भूमि परक्खो-2

Gyan Darpan
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भाग से-1 आगे ....
अपने हिस्से की घोड़ियाँ भीमजी को दे बिलोच युवक ने अपने घोड़े को एड लगाईं और हवा से बाते करना लगा | भीमजी ने अपने साथियों को समझाया तुमने उस युवक से झगड़ा कर ठीक नहीं किया तुम्हारे झगड़े के चलते हमने एक बहादुर दोस्त खो दिया | अब तुम घोड़ियाँ लेकर चलो मैं उसे मनाकर वापस लाता हूँ |
भीमजी उसे खोजते हुए चल पड़े,उन्हें रास्ते में एक बावड़ी के पास युवक का घोड़ा बंधा दिखाई दिया,भीमजी ने बावड़ी के पास जाकर अन्दर झाँका तो वे दंग रह गए उनकी साँसे रुक गई | बावड़ी में एक जवान सुन्दरी अपना बदन मलमल कर स्नान कर रही थी |
आज पिउसिंध एकांत देख वस्त्र उतार नहाने बैठी थी | उसके बाल कमर तक लटक रहे थे उसका गोरा शरीर कुंदन सा दमक रहा था | भीमजी की तो आवाज देने की हिम्मत भी नहीं पड़ी | वे वापस मुड़कर कुछ सौ कदम गए और फिर खांसते खांसते बावड़ी के पास तक आये, थोड़ी देर में पिउसिंध नहाने के बाद कपडे पहन हाथों में तीर कमान नचाती बाहर निकली |
भीमजी आँखों में रंग भर,मुस्कराहट बिखेरते बोला- नाराज हो गए ? अब घोड़ियाँ हाजिर और मैं भी हाजिर | चलो मेरे साथ मेरे गांव,तुम हुक्म दो हम चाकरी करेंगे | अब तो जीना तुम्हारे साथ मरना तुम्हारे साथ |
पिउसिंध मुस्कराते बोली -" मैं बिलोच मुस्लमान, तुम भाटी राजपूत |"
भीमजी बोला-" जात पात गंवार लोग देखते है | राजपूत की जाति है वीरता | तुम वीर ,मैं वीर सो हमारी जाति एक ही हुई ना | अब तो मंजूर ?
और पिउसिंध ने शरमाते हुए हामी भरदी | भीमजी उसे लेकर अपने गांव पाटन आ गया | दोनों अपना घर बसा चैन से रहने लगे | उनके दो सुन्दर बेटे भी हुए एक का नाम रखा जखड़ा और दुसरे का मुखड़ा | पिउसिंध ने दोनों बेटों को तीर कमान और तलवार चलाने की शिक्षा दी |
एक दिन एक गांव में एक दौड़कर आते ग्वाले ने सुचना दी कि " एक शेर गांव की तरफ आ गया और एक गाय को उसने मार गिराया |" सुनकर जखड़ा व मुखड़ा दोनों भाई उस और भागे | शेर ने देखते ही उन पर हमला किया पर जखड़ा ने तलवार के एक ही वार शेर को ढेर कर दिया | और दोनों भाई शेर की पूंछ पकड़ घसीटते हुए गांव में ले आये | भीमजी पुत्रों की बहादुरी देख खुश होते बोला- ख़ुशी तो हुई पर ये शिकार सिंध के नबाब का है | उसे पता चला तो नाराज होगा | और दुसरे ही दिन नबाब के सिपाही आ गए और नबाब का हुक्म सुनाया कि शेर मारने वाला नबाब के सामने हाजिर हो |
भीमजी जखड़ा को लेकर नबाब के डेरे में हाजिर हुआ | नबाब ने डांटते हुए पूछा -शेर किसने मारा ?
मैंने | जखड़ा ने बिना हिचकिचाए दृढ़ता के साथ जबाब दिया |
क्यों ? नबाब ने पूछा |
गाय को मार दिया और बस्ती के पास आ गया था तो क्या उसे नुक्सान पहुँचने देता ? जखड़ा ने पलट कर जबाब दिया |
दस साल के बच्चे में ऐसी निडरता,दृढ़ता व वीरता देख नबाब भौंचक रह गया,उसने बच्चे को देखा, फिर उसके बाप भीमजी को देखा, और सोचा इसका बाप भी डीलडोल में बड़ा सजीला है,पर इस लड़के की तो बात ही अलग है | बच्चे हमेशा अपने मां बाप पर जाते है शायद ये लड़का अपनी मां पर गया हो | मुझे इसकी मां को देखना चाहिए | एसा वीर पुत्र पैदा करने वाली मां भी कोई ख़ास ही होगी | सो नबाब भीमजी से बोला -
"भीमजी, मुझे वह भूमि दिखाओ जिसने इसे पैदा किया है | हमें वह खेत देखने की जिज्ञासा हो उठी जहाँ ये पैदा हुआ सो घर जाओ और जखड़ा का खेत लेकर आओ |"
घर आये भीमजी को उदास देख पिउसिंध ने कारण पूछा तो भीमजी ने सब बताते हुए कहा- नबाब ने जिद पकड़ ली है कि जखड़ा को जिस भूमि ने पैदा किया वह दिखाओ अब अपनी पत्नी को नबाब के आगे ले जाकर अपने खानदान पर कलंक कैसे लगाऊं ?
पिउसिंध सब समझ गयी थी उसने भीमजी को उस दिन बड़े प्यार से खूब शराब पिलाई और उसके बेहोश होते ही अपने पुराने मर्दाना कपडे पहन घोड़े पर सवार हो नबाब के डेरे पर पहुँच नबाब को सन्देश भिजवाया कि-" कांगड़ा बिलोच का बेटा शिकारखां आया है और आपसे मिलना चाहता है |
नबाब के बुलाने पर पिउसिंध ने अपना परिचय दिया - "हुजुर मैं शिकारखां ! सुना है हुजुर को शिकार का बहुत शौक है | सो शिकार पर चले कुछ देखे,दिखाएँ,शिकार करें और कराएं |
शिकार का शौक़ीन नबाब तुरंत उसके साथ चल दिया | पिउसिंध जिधर निकल जाय उधर शिकार ढेर लग जाये,उसका अचूक निशाना देख नबाब हैरान| उसके तीर का प्रहार देख नबाब चकित | बस उसके मुंह से तो बार बार सिर्फ यही निकले - वाह वाह ! शाबास शिकारखां शाबास ! "
शाम होते ही शिकारखां बनी पिउसिंध ने जाने की इजाजत ली -हुजुर माफ़ी बख्शे आज रुक नहीं सकता फिर कभी हाजिर होवुंगा | अभी जाने की इजाजत दें |
नबाब खुश था उसने जाने की इजाजत के साथ तोहफे में सिरोपाव भी दिया | जिसे लेकर पिउसिंध घोड़े पर सवार हो घर आ गयी |
तीसरे दिन नबाब के सैनिक आ गए | कहने लगे भीमजी चलो नबाब ने आपको याद किया है | सुनकर भीमजी के तेवर चढ़ गए |
पिउसिंध ने भीमजी को अलग लेकर शिकार वाली पूरी बात बताई और कहा ये सिरोपाव नबाब के समक्ष रख देना वह समझ जायेगा |
भीमजी को अकेले आये देख नबाब गुस्से में आँखे निकलता हुआ बोला - अकेले आये हो ? मैंने जिसे दिखाने को कहा था उसे साथ क्यों नहीं लाये ?
" वह तो आपकी नजर गुजारिश हो चुकी है " भीमजी ने हँसते हुए जबाब दिया |
गुस्से में नबाब बोला- भीमजी तमीज से बात करो आप सिंध के नबाब से बात कर रहे है |
"मैं तो पूरी तमीज से ही बात करा हूँ नबाब साहब ! ये सिरोपाव देख लीजिये | शिकारखां ने भेजा |
अब तो नबाब सब समझ गया और अचम्भे में फटते हुए उसके मुंह से सिर्फ "ऐ ??" ही निकला |
" वाह रे शिकारखां,वाह ! माता हो तो ऐसी ही हो,ऐसी माता ही ऐसे सपूतों को जन्म दे सकती है | और गर्दन हिलाकर नबाब ने एक दोहा बोला-
भूमि परक्खो हे नरां, कांई परक्खो विन्द |
भूमि बिना भला न नीपजै,कण,तृण,तुरी नरिन्द ||

