समेट लू

pagdandi
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कुछ खास नहीं हैं मेरे पास करने को ,

क्यों न ये बिखरा जहाँ समेट लू ........

कुछ गम बुहार लू ,

फेकूं वहां जहाँ से वो फिर न उड़े .........

तन्हाई की फेली चादर लपेट लू ,.....

रखु ऐसे की वो फिर न खुले ........

खोल दो तुम भी अपने मन के मेले चोले,

मैं इन्हें निचोड़ दू ...........

खिलने वाली हैं उमंगो की धुप ,

तुम अपना द्वार ढक ना लेना .........

पड़ने दो इन किरणों को अपने पर

अपने कच्चे मन को पकने दो ........

बरसेगी अब खुशियों की बूंदाबांदी,

तुम अपना छाता पसार ना देना .......

बस पलके झुका कर खुद को ,धुलने दो ,.......................................

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13टिप्पणियाँ

  1. वह बहुत खूब पता है दिन बा दिन आपकी कविताएँ,लेख और भी बेहतरीन होते जा रहे हैं.वेल डन कीप ईट अप.नीचे दो पंक्तिया गुलज़ार साहेब की आपके खिदमद में.

    मौत तू एक कविता है,मुझसे एक कविता का वादा है मिलेगी मुझको
    डूबती नब्ज़ों में जब दर्द को नींद आने लगे
    ज़र्द सा चेहरा लिये जब चांद उफक तक पहुचे
    दिन अभी पानी में हो, रात किनारे के करीब
    ना अंधेरा ना उजाला हो, ना अभी रात ना दिन
    ...जिस्म जब ख़त्म हो और रूह को जब साँस आऐ
    मुझसे एक कविता का वादा है मिलेगी मुझको
    -गुलज़ार

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  2. बहुत बढ़िया भावपूर्ण पंक्तियाँ

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  3. उमंगों की धूप व खुशियों की फुहार साथ साथ आये और आपके जीवन के इन्द्रधनुष को बनायें।

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  4. ऊर्जादायक पोस्ट है | खुशियों कि फुहार में छाता खोले रखने का आग्रह बहुत सुंदर बात कही है आभार |

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  5. bhn usha ji khub smetaa he aapne alfaazon ko umngon ko bhavnaaon ko is liyen ab is tipni ko bhi smet lo kyonki iski aap shi maaynon me hqdaar ho gyi hen bdhaayi ho. akhtar khan akela kota rajsthan

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  6. खिलने वाली हैं उमंगो की धुप ,

    तुम अपना द्वार ढक ना लेना .........

    पड़ने दो इन किरणों को अपने पर

    अपने कच्चे मन को पकने दो ........

    बरसेगी अब खुशियों की बूंदाबांदी,

    तुम अपना छाता पसार ना देना .......

    बस पलके झुका कर खुद को ,धुलने दो ,.....

    waah waah waah !

    .

    जवाब देंहटाएं
  7. कुछ गम बुहार लू ,

    फेकूं वहां जहाँ से वो फिर न उड़े .........

    तन्हाई की फेली चादर लपेट लू ,.....

    रखु ऐसे की वो फिर न खुले ........
    cute & copasssionate lines......


    thanx..

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