
क्या छूट गया है ऐसा की मेरा निखार अधुरा है
याद आया मेरी बिंदियाँ सालो से नहीं लगाई
तो आदत भी नहीं है बिना आईना देखे चिपका लेने की
छेड़े तो छेड़े आईना मुझे .
में नहीं शर्माउंगी में तो आज बिंदी लगाउंगी
मेरे केसरी बदन पे लिपटी ये झीनी साड़ी और मेरे खुले लहराते सफ़ेद बालो में शर्माती मेरी सादगी
घर मे क्यों बेठु ,में तो बहार घूम के आउंगी
कुछ तो जलेंगे मेरी आजादी से जिनके पास वक़्त नहीं है खुद के लिए उनको तो में जलाउंगी
क्यों नहीं जलेंगे ?


में हूँ ही इतनी खुबसूरत



ये क्या बाहर तो रिमझिम फुहार बरसने लगी है
तो क्या,
मै तो फिर भी जाउंगी
छुपने दो लोगो को इधर उधर मै तो भीग के आउंगी
जब मेरे खुले बालो मै से सरकती पानी की बुँदे ,मेरा भीगता आँचल आज कही से वो देखेंगे तो तडपेगे सोचेंगे गर नहीं जाते छोड़ के मुझे तो आज ये हसीं शाम वो मेरे साथ होते
क्यों नहीं कहेंगे ?


मैं हूँ ही इतनी खुबसूरत



बरसो बाद आज मै तनहा नहीं सोउंगी
आज तो आएगी हर वो याद मेरे जिस्म से लिपटने को जो बरसो से छुपी हुई है इन दीवारों में कही
अरे क्यों ना लिपटेगी मुझ से ?


आखिर मै हूँ ही इतनी खुबसूरत

केसर क्यारी ...उषा राठौड़

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23टिप्पणियाँ

  1. आज दिन तक जितनी भी कविता पढीं उनमे सबसे खूबसूरत यही लगी, और विषय भी बहुत खूब चुना है, क्या मन के भावों को उजागर किया है वाह, आनंद आ गया

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  2. उषा जी क्या बात है इसके अलावा और कुछ तो जबाब ही नहीं है . आप देर से आती है पर खूब आती हैं . मन को छु कर आत्मा तक बातें पहुंचा देती हैं . क्यों छुप जाती हैं . इतना विश्राम ठीक नहीं .

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  3. अहा, एकदम नये भाव में पिरोयी रचना।

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  4. उम्र के बढ़ने से शारीरिक बुढापा तो आ सकता है, लेकिन मन में उत्साह, उमंग होना चाहिये तो शारीरिक बुढ़ापा एक ओर रखा रह जाता है.

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  5. नए भावों से परिपूर्ण शानदार रचना

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  6. सबसे अलग हटकर रचना,
    बहुत ही अच्छी रचना

    सुल्तान राठोर जसरासर

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  7. ये है ... बुडापे के तुजर्बो की आत्मा की असली खूबसूरती !
    दिल को देखो ...चेहरा न देखो ...
    बहुत-बहुत बधाई !

    खूब खुश और स्वस्थ रहें !
    अशोक सलूजा !

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  8. sachmuch bahut hi shandar..........thanks for sharing..yash setpal

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  9. होली की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!

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  10. उम्र से पहले उमरदराज होने का अनुभव ,बहुत बढ़िया रचना है |

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  11. आत्मा की असली खूबसूरती
    बहुत ही अच्छी रचना है

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  12. wonderful...felt like reading my mother's thoughts

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  13. Bahut hi badiya likha hai,shabd dil mein aise utarte hain jaise antar aatma keh rahi ho ki bhul jaa zamane ko,mat sun logon ki,kehne de unhe jo kehna hai,bas apne dil ki sunn kyun ki sunna tera haq banta hai aakhir tu hai hi itni khoosurat :)
    मुझको भी तरकीब सिखा यार जुलाहे
    अकसर तुझको देखा है कि ताना बुनते
    जब कोइ तागा टुट गया या खत्म हुआ
    फिर से बांध के
    और सिरा कोई जोड़ के उसमे
    आगे बुनने लगते हो
    तेरे इस ताने में लेकिन
    इक भी गांठ गिराह बुन्तर की
    देख नहीं सकता कोई
    मैनें तो ईक बार बुना था एक ही रिश्ता
    लेकिन उसकी सारी गिराहे
    साफ नजर आती हैं मेरे यार जुलाहे

    - गुलज़ार

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  14. ek boodhi aurat ki jijeevisha ki itni achchhi abhivyakti dee hai aapne.....!! wow hai.....bahut achchhi hai......60 saal ki ek widow lady mein jeene ki itni chaahat!!!!! Optimism ka height hai........bahut hee khoobsoorat.....sachmuch khoobsoorat.....feminism ke kayi aayaam ko tatolti kavita hai.....congrats

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  15. ....हाँ तुम बिलकुल वैसी हो, जैसा मैंने सोचा था....हाँ तुम वाकई खूबसूरत हो... बहुत खूबसूरत भाव....

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  16. ....हाँ तुम बिलकुल वैसी हो, जैसा मैंने सोचा था....हाँ तुम वाकई खूबसूरत हो... बहुत खूबसूरत भाव....

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