भूमि की श्रेष्ठता पहले है,बीज की बाद में| श्रेष्ठ भूमि से ही श्रेष्ठतम कृषि,पेड़-पौधे,घोड़े और नर उत्पन्न होते है |


पद्मश्री, रानी डा. लक्ष्मीकुमारी चुण्डावत की कहानी पर आधारित

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7टिप्पणियाँ

  1. सच है वीरों की जाति वीरता है। भूमि ही प्रधान है।

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  2. veero ki kahani me hi ek bahut badi sikh de dali
    kahani ke sath sath seekh bahut uttam
    aaise hi gyan ka bhandar kholte rahe jisse hum labhanvit ho sake.

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  3. बहुत ही सुंदर और ओजतापूर्ण आलेख, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  4. कहानी का शीर्षक इस प्रकार का क्यों रखा है ये तो कहानी के अंत में पता चलता है | एक कहावत भी है माँ पर पूत पिता पर घोड़ा, ज्यादा नहीं तो थोड़ा थोड़ा

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  5. माई तु एहड़ा पूत जण, कै दाता कै सूर
    या तो तु रह बांझड़ी, मति गंवावे नूर ॥

    सांची बात है भाई जी
    राम राम

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  6. भूमि परक्खो हे नरां, कांई परक्खो विन्द |
    भूमि बिना भला न नीपजै,कण,तृण,तुरी नरिन्द ||

    तभी तो हमारे धर्म मे मां को भगवान से बडा बताया गया हे , मां चाहे तो बच्चे को कुछ भी बना सकती हे

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